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दध्नः सपिरिषात्मानमुपायेन शरीरतः। पृथक्रियेत तस्वीविरं संसर्गचामपि IIRAM पुष्पामोदौ तरुच्छाये यासकामियाले।
तहत्ती देहरेहस्थी यहा लपविम्बवत् ॥२६॥ आत्मा उससे अलग ही रहता है ॥ ७२४ ॥ जैसे घी और दहीका सम्बन्ध पुराना है फिर भी जानकार लोग उपायके द्वारा दहीसे घीको अलग कर लेते हैं वैसे ही इस आत्माका शरीरके साथ यद्यपि बहुत पुराना सम्बन्ध है, फिर भी तत्त्वके ज्ञाता पुरुष उपायके द्वारा आत्माको शरीरसे अलग कर लेते हैं ।। ७२५ ॥ अथवा जैसे पुष्प साकार है किन्तु उसकी गन्ध निराकार है, या वृक्ष साकार है किन्तु उसकी छाया निराकार है अथवा मुख साकार है किन्तु उसका प्रतिबिम्ब निराकार है वैसे ही शरीर और शरीरमें स्थित आत्माको जानना चाहिए ।। ७२६ ॥
____ भावार्थ-प्रश्नकर्ताका कहना है कि जो साकार होता है वह विनाशी होता है जैसे घट पट वगैरह, और जो निराकार होता है वह दिखायी नहीं देता जैसे आकाश । किन्तु आत्मा न तो साकार है क्योंकि वह नित्य है और न निराकार है; क्योंकि वह प्रत्यक्ष गम्य है । ऐसी अवस्थामें योगीजन उसका ध्यान कैसे करते हैं ? इस प्रश्नका समाधान अनेक दृष्टान्तोंके द्वारा ग्रन्थकारने किया है। उनका कहना है कि संसार दशामें आत्मा शरीरके बिना नहीं रहता। किन्तु इसका यह मतलब नहीं है कि शरीर और आत्मा दोनों एक हैं। जैसे पानी में पड़ा हुआ तेल पानीमें रहकर भी उससे अलग है, वैसे ही शरीरमें रहकर भी आत्मा उससे अलग है। इसपर यह प्रश्न हो सकता है कि आत्मा तो शरीरसे अलग प्रतीत नहीं होता। शरीरमें कष्ट होनेपर आत्माको भी कष्टका अनुभव होता है फिर दोनोंका सम्बन्ध भी अनादि है। इस प्रश्नको मनमें रखकर ग्रन्थकारका कहना है कि देखो, दही और घीका सम्बन्ध अनादि है; फिर भी जानकार लोग दहीको मथकर उसमेंसे घीको अलग कर लेते हैं । किन्तु आत्मा और शरीर तो दही और घीकी तरह एकमेक नहीं है, तब यदि तत्त्वद्रष्टा पुरुष शरीरसे आत्माको पृथक कर लें तो इसमें कौन-सी अनोखी बात है ? इस तरह शरीरसे भिन्न आत्माको मानकर भी प्रश्नकर्ताका यह प्रश्न खड़ा ही रहता है कि जो न साकार है और न निराकार, उसका ध्यान कैसे किया जाता है। उसके समाधानके लिए ग्रन्थकारने वात्माकी साकारता अथवा निराकारताका उपपादन करनेके लिए तीन दृष्टान्त दिये हैं। पुष्प और उसकी गन्ध, वृक्ष और उसकी छाया तथा मुख और उसका प्रतिबिम्ब । जैसे पुष्प, वृक्ष और मुख साकार हैं वैसे ही शरीर भी साकार है । तथा जैसे पुष्पकी गन्ध, वृक्षकी छाया और मुखका प्रतिबिम्ब निराकार है वैसे ही आत्मा भी निराकार है । यदि देखा जाये तो गन्ध, छाया और प्रतिविम्ब भी साकार हैं, किन्तु पुष्य, वृक्ष और मुखकी तुलनामें तो वे निसकार ही ठहरते हैं। वैसे ही एक दृष्टि से तो आल्मा भी साकार है, क्योंकि बात्माको शरीराकार माना गया है। किन्तु शरीरको तुलनामें तो वह निराकार ही ठहरता है। अतः जैसे पुष्पकी गन्ध पुष्परूप होनेसे, वृक्षकी छाया वृक्षाकार होनेसे और मुखका प्रतिविम्ब मुखकी आकृतिको धारण करनेसे साकार है और स्वतः निराकार है वैसे ही आत्मा शरीर प्रमाण होनेके कारण साकार है और शरीरको तरह उसमें अक्यब
१. पुष्पं साकारं, परिमलो निराकारः ।