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उपासकाध्ययन
सम्यग्ज्ञानत्रयेण प्रविदितनिखिलज्ञेयतत्त्वप्रपञ्चाः
प्रोड्य ध्यानवातैः सकलमघरजः प्राप्तकैवल्यरूपाः । कृत्वा सत्त्वोपकारं त्रिभुवनपतिभिर्देशयात्रोत्सवा ये
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सिद्धाः सन्तु लोकत्रयशिखरपुरवासिनः सिद्धये वः ||५१० ॥ दानशान चरित्र संयमनयप्रारम्भगर्भ मनः
कृत्वान्तर्बहिरिन्द्रियाणि मरुतः संयम्य पञ्चापि च । पश्चाद्धीतविकल्पजालमन्जिलं भ्रस्यत्तमः संतति
ध्यानं तत्प्रविधाय ये च मुमुचुस्तेभ्योऽपि बद्धोऽञ्जलिः ॥ ५११ ॥ इत्थं येss समुद्रकन्दरसरः स्रोतस्विनीभूनभो
दीपाद्रिदुमका ननादिषु धृतभ्याना वधानर्द्धयः । कालेषु त्रिषु मुक्तिसंगमजुषः स्तुत्यास्त्रिभिर्विष्टपै
स्ते रत्नत्रयमङ्गलानि ददतां भव्येषु रत्नाकराः ||५१२ ॥ [ इति सिद्धभक्तिः ]
भौमव्यन्तरमर्त्यभास्कर सुरश्रेणीविमानाश्रिताः स्वर्ज्योति कुलपर्वतान्तरधरा रन्ध्रप्रबन्धस्थितीः ।
सिद्ध भक्ति
जिन्होंने अपनी छद्मस्थ अवस्था में मति, श्रुत और अवधिज्ञानके द्वारा सब ज्ञेय तत्त्वों को विस्तार से जाना फिर ध्यानरूपी वायुके द्वारा समस्त पापरूपी धूलिको उड़ाकर केवलज्ञान प्राप्त किया; फिर इन्द्रादिकके द्वारा किये गये बड़े उत्सवके साथ सर्वत्र विहार करके जीवोंका उपकार किया; तीनों लोकोंके ऊपर विराजमान वे सिद्ध परमेष्ठी हम सबकी सिद्धिमें सहायक हों ॥५१०॥ मनको दान, ज्ञान, चारित्र, संयम आदिसे युक्त करके और अन्तरंग तथा बहिरंग इन्द्रियों और प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान इन पाँचों वायुओंका निरोध करके फिर अज्ञानरूपी अन्धकारकी परम्पराको नष्ट करनेवाले निर्विकल्प ध्यानको करके जो मुक्त हुए उन्हें भी मैं हाथ जोड़ता हूँ ॥ ५११ ॥
भावार्थ- पहले जो तीर्थकर होकर सिद्ध हुए उन्हें नमस्कार किया है । इसमें जो सामान्य जन सिद्ध हुए उन्हें नमस्कार किया है ।
इस प्रकार समुद्र, गुफा, तालाब, नदी, पृथ्वी, आकाश, द्वीप, पहाड़, वृक्ष और वन वगैरह में ध्यान लगाकर जो अतीत- कालमें मुक्त हो चुके, वर्तमानमें मुक्त हुए हैं और भविष्य में मुक्त होंगे, तीनों लोकों के द्वारा स्तुति करनेके योग्य वे भव्य शिरोमणि हमें सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र रूपी मङ्गलको देवें ॥५१२॥
[ इस प्रकार सिद्धभक्ति समाप्त हुई । ] चैत्य भक्ति
[ फिर चैत्य भक्ति करे- 1
भवनबासी और व्यन्तरोंके निवासस्थानोंमें, मर्त्यलोक में, सूर्य और देवताओंके श्रेणी विमानोंमें,
१. छद्यस्थावस्थायाम् । २. वातान् प्राणापानव्यानो दानसमानान् । ३. ध्यानावधानमेव ऋद्धिः ।