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में
अर्थ - प्रशस्त मरणों में सर्वप्रथम भक्त प्रत्याख्यान का वर्णन किया जाता है क्योंकि वर्तमान काल यह मरण सम्भव है। शेष दो इंगिनी और प्रायोपगमनमरण का वर्णन आगे करूँगा ।।६९ ॥
मरणकण्डिका - २९
(३)
भक्तप्रत्याख्यानमरण 'अर्ह' आदि अधिकार
पण्डितमरण के अन्तर्गत भक्तप्रत्याख्यानमरण के कथन की सूचना
भक्तत्याग: प्रशस्तेषु मध्ये मृत्युषु वर्ण्यते ।
आदावद्य भवत्वेन, शेषवर्णनमग्रतः ॥६९ ॥
अर्थ - भक्तप्रत्याख्यान दो प्रकार का कहा गया है। सवीचार और अवीचार। जिसकी दीर्घ आयु है उसके सवीचार और जिसकी अल्पायु है उसके अवीचार भक्तप्रत्याख्यानमरण होता है ॥ ७० ॥
प्रश्न- यहाँ दीर्घायु और अल्प आयु का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर - जिसके अकस्मात्, तत्क्षण आयुनाश के कारण उपस्थित नहीं हुए हैं, और जिसकी अभी इतनी आयु है कि वह बुद्धिपूर्वक शनै: शनै: आहार आदि के त्यागपूर्वक शरीर कृश कर सकता है वह दीर्घायु है, तथा जिसके आयुनाश के कारण सहसा उपस्थित हो गये हैं उसे अल्पायु कहा गया है।
भक्तप्रत्याख्यान मरण के चालीस सूत्र
हैं ?
प्रश्न
भक्तप्रत्याख्यान के भेद और स्वामी
सवीचारमवीचार, भक्तत्यागं द्विधा विदुः ।
शक्यश्चिरायुषामद्यस्तत्रान्योऽन्यस्य कथ्यते ॥ ७० ॥
अर्थ - सवीचार भक्त प्रत्याख्यानमरण की विवक्षा करने के इच्छुक बुद्धिमान व्यक्ति को ये चालीस सूत्र
जानने । अर्थात् इस मरण को समझने के लिए चालीस प्रकरण हैं ।। ७१ ।।
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प्रस्तावना
अह, लिंग, शिक्षा', विनय, समाधि, अनियतविहार, परिणाम", उपधित्याग', श्रिति, भावना, सल्लेखना ", दिक्", क्षमणा", अनुशिष्टि", परगणचर्या", मार्गणा", सुस्थित, उपसर्पण", निरूपण, प्रतिलेख, पृच्छा, " एकसंग्रह, आलोचना, गुणदोष, शय्या", संस्तर", निर्यापक, प्रकाशन, हानि, प्रत्याख्यान", क्षामण, क्षपणा, अनुशिष्टि, सारणा, कवच, समता, ध्यान, ' लेश्या", फल, आराधक", त्याग लक्षणानि चत्वारिंशत्सूत्राणि ॥ ७२ ॥
भक्तप्रत्याख्यान मरण के उपर्युक्त चालीस अधिकारों में से प्रत्येक के अतिसंक्षिप्त लक्षण क्या
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भक्तत्यागं सवीचारं, मृत्युं तत्र विवक्षुणा ।
चत्वारिंशद्विबोध्यानि, सूत्राणीमानि धीमता ।।७१ ॥