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उपासकाध्ययन
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श्रूयतामत्रोपाख्यानम् — इहैवाने काश्चर्य समीपे जम्बूद्वीपे जनपदाभिधानास्पदे जनपदे भूमितिलकपुरपरमेश्वरस्य गुणमालामहादेवीरतिकुसुमशरस्य नरपालनाम्नो नरेन्द्रस्य श्रेष्ठी सुन्दो नाम । धर्मपत्नी चास्य जनित निखिलपरिजनहृदयानन्दा सुनन्दा नाम । अनयोः सूनुधनद-धनबन्धु-धनप्रिय-धनपाल धनदत्त- धनेश्वराणामनुजः सकलकूटकपटचेष्टित हरिर्धन्वन्तरिर्नाम । तथा तनृपतिपुरोहितस्याग्निलादयितस्योदितोदितधर्मकर्मणः सोमशर्मणः सुतो विश्वरूप- विश्वेश्वर - विश्वमूर्ति - विश्वामित्र-विश्वावसु-विश्वावलोकानामनवरजः समस्तत्रेवृत्तप्रतिलोमो विश्वानुलोमो नाम ।
द्वापि सहपांशुक्रीडितत्वात्समानशील व्यसनत्वाश्च क्षीरनीरवत्समाचरितसख्यौ द्यूतमदिरापरदारचौर्याद्यनार्यकार्य पर्यायप्रवर्त्तनमुख्यौ सन्तौ तेनावनीपतिनात्मीयनगरात्सनिकोरं निर्वासिती कुरुजाङ्गलदेशेषु वीरमतिमहादेवोवरेण वोरनरेश्वरेणाधिष्ठितं यमदण्डतरपालेनाश्रितमशेषसंसारसारसीमन्तिनीमनोहरं हस्तिनागपुरमवाप्य संपादितावस्थितौ
सकता । ऐसा अडिगपना ही सिद्धिका कारण होता है । किन्तु जो लोग जरासे सन्देह में पड़कर मूल तत्वोंमें ही सन्देह करने लगते हैं । कभी किसीको अच्छा समझ बैठते हैं तो कभी किसीको अच्छा समझ बैठते हैं । वे बे-पेन्दीकी लोटेकी तरह सदा इधर से उधर लुढ़का करते हैं और कोई भी उनकी प्रतीति नहीं करता । अतः सम्यग्दृष्टिको निःसन्देह होना चाहिए। उसे तत्त्वको समझने का प्रयत्न तो करना चाहिए किन्तु यदि वह समझ में न आये या कोई समझा न सके तो उस तत्त्वकी सत्यता में ही सन्देह नहीं कर बैठना चाहिए । यही निःशंकितपना है जो सम्यग्दर्शन प्रथम अंग है ।
१. निःशङ्कित अंगमें प्रसिद्ध अंजनचौरकी कथा
अब निःशङ्कित अङ्गके सम्बन्ध में कथा सुनिए—
इसी जम्बूद्वीप के जनपद नामक देशमें भूमितिलकपुर नामका नगर है । उसका स्वामी नरपाल नामका राजा था। उसकी पट्टरानीका नाम गुणमाला था । उसके राजश्रेष्ठीका नाम सुनन्द था । सुनन्दके समस्त परिवारके हृदयको आनन्दित करनेवाली सुनन्दा नामकी धर्मपत्नी थी । इन दोनोंके धनद, धनबन्धु, धनप्रिय, धनपाल, धनदत्त, धनेश्वर और धन्वन्तरि नाम पुत्र थे । छोटा पुत्र धन्वन्तरि सब जाल फरेब की मायामें निपुण था ।
राजाका पुरोहित धर्म-कर्म में निपुण सोमशर्मा था । उसकी पत्नीका नाम अग्निला था । उनके विश्वरूप, विश्वेश्वर, विश्वमूर्ति, विश्वामित्र, विश्वावसु, विश्वावलोक और विश्वानुलोम नामके पुत्र थे । ज्येष्ठ पुत्र विश्वानुलोम समस्त सदाचारका विद्वेषी था ।
धन्वन्तरि और विश्वानुलोम दोनों साथ-साथ खेले थे तथा दोनोंका स्वभाव और आदतें भी समान थीं, इसलिए दोनोंमें दूध और पानीकी तरह घनिष्ठ मित्रता थी। जुआ, शराब, परस्त्रीगमन और चोरी वगैरह दुराचारोंमें रत रहनेके कारण दोनोंका तिरस्कार करके राजाने उन्हें अपने देश से निकाल दिया । वहाँसे निकाले जाकर वे दोनों कुरुजांगल देशके हस्तिना
१. सदाचारशत्रुः । २. सपरिभवम् । ३. यह शब्दश: अनुवाद नहीं है ।