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कचन, ताकरि मनुष्य लोक की हद है। तहाँ तिष्ठते चारयों तरफ चारि जिनमन्दिर तिनका कथन तथा अष्टम द्वीप नन्दीश्वर ताविर्षे चारि अञ्जनगिरि, एक-एक अनगिरि सम्बन्धी चारि-चारि बावड़ी, तिन बावड़ीनि के मध्यभाग सोलह दधिगिरि पर्वत तथा बत्तीस रतिकर पर्वत सो यह पर्वत नीचे तो अनेक प्रकार रतनमई विचित्र शोभा को धरैं हैं और ऊपरि के शिखर लाल हैं तातें रतिकर नाम कहा है। ऐसे ही नीवै तौ अनेक रत्रमयी अरु तिनके शिखर ऊपरतें श्याम सो अअनगिरि हैं तथा एक-एक बावड़ो सम्बन्धी च्यारि-च्यारि बनन का कथन तथा इन पर्वतन में तिष्ठते बावन चैत्यालय तिनका कथन है तथा ग्यारहवें कुण्डलद्वीप के मध्यभाग विर्षे कुण्डलगिरि पर्वत है तहाँ तिष्ठते च्यारि जिनमन्दिर हैं तिनका कथन तथा असंख्यातेद्वीपन में तिष्ठते असंख्याते व्यन्तरदेवन के नगरन की रचना, रुकगिरि तेरहमा द्रोप विष मध्य भाग तिष्ठता सवकगिरि पर्वत ताप च्यारि जिनमन्दिर का कथन, इन आदिक और असंख्यात द्वीप के अन्त में स्मयम्भरमण समुद्र चारि कोन्या क्षेत्र तिन विष तिष्ठते उत्कृष्ट अवगाहनाधारी तिर्यश्च तिनका कथन और असंख्याते द्वोपन में तिष्ठते एक अल्प आयु कर्म के धरनहारे तिर्थश्च तिनका कथन इन आदिक अनेक रचना सम्बन्धी कथन सहित सो मध्यलोक का कथन। सो याको परस्पर चर्चा करनी सो महायुरायफल की दाता है। याको धर्मकथा कहिये और अधोलोक विर्षे दस जाति के भवनवासी देवन के भवन तिनके प्रमाण का कथन, देवन को आयुकाय का कथन । तिनते नोचे पंकमागमैं प्रथम नरक, तिनको आयुकाय का कथन तथा नीचे षट् नारकी और जिनको आधु-काय-दुःख का कथन इत्यादिक तीन लोक का कथन तथा तीन लोक के शिखर पर विराजते अष्ट कर्मरजरहित शुद्धात्मा ज्योतिस्वरूप केवलज्ञान के धारी अनन्त सूख के धनो अनन्त सिद्ध भगवान, तिन सर्व सिद्ध परमात्मा भगवान को हमारा बारम्बार नमस्कार करि तिनको अवगाहना का कथन तथा ऐसे सामान्य रीति से तीनलोक का || पुरुषाकार उददङ्गाकार तीनसौ तेतालिस राज का घनाकार क्षेत्र का कथन । सो ऐसे क्षेत्र का कथन है।। इस प्रकार तीन लोक को परस्पर चर्चा कर सो धर्मचरचा जानना और ऐसे तीन लोक का कथन जा शास्त्र में होय, तो धर्मफलदायक शास्त्र है।
तीन काल का कथन सो अनन्त अतीतकाल व्यतीत भया, वर्तमानकाल का एक समय और अतीतकाल