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उपासकाम्ययन इममेव मन्त्रमन्ते पञ्चत्रिंशत्प्रकारवर्णस्थम् । मुनयो जपन्ति विधिवत्परमपदावाप्तये नित्यम् ॥६०४॥ मन्त्राणामखिलानामयमेकः कार्यद्भवेत्सिवः । 'अस्यैकदेशकार्य परे तु कुर्युन ते सर्वे ॥६०५॥ कुर्यात्करयोासं कनिष्ठिकान्तः प्रकारयुगलेन । तदनु दाननमस्तककवचालविधिविधातव्यः ॥६०६।। संपूर्णमतिस्पष्टं सनादमानन्दसुन्दरं जपतः ।
सर्वसमीहितसिद्धिनिःसंशयमस्य जायेत ॥६०७।। कब छोड़ना चाहिए, इस क्रियाका अच्छा अभ्यास होना चाहिए । जो इन सब बातोंका अभ्यासी होकर जप करता है वह सच्चा ध्यानी बन कर मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
___ मुनि भी मोक्षकी प्राप्तिके लिए इसी पैंतीस अक्षरोंके नमस्कारमन्त्रको सदा विधिपूर्वक जपते हैं ॥६०४॥ यह अकेला ही सब मन्त्रोंका काम करता है किन्तु अन्य सब मन्त्र मिलकर भी इसका एक भाग भी काम नहीं करते ॥६०५॥
[जप प्रारम्भ करनेसे पूर्व सकलीकरण विधान ]
दोनो हाथोंकी अँगुलियोंपर अँगूठेसे लेकर कनिष्ठिका अंगुलीतक दो प्रकारसे मन्त्रका न्यास करना चाहिए। उसके पश्चात् हृदय, मुख और मस्तकका सकलीकरण विधि करना चाहिए ॥६०६॥
भावार्थ-ॐ हां णमो अरहंताणं हां अंगुष्ठाभ्यां नमः, यह मन्त्र पढ़कर दोनों अंगूठोंको पानीमें डुबोकर शुद्ध करे । 'ॐ हीं णमो सिद्धाणं ही तर्जनीभ्यां नमः' इस मन्त्रको पढ़कर दोनों तर्जनी अंगुलियोंको शुद्ध करे। 'ॐ हूं णमो आइरियाणं हूं मध्यमाभ्यां नमः' इस मन्त्रको पढ़कर दोनों बीचकी अंगुलियोंको शुद्ध करे । 'ॐ हौं णमो उवझायाणं ह्रौं अनामिकाभ्यां नमः' इस मन्त्रको पढ़कर दोनों अनामिका अँगुलियोंको शुद्ध करे । 'ॐ हः णमो लोए सव्वसाइणं, हः कनिष्ठिकाभ्यां नमः' इस मन्त्रको पढ़कर दोनों कनिष्ठिका अंगलियोंको शुद्ध करे। फिर 'ॐ हीह.हो हः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः' इस मन्त्र को पढ़ दोनों हथेलियोंको दोनों तरफसे शुद्ध करे । 'ॐ हां णमो अरहताणं हां मम शीर्ष रक्ष रक्ष स्वाहा' इस मन्त्रको पढ़कर मस्तकपर पुष्प डाले। 'ॐ ही णमो सिद्धाणं हीं मम वदनं रक्ष रक्ष स्वाहा' इस मन्त्रको पढ़कर अपने मुखपर पुष्प डाले। 'ॐ हूं, 'णमो आइरियाणं ह हृदयं रक्ष रक्ष स्वाहा' इस मन्त्रको पढ़कर छातीपर पुष्प डाले। 'ॐ हौं णमो उवज्झायाणं ह्रौं मम नामि रक्ष रक्ष स्वाहा' इस मंत्रको पढ़कर नाभिका स्पर्श करे । ॐः णमो लोए सब्बसाहूणं हः मम पादौ रक्ष रक्ष स्वाहा' इस मंत्रको पढ़कर पैरोंपर पुष्प डाले । इस तरह यह सकलीकरण क्रिया मन्त्र जपनेसे पूर्व करना चाहिए ।
[नमस्कार मन्त्रके जपका फल तथा माहात्म्य ] ___ जो आनन्दपूर्वक प्राणवायुके साथ सम्पूर्णमन्त्रका अत्यन्त स्पष्ट जप करता है उसके सब मनोरथ पूर्ण होते हैं । इसमें कोई सन्देह नहीं है ॥६०७॥
१. मन्त्रस्य । २. णमो अरहताणं' एतावन्मात्रेण । ३. 'कनिष्ठिकातः-अ. ज ।