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-२७७ ] उपासकाध्ययन
१३१ च मृतिनिकेतनं प्रायश्चेतनम् । य एवंविधां सुरां पिबति न तेन सुरा पीता भवतीति निखिलमखशिखामणौ सौत्रामणौ मदिरास्वादाभिसंधिरनुमतविधिरस्ति । यैश्च पिष्टोदकगुडधातकीप्रायैर्वस्तुकायैः सुरा संधीयते तान्यपि वस्तूनि विशुद्धान्येवेति चिरं चेतसि विचार्यानार्यविद्यार्विधानः कृतमद्यपानस्तन्माहात्म्यात्समाविर्भूतमनोमहामोहः कौपीनमपहाय हारहरव्यवहारातिलचितमातङ्गिकागीतानुगतकरतालिकाविडम्बनावसरो ग्रहगृहीतशरीर इवानीतानेकविकारः पुनर्बुभुक्षाश्रुशुक्षिणिक्षीणकुक्षिकुहरस्तरसमपि भक्षितवान् । प्रादुर्भवदुःसहोद्रेकमदनो मातङ्गी कामितवान् । भवति चात्र श्लोकः- -
हेतुशुद्धः श्रुतेर्वाक्यात्पीतमद्यः किलैकपात् ।
मांसमातङ्गिकासगमकरोन्मूढमानसः ॥२७७॥
इत्युपासकाध्ययने मद्यप्रवृत्तिदोषदर्शनो नाम द्वाविंशः कल्पः। श्रूयतां मद्यनिवृत्तिगुणस्योपाख्यानम्-अशेषविद्यावैशारद्यमदमत्तमनीषिमत्तालिकुलकेलिकमलनाभ्यां वलभ्यां पुरि खात्रचरित्रशीलः करवालः, कपाटोद्धाटनपटुवटुः, लेना पड़ता है जो मृत्युका घर है। किन्तु समस्त यज्ञोंके सिरमौर सौत्रामणि नामके यज्ञमें शराब पीनेकी अनुमति है, और लिखा है कि जो इस विधिसे मदिरापान करता है, उसका मदिरापान मदिरापान नहीं है । तथा पीठी, जल, गुड़, धतूरा आदि जिन वस्तुओंसे शराब बनती है वे भी शुद्ध ही होती हैं ।' ऐसा चिरकाल तक मनमें विचार कर उसने शराब पी ली। उसके पीते ही उसका मन चंचल हो उठा । नशेमें मस्त होकर उसने अपनी लंगोटी खोल डाली। और शराब पीकर मत्त हुई भिल्लनियोंके गीतके साथ तालियाँ बजा-बजा कर कूदने लगा। उस समय उसकी दशा ऐसी हो गयी मानो उसके शरीरमें कोई भूत घुस गया है। उसने अनेक विकृत चेष्टाएँ की और फिर भूखसे पीड़ित होकर मांस भी खा लिया। उससे उसे असह्य कामोद्रेक हुआ और उसने भिल्लनीको भी भोगा।
इस विषयमें एक श्लोक है जिसका भाव इस प्रकार है_ “मद्यको उत्पन्न करने वाली वस्तुओंके शुद्ध होनेसे तथा वेदमें लिखा होनेसे मूढ़ एकपातने मद्य पी लिया और फिर उसने मांस भी खाया और भिल्लनीको भी भोगा" ॥२७७॥
इस प्रकार उपासकाध्ययनमें मद्यके दोष बतलानेवाला बाईसवाँ कल्प समाप्त हुआ।
....... १० मद्यवती धूर्तिल नामक चोरकी कथा अब मद्य त्यागके लाभके सम्बन्धमें कथा सुनें
वलभी नगरीमें पाँच चोर रहते थे । उनमें से करवाल नामका चोर मकानों में सेंध लगाने में कुशल था। वटु दरवाजा खोलने में कुशल था। धूर्तिल महानिद्रा बुलानेमें कुशल था। शारद
१. मरणलक्षणमेव । २. प्रायश्चित्तम् । ३. निष्पाद्यते। ४. निधानः आ० । ५. मद्यपान । ६. अग्नि । ७. मांसम् । ८. सेवितवानित्यर्थः । ९. चातुर्य । १०. मनीषिण एव मत्तभ्रमराः। ११. क्रीडा । १२. मध्यकोशसदशायाम् । १३. चौरकर्म । १४. नाम ।