Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनी टीका अ १. गा । भिभुगुणप्रतिपादनम् उपल-पणत्वात् परिचिताच भवेयु , वा=अथवा ये गृहिण अमत्रजितेनहम्या पम्यायामास्थितेन सस्तुता परिचिता. भवेयुः । तेपातैरभयारम्याया परिचितगृहाथै सह ऐहलौकिकफगर्यम्-इहलोकेभवम्-ऐलास्किम्-एतलोपसन्धि यत्फलवस्त्रपानादि, तदर्थ तन्निमित्तम्-चत्रपानादिलाभार्थमित्यर्थ., य सस्तव =परिचय न करोति स भिसुरुच्यते ॥१०॥ मूलम्-सयणासणपाणभोयण, विविह खाइमसौडम परसि ।
अदए पडिसेहिए नियठे,जे तत्थ न पउस्सैड से भिक्खे ॥११॥ डाया-शयनासनपानभोजने, पिविष खादिमम्बादिम परै ।
अदत्ते प्रतिपेधिते निर्ग्रन्ये, यस्तन न प्रद्वेष्टि स भिक्षु ॥११॥ टीका--'मयणामण' इत्यादि । शयनासनपानभोजने शयन-शग्यासस्तारकादि, आसन-पीठफलकादि, अपर च-'गिहिणो' इत्यादि ।
अन्वयार्य-(जे गिहिणो-ये गृहिण)जो गृहस्थजन (पञ्चहरणप्रत्रजितेन) दीक्षित हुए सासु डारा (दिहा-दृष्टा) देखे गये हों और परिचय में भी आये हों (व-वा) अथवा (अप्पन्वहरण-अवजितेन) गृहस्थावस्था में रहे हुए उम माधु डारा (सवुया हवेन-सस्तुता. भवेयु.) पहिले परिचय में आये हो (तेर्मि-तेपाम्) उन दोनों प्रकार की अवस्थाओं में परिचित हुए गृहस्थोंका (यः) जो साधु (इहलोडयाफलहागेहलौकिकफलार्थम्) इमलोक मरवी फल के लिये वस्त्र पात्रादिक की उनसे प्राप्ति के निमित्त-सथव न करेड स मिक्सू-सस्तवम् न करोति स भिक्षु) सस्तव-परिवय नहीं करता है वह भिक्षु है ॥ १०॥
ON-"गिहिणो" त्या ।
भन्या-जे गिहिणो-ये गृहिण रे २५ न पवडयेण-प्रजितेन हीक्षित नेता माधु द्वारा पूरे विद्या-गटा: नवामा मावे मने तमनी माथे परियय ५Y थ६ गये सत्य व-चा मय! अप्पन्चइएण-अपवजितेन भ्या पस्यामा २९ता ये सारा सयुया हवेज-सस्तुताः भवेयु पडेटा पश्यियभा मावेस हाय तेसि-तेपाम मा जन्ने प्रा२नी मवस्थामा परिचित सेवा - स्थानु जो-य२ माधु इहलोइयप्फलहा-इहलौकिकफलार्थम मा समधी ३णना भाटे-१२ पात्रहिनी समनी पासथी प्रातिना निमित्त सथव न करेड स भिक्खू-सस्तवम् न करोति स भिक्षु पश्यिय ४२ना नथी ते सु ॥ १० ॥