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प्रस्तावना
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गुणत्रत और शिक्षाव्रत
____ अब हम गुणव्रत और शिक्षाव्रतोपर आते हैं१. आचार्य कुन्दकुन्दने दिशा-विदिशा प्रमाण, अनर्थदण्डत्याग और भोगोपभोगपरिमाण ये तीन गुणव्रत
बतलाये हैं और सामायिक, प्रोषधोपवास, अतिथिपूजा और सल्लेखना ये चार शिक्षाव्रत बतलाये हैं। २. तत्त्वार्थसमें गणव्रत और शिक्षाव्रत भेद न करके सात शील बतलाये हैं-दिग्विरति. देशविरति. अनर्थ
दण्डविरति, सामायिक, प्रोषधोपवास, उपभोगपरिभोगपरिमाण और अतिथिसंविभाग। सल्लेखनाको उसमें अलगसे बतलाया है। सर्वार्थसिद्धि टीकामें शुरूके तीन व्रतोंको गुणव्रत बतलाया है किन्तु शेष चारको कोई नाम नहीं दिया। रत्नकरण्डश्रावकाचारमें दिग्वत, अनर्थदण्डव्रत और भोगोपभोगपरिमाणवत ये तीन गुणव्रत बतलाये हैं और देशावकाशिक, सामायिक, प्रोषधोपवास और वैयावृत्त्य ये चार शिक्षाबत बतलाये हैं, सल्लेखनाको पृथक् बतलाया है। ४. पद्मचरितमें अनर्थदण्डव्रत, दिग्विदिक्त्याग, भोगोपभोगसंख्यान ये तीन गुणव्रत बतलाये हैं और सामा
यिक, प्रोषधोपवास, अतिथिसंविभाग और सल्लेखना ये चार शिक्षाव्रत बतलाये हैं। भावसंग्रहमें भी यही
क्रम अपनाया है। ५. हरिवंशपुराण में गुणव्रत तो तत्त्वार्थसूत्रके अनुसार गिनाये हैं किन्तु शिक्षाव्रतोंमें भोगोपभोगपरिमाणको
न गिनाकर सल्लेखनाको गिनाया है। ६. आदि पुराणमें दिग्वत, देशव्रत और अनर्थदण्डव्रतको गुणव्रत बतलाकर लिखा है । कोई भोगोपभोगपरिमाण
व्रतको भी गुणवत कहते हैं । सामायिक, प्रोषधोपवास, अतिथिसंविभाग और सल्लेखना ये चार शिक्षाव्रत बतलाये हैं।
पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, सोमदेव उपासकाध्ययन, चारित्रसार, अमितगति उपासकाचार, पद्मनन्दि पंचविशतिका ___और लाटोसंहितामें तत्त्वार्थसूत्रका ही क्रम अपनाया गया है । ८. स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा और सागारधर्मामृतमें रत्नकरण्डश्रावकाचारके अनुसार बतलाये हैं । ९. वसुनन्दि श्रावकाचारमें गुणवत तो तत्त्वार्थसूत्रके अनुसार है और शिक्षायत इस प्रकार है-भोगविरति, परिभोगविरति. अतिथिसंविभाग और सल्लेखना।
इन सबका वर्गीकरण इस प्रकार होता हैआचार्य कुन्दकुन्द और रविषणका एक मत है या यह कह सकते हैं कि पप्रचरितमें चारित्रप्राभूतके अनुसार ही गुणव्रत और शिक्षाव्रत बतलाये हैं। सम्भवतः यही प्राचीन परम्परा हो । प्राकृत भाव
संग्रह और सावयधम्मदोहामें भी यही क्रम है। २. रत्नकरण्डश्रावकाचारमें उक्त परम्परासे केवल इतना अन्तर है कि उसमें शिक्षायतोंमें सल्लेखनाके
१. चारित्रप्रा. गा. २४, २५। २. भ० ७, सू० २१ । ३. श्लो० ६७ और ९१ । ४. पर्व १४,
श्लो. १९८, १९९ । ५. स. १८, श्लो० ४६, ४७ । ६. पर्व १०, श्लो० ६५, ६६ । ७. गा०
३४१-३८ । ८. गा० २१३ भादि । ९. यहाँ यह बतला देना आवश्यक है कि श्वेताम्बर परम्परामें भी गुणव्रत और शिक्षाव्रतोंका वही
क्रम है जो रत्नकरण्डमें बतलाया है। तत्वार्थसूत्रके श्वेताम्बरसम्मत पाठमें भी सात शीलवतोंका वही क्रम है जो दिगम्बरसम्मत पाठमें। फिर भी उसके टीकाकार सिद्धसेन गणिने गुणवत
और शिक्षाव्रतके भेद अपनी परम्पराके अनुसार ही गिनाये हैं अर्थात् इन सात शीलोंमें-से दिग्वत, भोगपरिमोगपरिमाणवत और अनर्थदण्डव्रत ये तीन गुणव्रत हैं और शेष चार शिक्षाव्रत हैं।