________________
प्रास्ताविक
दृष्टि का प्रभाव भी दिखाई देता है । पंचम अध्ययन की वृत्ति में आहारविषयक मूल गाथाओं का व्याख्यान करते हुए वृत्तिकार ने अस्थि आदि पदों का मांसपरक एवं फलपरक दोनों प्रकार का अर्थ किया है ।
'प्रज्ञापना- प्रदेशव्याख्या :
यह वृत्ति प्रज्ञापना सूत्र के पदों पर । इसमें वृत्तिकार ने आवश्यक टीका.... और आचार्य वादिमुख्य का नामोल्लेख किया है । वृत्ति संक्षिप्त एवं सरल है । - इसमें यत्र-तत्र संस्कृत एवं प्राकृत उद्धरण भी हैं ।
आवश्यक वृत्ति:
३७
यह वृत्ति आवश्यक नियुक्ति पर है । यत्र-तत्र भाष्य गाथाओं का भी उपयोग किया गया है । वृत्ति में आवश्यकचूर्णि का पदानुसरण न करते हुए स्वतंत्र रीति से विषय विवेचन किया गया है । इस वृत्ति को देखने से प्रतीत होता है। 'कि आवश्यक सूत्र पर आचार्य हरिभद्र ने दो टीकाएँ लिखी हैं । उपलब्ध टीका अनुपलब्ध टीका से प्रमाण में छोटी है । प्रस्तुत टीका में वृत्तिकार ने वादिमुख्य- कृत कुछ संस्कृत श्लोक भी उद्धृत किये हैं । कहीं-कहीं नियुक्ति के पाठान्तर भी दिये हैं । इसमें भी दृष्टान्तरूप एवं अन्य कथानक प्राकृत में ही हैं । वृत्ति का नाम शिष्यहिता है । इसका ग्रन्थमान २२००० श्लोकप्रमाण है ।
कोट्याचार्यविहित विशेषावश्यक भाष्यविवरण :
कोट्याचार्य ने अपनी प्रस्तुत टीका में आचार्य हरिभद्र अथवा उनकी किसी कृति का कोई उल्लेख नहीं किया है । इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि कोट्याचार्य संभवतः हरिभद्र के पूर्ववर्ती अथवा समकालीन हैं । प्रस्तुत विवरण में टीकाकार ने आवश्यक की मूलटीका का अनेक बार उल्लेख "किया है । यह मूलटीका उनके पूर्ववर्ती आचार्य जिनभट की है । मलधारी हेमचन्द्रसूरि ने अपनी कृति विशेषावश्यकभाष्य बृहद्वृत्ति में कोट्याचार्यं का - एक प्राचीन टीकाकार के रूप में उल्लेख किया है । इससे भी यही सिद्ध होता है कि कोट्याचार्य काफी पुराने टीकाकार हैं । शीलांकाचार्य और कोट्याचार्य को एक ही व्यक्ति मानना युक्तियुक्त प्रतीत नहीं होता । आचार्य शीलांक का समय विक्रम की नवीं दसवीं शती है जबकि कोट्याचार्य का समय उपर्युक्त दृष्टि से आठवीं शती सिद्ध होता है ।
कोट्याचार्यकृत विशेषावश्यकभाष्यविवरण न अति संक्षिप्त है, न अति विस्तृत | इसमें उद्धृत कथानक प्राकृत में हैं । कहीं-कहीं पद्यात्मक कथानक भी हैं । यत्र-तत्र पाठान्तर भी दिये गये हैं । विवरणकार ने आचार्य जिनभद्रकृत
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org