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उपासकाध्ययन प्रदायास्थात् । मृगसेनोऽपि तया निरुद्धवेश्मप्रवेशनस्तन्मन्त्रस्मरणशक्तचित्तः पुराणतरतरुभिसमुच्छीर्षे विधाय सान्द्रं निद्रायन्नेतत्तरुभित्ताभ्यन्तरविनिःसृतेन सरोसपसुतेन दष्टः कष्टमवस्थान्तरमाविष्टो "व्युष्टसमये घण्टया दृष्टः। पुनरनेन सार्धमुर्षर्बुधमध्यानुगमोचितनिश्चययात्मनि विहितबहुनिन्दया शोचितश्च । ततः सा 'यदेवास्य व्रतं तदेव ममापि । जन्मान्तरे चायमेव मे पतिः' इत्यावेदितनिदाना समित्समिद्धमहसि द्रविणोदसि हव्यसमस्नेहं देहं जुहाव।
__ अथ विलासिनीविलोचनोत्पलपुनरुक्तचन्दनमालायां विशालायां" पुरि विश्वगुणा महादेवीश्वरो विश्वम्भरो विश्वम्भरो नाम नृपतिः धनश्रीपतिः पिता च दुहितुः "सुबन्धोगुणपालो नाम श्रेष्ठी। तस्य किल गुणपालस्य मनोरथपान्थप्रीतिप्रपापालिकायामेतस्यां "कुलपालिकायामनेन मृगसेनेन समापन्नसत्त्वायां" सत्याम् , असौ वसुधापतिर्विटकथासंसृष्टतया प्रतिपन्नपाञ्चजनीनभावो नर्मभर्मनाम्नो नर्मसचिवस्य सुताय नर्मधर्मणे गुणपालश्रेष्ठिनमखिलकलाकलापालंकृतरूपसमन्वितां सुतामयाचत । श्रेष्ठी दुष्प्रक्षेन राज्ञा तथा याचितः 'यदि नर्मसचिवसुताय सुतां विरामि तदावश्यं कुलक्रमव्यतिक्रमो दुरपवादोपक्रमश्च । अथ "स्वामिशासनमतिक्रम्यात्रैवासे तदा सर्वस्वापहारः प्राणसंहारश्च' इति निश्चित्य तरह गाली-गलौज बकती-झकती अपनी झोपड़ीमें चली गयी और अन्दरसे दरवाजा बन्द करके बैठ गयी।
मृगसेन भी अपनी पत्नीके द्वारा घरमें प्रवेश करनेसे रोक दिये जानेपर पञ्च-नमस्कार मन्त्र का स्मरण करते हुए एक पुराने वृक्षकी जड़को तकिया बनाकर गाढ़ नोंदमें सो गया । जब वह गाढ़ नींदमें था तभी उस वृक्षकी जड़से निकलकर एक साँपने उसे डस लिया और वह बड़े कष्टसे मर गया। प्रभात होनेपर घण्टाने उसे उस अवस्थामें देखा । उसने अपनी निन्दा करते हुए बड़ा पश्चात्ताप किया। और उसीके साथ अग्निमें जल जानेका निश्चय किया। तथा उसने निदान किया कि जो इसका व्रत था वही मेरा भी है और दूसरे जन्ममें भी यही मेरा पति हो । उसके बाद उसने आग प्रदीप्त की और उसमें होम सामग्रीके समान स्नेहसे पूरित शरीरको होम दिया।
विशाला नगरीमें विश्वम्भर नामका राजा राज्य करता था। उसकी पटरानीका नाम विश्वगुणा था। वहीं गुणपाल नामका सेठ रहता था। उसकी पत्नीका नाम धनश्री था और पुत्रीका नाम सुबन्धु था। गुणपाल सेठकी पत्नी धनश्री गर्भवती हुई और मृगसेन धीवरका जीव उसके गर्भमें आया। राजा विश्वम्भरको विटोंकी संगतिके कारण भाण्डजन बहुत प्रिय थे। अतः उसने नर्मभर्म नामके विदूषकके पुत्र नर्मधर्मके लिए गुणपालसे उसकी समस्त कलाओंमें प्रवीण सुन्दरी कन्याकी याचना की । दुर्बुद्धि राजाकी इस माँगसे गुणपाल विचारमें पड़ गया । 'यदि विदूषकके पुत्रको कन्या देता हूँ तो अवश्य ही कुलपरम्पराका लंघन होता है और अपवाद भी फैलता है। और यदि राजाज्ञाको न मानकर भी यहाँ रहता हूँ तो सर्वस्व अपहरणके साथ-साथ प्राण भी जाते हैं।' ऐसा सोचकर उसने रलजटित करधौनीसे शोभित अपनी पत्नीको तो अपने
१. पञ्चनमस्कार मन्त्र । २. जीर्णवृक्षखण्डकाष्ठम् । ३. निद्रां कुर्वन् । ४. सर्पण । ५. प्रभातकाले। ६. अग्नि । ७. अग्नो। ८. घृतवत् चिक्कणम् । ९. आहुतीचकार । १०. तोरण । ११. उज्जयिन्याम १२. सुबन्धुपुत्रीतातः। १३. भार्यायाम् । १४. गर्भिण्याम् । १५. पाञ्चजनीनः भण्डप्रियः । .१६. ददामि । १७. राजादेशम् ।