________________
सोमदेव विरचित
[श्लो० ११२प्रेकृतिस्थित्यनुभागप्रदेशप्रविभागतः। चतुर्धा भिद्यते बन्धः सर्वेषामेव देहिनाम् ॥१२॥ आत्मलाभं विदुर्मोक्षं जीवस्यान्तर्मलक्षयात् । नाभावो नाप्यचैतन्यं न चैतन्यमनर्थकम् ॥११३॥ वन्धस्य कारणं प्रोक्तं मिथ्यात्वासंयमादिकम् । रत्नत्रयं तु मोक्षस्य कारणं संप्रकीर्तितम् ॥११४॥ प्राप्तागमपदार्थनामश्रद्धानं विपर्ययः।
संशयश्च त्रिधा प्रोक्तं मिथ्यात्वं मलिनात्मनाम् ॥११५॥ को शुद्ध कर लिया जाता है वैसे ही जीव और कर्मका सम्बन्ध अनादि होने पर भी सान्त है,उसका अन्त हो जाता है। यह बन्ध चार प्रकारका है-प्रकृतिबन्ध, स्थितिबन्ध, अनुभाग बन्ध और प्रदेशवन्ध । यह चारों प्रकारका वन्ध सभी शरीरधारी जीवोंके होता है ॥१११-११२॥
भावार्थ-प्रकृति शब्दका अर्थ स्वभाव है। कर्मोंमें ज्ञानादिको घातनेका जो स्वभाव उत्पन्न होता है,उसे प्रकृतिबन्ध कहते हैं । कर्मों में अपने अपने स्वभावको न त्यागकर जीवके साथ बंधे रहनेके कालकी मर्यादाके पड़नेको स्थितिबन्ध कहते हैं । उनमें फल देनेकी न्यूनाधिक शक्ति के होनेको अनुभाग बन्ध कहते हैं और न्यूनाधिक परमाणु वाले कर्मस्कन्धोंका जीवके साथ सम्बन्ध होने को प्रदेशबन्ध कहते हैं। सारांश यह है कि जीवके योग और कषायरूप भावोंका निमित्त पाकर जब कार्मण वर्गणाएँ कर्मरूप परिणत होती हैं तो उनमें चार बातें होती हैं, एक उनका स्वभाव, दूसरे स्थिति, तीसरे फल देनेकी शक्ति और चौथे अमुक परिमाणमें उसका जीवके साथ सम्बद्ध होना। इन चार बातोंको ही चार बन्ध कहते हैं। सभी जीवोंके दसवें गुणस्थान तक ये चारों प्रकारके बन्ध होते हैं । आगे कषायका उदय न होनेसे स्थितिबन्ध
और अनुभाग बन्ध नहीं होता। तथा चौदहवें गुणस्थानमें योगके भी न रहनेसे कोई बन्ध नहीं होता। इस तरह अनादि होने पर भी यह बन्ध भव्य जीवके सान्त होता है।
मोक्षका स्वरूप रागद्वेषादिरूप आभ्यन्तर मलके क्षय हो जानेसे जीवके स्व स्वरूपकी प्राप्तिको मोक्ष कहते हैं। मोक्षनें न तो आत्माका अभाव ही होता है, न आत्मा अचेतन ही होता है और चेतन होने पर भी न आत्मामें ज्ञानादिका अभाव ही होता है ॥११३॥
__ भावार्थ-पहले बतला आये हैं कि बौद्ध आत्माके अभाव को ही मोक्ष मानते हैं, वैशेषिक आत्माके विशेष गुणोंके अभावको मोक्ष कहता है और सांख्य ज्ञानादिसे रहित केवल
चैतन्यको ही मुक्त आत्माका स्वरूप मानता है। इन सभीको दृष्टिमें रखकर ग्रन्थकारने मोक्षका स्वरूप बतलाया है।
बन्ध और मोक्षके कारण मिथ्यात्व असंयम वगैरहको बन्धका कारण कहा है और सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र रूप रत्नत्रयको मोक्षका कारण कहा है ॥११॥
मिथ्यात्वके भेद मलिन आत्माओंमें पाये जानेवाले मिथ्यात्वके तीन भेद हैं-१. देव, शास्त्र और उनके ___१. 'प्रकृतिः स्यात् स्वभावोऽत्र स्वभावादच्युतिः स्थितिः । तद्रसोऽप्यनुभागः स्यात्प्रदेशः स्यादियत्वगः ॥'