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ब्रह्मणे ब्राह्मणमालभेत, इन्द्राय क्षत्रियं, मरुद्भ्यः वैश्यं, तमसे शूद्रम्, उत्तमसे तस्करं, आत्मने क्लीबं, कामाय पुंश्चलमप्रतिक्रुष्टाय मागधं गीताय सुतम्, आदित्याय स्त्रियं गर्भिणीं, सौत्रामणौ य एवंविधां सुरां पिवति, न तेन सुरा पीता भवति । सुराचं तिस्र एव श्रुतौ संमताः - पैष्टी, गौडी, माधवी चेति । गोसवे ब्राह्मणो गोसवेनेष्ट्वा संवत्सरान्ते मातरमप्यभिलषति । उपेहि मातरम्, 1 उपेहि स्वसारम् ।
षट्शतानि नियुज्यन्ते पशूनां मध्य मेऽहनि । अश्वमेधस्य वचनादूनानि पशुभिस्त्रिभिः॥३६८॥ * महोक्षो वा "महाजो वा श्रोत्रियाय विशस्यते । निवेद्यते तु दिव्याय स्रक्सुगन्धनिधिर्विधिः ॥ ३६६॥ गोसवे सुरभिं हन्याद्राजसूये तु भूभुजम् । अश्वमेधे हयं हन्यात्पौण्डरीके च दन्तिनम् ||४०० ॥ ̈ औषध्यः पशवो वृक्षास्तिर्यञ्चः पक्षिणो नराः । यज्ञार्थं निधनं प्राप्ताः प्राप्नुवन्त्युच्छ्रितां गतिम् ॥ ४०२ ॥
उपासकाध्ययन
ब्रह्म के लिए ब्राह्मणका वध करना चाहिए, इन्द्रके लिए क्षत्रियका वध करना चाहिए, वायुके लिए वैश्यका वध करना चाहिए, तमके लिए शूद्रका वध करना चाहिए, गाढ़तमके लिए चोरका वध करना चाहिए, आत्माके लिए नपुंसकका वध करना चाहिए, कामके लिए बदमाशका वध करना चाहिए, अप्रतिक्रुष्टके लिए मागधका वध करना चाहिए, गीतके लिए पुत्रका वध करना चाहिए, सूर्यके लिए गर्भिणी स्त्रीका वध करना चाहिए । सौत्रामणि यज्ञमें जो अमुक प्रकारकी शराब पीता है वह शराब नहीं पीता । तीन प्रकारकी शराब वेदसम्मत है - पैष्टी – जो जौ वगैरहके आटेसे बनायी जाती है, गौडी - जो गुड़से बनायी जाती है, और माधवी, जो महुए से बनती है । गोसव यज्ञमें ब्राह्मण तुरतके जन्मे हुए गौके बछड़ेसे यज्ञ करके वर्षके अन्त में माता से भी भोग करता है। माता के पास जाओ, बहनके पास जाओ ।
अश्वमेध यज्ञमें मध्यके दिन तीन कम छह सौं अर्थात् पाँच सौ सत्तानवे पशु मारे जाते हैं ऐसा वचन है ॥ ३९८ ॥ श्रोत्रियके लिए महान् बैल अथवा बकरा मारा जाता है । तथा माला गन्ध वगैरह विधिपूर्वक अर्पित की जाती है ॥ ३९९॥
गोसव यज्ञमें गायका वध करना चाहिए । राजसूय यज्ञमें राजाका वध करना चाहिए । अश्वमेधमें घोड़ेका वध करना चाहिए और पौण्डरीक यज्ञमें हाथीका वध करना चाहिए ||४०० || औषधि, पशु, वृक्ष, तिर्यञ्च, पक्षी और मनुष्य ये सब यज्ञ में मारे जाने से उच्चगति पाते हैं ॥४०१ ॥
१. 'ब्रह्मणे ब्राह्मणमालभते । क्षत्राय राजन्यम् । मरुद्भघो वैश्यम् । तपसे शूद्रम् । तमसे तस्करम् । नारकाय वीरहणम् । पाप्मने क्लीबम् । आक्रयाया योगूम् । कामाय पुंश्चलम् । अतिक्रुष्टाय मागधम् । गीताय सूतम् । नृत्ताय शैलूषम् । - तैत्तिरीय ब्राह्मण ३, ४ वाजसनेयी संहिता ३०, ५ में तथा शतपथ ब्राह्मण १३, ६, २ में भी पाठभेदके साथ उक्त उद्धरण मिलता है । २. 'गौडी पैष्टी च माध्वी च विज्ञेया त्रिविधा वह श्लोक सुरा । - मनुस्मृति ११,९४ । ३. वाजसनेयी संहिता २४, ४० की उव्वट और महीघ्रकी टीका में पाया जाता है । उसमें उत्तरार्ध इस प्रकार है- 'अश्वमेधस्य यज्ञस्य नवभिश्चाधिकानि च । ४. 'महोक्षं वा महाजं वा श्रोत्रियायोपकल्पयेत् । सत्क्रियान्वासनं स्वादु भोजनं सूनृतं वचः ॥ १०९ ॥ ' - याज्ञवल्क्यस्मृति, पृ० ३४ । उक्षो वृषभः । ५. छागः । ६. हिंस्यते । ७. 'ओषध्यः पक्षिणस्तथा । प्राप्नुवन्त्युत्सृतीः पुनः ॥ ४० ॥ - मनुस्मृति अ० ५ ।