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सोमदेव विरचित
[ कल्प ३१, श्लो० ४३०
शकुन्तयः
शेषशकुन्तसंभवावहा गुहा समस्ति । यस्यां जटायु- वैनतेय - वैशम्पायनप्रभृतयः प्रादुरासन् । तस्यामेव तस्योत्पत्तिः । तां च गुहामहं पुष्यश्चानेकशो नन्दाभगवतीयात्रानुसारित्वात्साधु जानोवः । प्रतिकृतिश्चास्यानेकवर्णा मनुष्य सवर्णा * च ।
भूपालः - ( सञ्जतकुतूहलः ) अमात्य, कथं तद्दर्शनोत्कण्ठा ममाकुण्ठा स्यात् । अमात्यः - देव, मयि पुष्ये वा गते सति ।
राजा - अमात्य, भवानतीव "प्रवयाः । तत्पुष्यः प्रयातु ।
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'अमात्यः - देव, तर्हि दीयतामस्मै सरत्नालङ्कारप्रवेकं पारितोषिकम्,
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यं पाथेयं च ।
राजा - बाढम् ।
स्वामिचिन्ताचारचक्षुष्यः पुष्यस्तथादिष्टों गेहमागत्य 'आदेशं न विकल्पयेत्' इति मतानुसारी प्रयाणसामग्रीं कुर्वाणस्तया सतीव्रतपवित्रितसद्मया पद्मया पृष्टः - 'भट्ट, किमकाण्डे प्रयाणाडम्बरः ।
पुष्यः - प्रस्तुतमाचष्टे ।
भट्टिनी - भट्ट, सर्वमेतत्सचिवस्य कूटकपटचेष्टितम् । भट्टः:- भट्टिनि, किं नु खल्वेतच्चेष्टितस्यायतनम् ।
भट्टिनी - प्रक्रान्तमभाषिष्ट । भट्टः - किमंत्र कार्यम् ।
श्रग
आदि पक्षी उसी गुफा में पैदा हुए थे। उसी गुफामें किल्प नामका पक्षी उत्पन्न होता है । उस गुफाको मैं और पुष्य अच्छी तरह जानते हैं क्योंकि हम दोनों भगवती नन्दाकी यात्रा करने गये थे । उसका आकार मनुष्यकी तरह होता है और वह अनेक रंगका होता है ।
राजा - ( बड़े कौतूहलसे) मंत्री ! उसके दर्शनकी मेरी अभिलाषा कैसे सफल ? मंत्री - स्वामी ! मेरे या पुष्यके जानेसे आपकी अभिलाषा पूर्ण हो सकती है । राजा-मंत्री ! तुम बहुत वृद्ध हो इसलिए पुण्यको भेज दो ।
मंत्री - स्वामी ! तो पुण्यको उत्तम रत्नजड़ित कंकण पारितोषिक में दीजिए और रास्तेके लिए बहुत-सी आवश्यक सामग्री भी ।
राजा - अच्छा।
आज्ञा पाकर पुष्य घर आया । उसका मत था कि आज्ञामें संकल्प विकल्प नहीं करना चाहिए । अतः आते ही जानेकी तैयारी करने लगा । पतिव्रता पद्माने यह देखकर पूछा'स्वामी ! यह असमय में जाने की तैयारी क्यों ?'
पुण्य - प्रस्तुत बात को कहता है ।
पद्मा - यह सब कपटी मन्त्रीका जाल है । पुण्य - ऐसा करनेका कारण क्या ?
पद्माने सब कुछ कह सुनाया । पुण्य - फिर अब क्या करना चाहिए ?
१. गुहायाम् । २ - ३ किंजल्पपक्षिणः । ४. समाना । ५. वृद्धः । ६. कङ्कणम् । ७. प्रचुरम् । ८ तदा दिष्टो आ० । ९. कारणम् ।