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उपासकाध्ययन यिधामपात्रम् पुत्र इत्यभिधाय विधाय च यथावत्तस्य भगवतः पर्युपासनं पुनरत एव महतोऽधिगतैतेदपत्यवृत्तान्तो भावपुरमनुससार । भवति चात्र श्लोकः
अन्तःसारशरीरेषु हितायैवाहितेहितम् ।।
किं न स्यादग्निसंयोगः स्वर्णत्वाय तदैश्मनि ॥२०७॥ इत्युपासकाध्ययने वज्रकुमारस्य विद्याधरसमागमो नाम पञ्चदशः कल्पः ।
पुनर्बालभावाच्छोणच्छायकायः कोलिपल्लव इव धातकीप्रसवस्तबक इवारुणमणिकन्दुक इव च बन्धूनामानन्दनिरीक्षितामृतपीथमन्थरितमुखः सखेलं करपरम्परया संचार्यमाणः क्रमेणोत्तानशयदरहसितजानुचक्रमणगद्दालापस्पष्टक्रियापञ्चकस्थामवस्थामनुभूय मरुमार्ग इव छायापादपेन, छायापादप इव जलाशयेन, जलाशय इव कमलाकरेण, कमलाकर इव कलहंसनिवहेन, कलहंसनिवह इव रामासमागमेन, रामासमागम इव च स्मरलीलायितेन, तरुणीजनमनोमृगप्रमदवनेन यौवनेनालंचके।
___ तदनु वाढं प्ररूढप्रौढयौवनावतारसारो वज्रकुमारः पितुर्मातुश्च वंशनिवेशानवद्याभिर्विद्याभिः प्रवलितप्रतापगुप्तः प्राप्तस्त्रचरलोकाधिक्यः सुवाक्यमूर्तिनामधामस्य मामस्य मदनमदपण्यतारुण्यलावण्यारण्यवनदेवतावतरवसुमतीमिन्दुमती दुहितरं परिणीय मणिकुण्डल-रत्नशेखर-माणिक्य-शिखण्ड-किरीट कीर्तन-कौस्तुभ-कर्णपूरपुरःसरैर्नभश्चरकुमारैरनुसृतस्तं पूर्वापरावारपारतरङ्गदन्तुरकन्दराधरं क्रीडारसवर्धनोद्धरं विजयाधुमहीधरमकर उसने मुनिकी उपासना की और उनसे बच्चे का सब वृत्तान्त जानकर नगरको लौट आया ।
किसीने ठीक कहा है
'जिनके अन्तरंगमें कुछ सार है उनका अहित चाहना भी हितके लिए होता है । देखो, स्वर्णपाषाणको आगमें तपानेसे क्या वह सोना नहीं हो जाता ॥२०७॥ इस प्रकार उपासकाध्ययनमें वज्रकुमारका विद्याधरसे समागमका वर्णन करनेवाला
पन्द्रहवाँ कल्प समाप्त हुआ। बचपनके कारण वज्रकुमारके शरीरकी कान्ति अशोक वृक्षके नये पत्तोंकी तरह या धतूरेके अथवा लालमणिकी गेंदकी तरह प्रतीत होती थी। घरके आदमी उसे बड़े प्यारसे पुष्प गुच्छकी तरह देखते थे और वह हाथों हाथ घूमता था। पहले वह ऊपरको मुख किये लेटा रहता था, कुछ बड़ा होनेपर उसनेमुसकराना शुरू किया । फिर घुटनोंके बल चलने लगा। फिर तुतुलाते हुए बोलना शुरू किया। फिर स्पष्ट बोलने लगा। इस तरह क्रमसै पाँच अवस्थाओंको बिताकर वह बड़ा हुआ। और जैसे मरु भूमिका मार्ग छाया देने वाले वृक्षसे शोभित होता है, छाया वृक्ष सरोवरसे शोभित होता है, सरोवर कमलोंसे शोभित होता है, कमलसमूह राजहंसोंसे शोभित होता है, राजहंसोंका समूह स्त्रीके समागमसे शोभित होता है और स्त्रीसमागम काम विलाससे शोभित होता है वैसे ही वज्रकुमारका शरीर यौवनसे सुशोभित हो गया।
उसके बाद यौवनके भर उठनेपर पितृवंश और मातृवंशसे प्राप्त हुई निर्दोष विद्याओंके प्राप्त होनेसे उसका प्रताप और भी बढ़ गया और उसने अपने मामाकी लड़की इन्दुमतीसे विवाह
१. योगावसाने एतस्मात् सोमदत्तगुरोः। २. ज्ञातबालकवृत्तान्तः। ३. स्वर्णपाषाणे । ४. रक्त । ५. पोथं बालस्य देयं नवनीतादि । ६. यथा मरुस्थलं छायावृक्षण शोभते तथाऽयं यौवनेनालंचक्रे ।