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उपासकाध्ययन
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सिद्धान्तेऽन्यत्प्रमाणेऽन्यदन्यत्काव्येऽन्यदीहिते। तत्त्वमाप्तस्वरूपं च विचित्रं शैवदर्शनम् ॥६६॥ एकान्तः शपथश्चैव वृथा तत्त्वपरिग्रहे । सन्तस्तत्त्वं न हीच्छन्ति परप्रत्ययमात्रतः ॥७०।। दाहच्छेदकषाऽशुद्धे हेम्नि का शपथक्रिया । दाहच्छेदकषाशुद्धे हेम्नि का शपथक्रिया ॥७१।। यदृष्टमनुमानं च प्रतीति लौकिकी भजेत् ।
तदाहुः सुविदस्तत्त्वं रहः कुहकवर्जितम् ॥७२॥ चित्रण मत्स्य पुराणमें है। ब्रह्महत्याकी कथा इस प्रकार है-ब्रह्माके गर्दभकी तरह पाँचवाँ मुख था । जब दैत्य लोग देवोंसे डरकर भागने लगे तो ब्रह्माने कहा- क्यों डरकर भागते हो ? मैं सब सुरोंको खा डालूँगा।' इससे डरकर देवतागण विष्णुकी शरणमें पहुँचे और उनसे प्रार्थना की कि आप ब्रह्माका मुख काट डालें। विष्णु बोले-'यदि मैं ब्रह्माका मुख काट डालूँगा तो उसी समय वह कटा सिर सचराचर जगतका संहार कर डालेगा। तुम शिवजीके पास जाओ। देवता शिवजीके पास गये और शिवजीने अपने नखोंसे ब्रह्माके उस पाँचवें मुखको काट डाला। इसपर ब्रह्माने कहा-तुमने बिना किसी अपराधके मेरा सिर काटा है, मैं तुम्हें शाप देता हूँ तुम ब्रह्महत्यासे पीड़ित होकर भूतलपर हाथमें खप्पर लेकर भटकते फिरोगे। इस शापसे शिवजी हाथमें खप्पर लेकर घूमने लगे । एक दिन वे नारायणके पास भिक्षाके लिए गये । विष्णुने अपने नखोंसे अपने पार्श्वको चीर डाला और रक्तको बड़ी भारी धारा बह निकली किन्तु खप्पर नहीं भरा । जब विष्णुने इसका कारण पूछा तब शिवजीने ब्रह्महत्या करनेका सब हाल उनसे कहा
और बोले कि मैं जहाँ-जहाँ जाता हूँ वहाँ यह कपाल मेरे साथ जाता है । तब विष्णु बोलेतुम स्थान-स्थानपर जाकर ब्रह्माकी इच्छा पूर्ण करो । उसके तेजसे यह कपाल ठहर जायेगा । तब शिवजीने वैसा ही किया और विष्णुके प्रसादसे वह कपाल सहस्र खण्ड होकर फूट गया। और शिवजी ब्रह्महत्याके पापसे मुक्त होगये।' इस तरहकी बातें किसी ईश्वरमें कैसे पाई जा सकती हैं।
शैवदर्शनमें तत्त्व और आप्तका स्वरूप सिद्धान्त रूपमें कुछ अन्य है, प्रमाणित कुछ अन्य किया जाता है, काव्यमें कुछ अन्य है और व्यवहारमें कुछ अन्य है। शैवदर्शन भी बड़ा विचित्र है ॥६९॥
तत्त्वको स्वीकार करनेमें एकान्त और कसम खाना दोनों ही व्यर्थ हैं । विवेकशील पुरुष दूसरोंपर विश्वास करके तत्त्वको स्वीकार नहीं करते ॥ तपाने, काटने और कसौटीपर घिसनेसे जो सोना अशुद्ध ठहरता है, उसके लिए कसम खाना बेकार है। तथा तपाने, काटने और कसौटीपर घिसनेसे जो सोना खरा निकलता है उसके लिए कसम खानेसे क्या लाभ ? जो प्रत्यक्ष, अनुमान और लौकिक अनुभवसे ठीक प्रमाणित होता है, और गोप्यता तथा माया छलसे रहित होता है विद्वान लोग उसीको यथार्थ तत्त्व मानते हैं ॥७०-७२॥
[ इस प्रकार शैव मतकी आलोचना करके ग्रन्थकार शाक्त मतकी आलोचना करते हैं। यहाँ यह बतला देना आवश्यक है कि शैवदर्शन और शाक्तदर्शनका पारस्परिक सम्बन्ध आत्मा और शरीर जैसा है । दोनोंके सिद्धान्त लगभग मिलते हुए हैं। शैवदर्शनमें पूर्ण शिवभावको प्रकट करनेके तीन उपाय बतलाये हैं-१ शांभव उपाय-इसमें पूर्ण अनुभवी गुरुसे दीक्षा ली जाती है और उसीसे