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उपासकाध्ययन
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उक्तं लोकोत्तरं ध्यानं किञ्चिल्लौकिकमुच्यते । प्रकीर्णकप्रपञ्चेन दृष्टाऽदृष्टाफलाश्रयम् ॥७०८॥ पञ्चमूर्तिमयं बीजं नासिकाने विचिन्तयन् । निधाय संगमे चेतो दिव्यज्ञानमवाप्नुयात् ॥७०६॥ यत्र यत्र हृषीकेऽस्मिन्निदधीताचलं मनः । तत्र तत्र लभेतायं बाह्यग्राह्याश्रय सुखम् ॥७१०॥ स्थूल सूक्ष्मं द्विधा ध्यानं तत्त्वबीजसमाश्रयम् । श्राद्येन लभते कामं द्वितीयेन परं पदम् ॥७११॥ 'पद्ममुत्थापयेत्पूर्व नाडी संचालयेत्ततः। मरुञ्चतुष्टयं पश्चात्प्रचारयतु चेतसि ॥७१२॥
चिन्तन करना चाहिए । ऐसा करनेसे यदि मन स्थिर हो तो ध्येय अर्हन्त आदिके न होते हुए भी ध्याताको ऐसा प्रतिभास होता है मानो वह साक्षात् अर्हन्तका दर्शन कर रहा है। ऐसा करते-करते ध्याता स्वयं तद्र प होकर एक दिन वास्तवमें अर्हन्त बन जाता है ।
लौकिक ध्यानका वर्णन अलौकिक ध्यानका वर्णन हो चुका । अब उसकी चूलिकाके रूपमें दृष्ट और अदृष्ट फलके दाता लौकिक ध्यानका कुछ वर्णन करते हैं ॥ ७०८ ॥
___ नाकके अग्र भागमें दृष्टिको स्थिर करके और मनको भौंहोंके बीचमें स्थापित करके जो पंचपरमेष्ठीके वाचक 'ओं' मन्त्रका ध्यान करता है वह दिव्य ज्ञानको प्राप्त करता है ॥ ७०९ ॥ जिस-जिस इन्द्रियमें यह मनको स्थिर करता है, इसे उस-उस इन्द्रियमें बाह्य पदार्थोके आश्रयसे होनेवाला सुख प्राप्त होता है ।।७१०॥ ध्यानके दो भेद हैं-एक स्थूलध्यान, दूसरा सूक्ष्मध्यान । स्थूलध्यान किसी तत्त्वका साहाय्य लेकर होता है और सूक्ष्मध्यान बीजपदका साहाय्य लेकर होता है । स्थूलध्यानसे इच्छित वस्तुको प्राप्ति होती है और सूक्ष्मध्यानसे उत्तम पद मोक्ष प्राप्त होता
लौकिक ध्यानकी विधि पहले नाभिमें स्थित कमलका उत्थापन करे । फिर नाडीका संचालन करे। फिर जो पृथ्वी, अग्नि, वायु और जल ये चार वायुमण्डल स्थित हैं उनको आत्मामें प्रचारित करे ॥ ७१२ ॥
भावार्थ-योग अथवा ध्यानके आठ अंग हैं—यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा,ध्यान और समाधि । ध्यानकी सिद्धि और अन्तरात्माकी स्थिरताके लिए प्राणायामको भी प्रशंसनीय बतलाया है। प्राणायामके तीन भेद हैं-पूरक, कुम्भक और रेचक । नासिकाके द्वारा वायुको
१. चूलिकाव्याख्यया । २. ॐकारम् । ३. भ्रूमध्ये । ४. स्पर्शनादौ। ५. आरोपयेत् । ६. नाभी स्वभावेन स्थितं कमलं चालयेत्। पश्चान्नालाकारेण नाडौं नालिका संचालयेत् । नाड्या मरुतः हृदयं प्रति प्रापयेत् । पश्चात् मरुच्चतुष्टयं पृथ्वो-अप-तेजो-वायुमण्डलानि नासिकामध्ये सक्ष्मानि स्थितानि सन्ति तानि चेतसि आत्मविषये प्रचारयतु योजयतु ।