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भवति चात्र श्लोकः—
उपासकाध्ययन
बालवृद्धगदग्लानान्मुनीनौद्दायनः स्वयम् । भजेन्निर्विचिकित्सात्मा स्तुतिं प्रापत्पुरन्दरात् ॥ १७२ ॥ इत्युपासकाध्ययने निर्विचिकित्सासमुत्साहनो नाम नवमः कल्पः । श्रन्तं दुरन्तसंचारं बहिराकारसुन्दरम् । न श्रद्दध्यात्कुदृष्टीनां मतं किम्पाकसंनिभम् ॥ १७३ ॥ श्रुतिशाक्यशिवाम्नायः क्षौद्र मांसासवाश्रयः । दन्ते ममोक्षाय विधिरत्रैतदन्वयः ॥ ९७४ ॥ भर्मिभस्मजटावोट योगपट्टकटासनम् । मेखलाप्रोक्षणं मुद्रा 'वृषीदण्डः करण्डकः ॥ १७५॥ शौचं मज्जनमाचामः पितृपूजान लार्चनम् । अन्तस्तत्त्वविहीनानां प्रक्रियेयं विराजते ॥ १७६॥ को देवः किमिदं ज्ञानं किं तत्त्वं कस्तपः क्रमः । को बन्धः कश्च मोक्षो वा यत्तत्रेदं न विद्यते ॥ १७७॥ श्राप्तागमाविशुद्धत्वे क्रिया शुद्धापि देहिषु । नाभिजातफलप्राप्त्यै विजातिष्विव जायते ॥ १७८॥
इन्द्र द्वारा प्रशंसित हुआ ।"
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इसके विषय में भी एक श्लोक है, जिसका आश्रय इस प्रकार है - "बाल, वृद्ध और करनेवाला, निर्विचिकित्सा अंगका पालक, राजा उद्दायन
रोगसे पीड़ित मुनियोकी स्वयं सेवा
इस प्रकार उपासकाध्ययनमें निर्विचिकित्सा अङ्गका वर्णन करनेवाला नौवाँ कल्प समाप्त हुआ ।
[ अब अमूढदृष्टि अङ्गको बतलाते हैं- ]
जिसके अन्दर बुराइयाँ भरी हैं किन्तु जो बाहरसे सुन्दर है, किम्पाकफलके समान ऐसे मिथ्याष्टियों के मतपर श्रद्धा मत करो ॥ १७३॥
वैदिक मतमें मधुके प्रयोगका विधान है, बौद्धमत में मांस भक्षणका विधान है, और शैवमत में मद्यपानका विधान है । इन आम्नायों में जो यज्ञ और मोक्षकी विधियाँ है, उनमें भी उक्त वस्तुओंके सेवनका विधान आता है ॥१७४॥
नशा करना, भस्म रमाना, जटाजूट रखना, योगपट्ट, कटिसूत्र-धारण, यज्ञके लिए पशुवध करना, मुद्रा, कुशासन, दण्ड, पुष्प रखनेका पात्र, शौच, स्नान, आचमन, पितृतर्पण और अग्निपूजा, ये सब आत्मतत्त्वसे विमुख साधकोंकी प्रक्रिया है ॥ कौन देव है ? तत्त्व क्या है, तपस्याका क्रम क्या है ? बन्ध किसे कहते हैं ? मोक्षका क्या स्वरूप है ? ये सब बातें वहाँ नहीं हैं ॥१७५-१७७॥
यदि देव और शास्त्र निर्दोष न हों तो प्राणियोंकी शुद्ध क्रिया भी श्रेष्ठ फलको नहीं दे
१. भजन्निविचिकित्स्यात्सास्तुतिं प्राप पुरन्दरात् ॥ ७० ॥ - धर्मरः पृ० ७१० । २. विषवृक्षफलप्रायं बहिःशोभामनोहरम् । महामोहलतामूलं मतं मिथ्यादृशां मतम् ॥४०॥ प्रबोधसार । ३. श्रौतबुद्धशिवाम्नाया मघुमा॑सा॒सवाश्रयाः । सुधिया न प्रशस्यन्ते ब्रह्मतत्वेऽपि संस्थिताः ॥ ४१ ॥ - प्रबोधसार । वेदे क्षौद्रस्वीकारः । बौद्धमते मांसाम्नायः । शैवमते मद्यम् । ४. यज्ञेन कृत्वा मोक्षनिमित्तं विधिः क्रियते (?) ५. - जूट - ब० । ६. वृषीव्रतिनां कुशासनम् ।