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पर विजय,
(स्त्री०) [हप्त:--रघु
मृच्छ० २, तानसे | A
निन्दा से
( १०७ ) अवचनीय (वि०) न० त०] 1. जो कहने के या उच्चारण अवजयः [अव-जि-अच्] पराजय, दूसरों पर विजय, करने के योग्य न हो, अश्लील या अशिष्ट (भाषा) -येनेन्द्रलोकावजयाय दृप्त:---रघु०६।६२ । ---वादेष्ववचनीयेषु तदेव द्विगुणं भवेत्-मनु०८२६९, अवजितिः (स्त्री०) [अव+जि+क्तिन्] विजय, पराजय। 2. जो निन्दा या लांछन के योग्य न हो, निन्दा से
अवज्ञा [अव+ज्ञा+क] अनादर, तिरस्कार, अवमति, मुक्त-लोकरवचनीया भवति-मच्छ०२,°ता कहने
अवहेलना (कर्म०, करण०, अधि० या संबं० के साथ) में अनौचित्य, निन्दा से मुक्ति--सर्वथा व्यवहर्तव्ये
---आत्मन्यवज्ञां शिथिलीचकार- रघु० २।४१, ये नाम कुतो ह्यवचनीयता- उत्तर० ११५ ।
केचिदिह नः प्रथयन्त्यवज्ञाम्-मा० ११६। सम० अवच (चा) यः [अव+चि+अच, घना वा] चयन करना --उपहत तिरस्कारपीडित, नीचा दिखाया गया-दुःखम्
(फल फूल आदि का)--ततः प्रविशतः कुसुमावचयम- नीचा दिखाये जाने की वेदना-मा जीवन् यः पराभिनयन्त्यो सख्यौ-श. ४, अविरतकुसुमावचायखे- वज्ञादुःखदग्धोऽपि जीवति---शि० २।४५।। दात् --शि० ७७१।
अवज्ञानम् [अव+ज्ञा+त्युट अनादर, तिरस्कार। अवचारणम् [अव+चर+णिच-+ल्यूट] किसी काम पर
अवटः [अव+अटन] 1. विवर, गुफा 2. गर्त-अवटे चापि नियुक्त करना, प्रयोग, प्रगमन की पद्धति ।
मे राम प्रक्षिपेम कलेवर, अवटे ये निधीयते-रामा० अवचूर:-ल: [अवनता चूडा अग्रं यस्य वा डो ल:] रथ के 3. कुआं 4 शरीर का कोई दबा हुआ या नीचा भाग,
ऊपर लहराता हुआ कपड़ा, ध्वजा के शिरोभाग में नाडीव्रण,-अवटश्चैवमेतानि स्थानान्यत्र शरीरकेबंधा हुआ (चौरी जैसा) अधोमुख वस्त्रखंड,-पिच्छा- याज्ञ० ३९८ 5. बाजीगर। सम--कच्छपः गढ़े वचूडमनुमाघवघाम जग्मुः-शि० ५.१३, दिवसकर- में घुसा हुआ कछुवा (आलं.) अनुभवशून्य, जिसने वारणस्यावचूलचामरकलापः-का० २६।।
संसार का कुछ न देखा हो । अवसूर्णनम् [अव+चूर्ण+ल्युट] 1. चूरा करना, पीसना, | अवटि:-टो (स्त्री०) अव+अटि पक्षे डी] 1. विवर चूर्ण बनाना 2. चूरा बुरकाना विशेषकर कोई सूखी
2. कुआँ। दवा घाव पर बुरकाना।
अक्टोट (वि०) [नासिकायाः नतं अवटीटम्, अव-+-टीटन अवचूल-दे० अवचूड़।
नासिकाया: संज्ञायाम् नासिकाप्यवटीटा, पुरुषोऽप्यवअवचलक:-कम् [अवनता चूडा यस्य, इस्य लत्वम्--संज्ञायां टीट:] जिसकी नाक चपटी है, चपटी नाक वाला।
कन] मक्खियों को उड़ाने के लिए बुश या चंवर । अवटुः [ अव-+-टीक+डु: ] 1. बिल 2. कुआं 3. गरदन अवच्छ (च्छा) दः [अव । छद्-+क] आवरण, ढक्कन----- का पृष्ठभाग, 4 शरीर का दबा हुआ अंग-टुः __--कांचनावच्छदान् (खरान्)-रामा० ।
(स्त्री०) गरदन का उठा हुआ भाग,-टु (नपुं०) अवच्छिन्न (भू० क० कृ०) [अव+छिद्+क्त] 1. काटा | विवर, दरार।
हुआ 2. अलगाया हुआ, बंटा हुआ, पृथक किया हुआ | अवडीनम् [अव+डी+क्त] पक्षी की उड़ान, नीचे की 3. (तर्कशास्त्र में) अपने विहित विशिष्ट गुणों द्वारा ओर उड़ना। दूसरी सब बस्तुओं से पृथक् की गई वस्तु 4. | अवतंसः-सम् [अव+तंस्। घा] 1. हार 2. कर्णाभूषण, सीमित, विकृत, निश्चित-दिक्कालाद्यनवच्छिन्न- अंगूठी के आकार का आभूषण, कान का गहना(आलं. भर्तृ०२।१, 5. किसी विशेषण से युक्त, विशिष्ट, भी)-गणा नमेरुप्रसवावतंसा:--कु० ११५५, स्ववाहनविविक्त तथा उपलक्षित ।
क्षोभचलावतंसा:-७।३८, रघु० १३१४९, 3. शिरोअवच्छुरित (वि०) [अव-छुर+क्त] मिश्रित-तम् भूषण, मुकुट (आलं०) आभूषण का काम देने वाली अट्टहास।
कोई भी वस्तु-तामरसावतंसा: जलसंनिवेशा:अवच्छेदः (अव-।-छिद्+घा] 1, खंड, अंश 2. सीमा, चात० २।३, पुंडरीकावतंसाभिः परिखाभिः-रामा०
मर्यादा 3. विच्छेद 4. भेद, विवेचन, (विशेषणों ---पुष्पावतंसं सलिलम्---सुश्रु०।। द्वारा),विशिष्टीकरण 5. दृढ़ निश्चय,निर्णय, फैसला---- | अवतंसकः [अव+तंस्+ण्वल ] कर्णाभूषण, आ शब्दार्थस्यानवच्छेदे विशेषस्मतिहेतक:--.-वाक० ६, अवतंसथति (ना० धा० पर०) कर्णाभूषण के रूप में प्रयुक्त 6. पदार्थ का वह गुण जो उसे औरों से अलग कर दे, करना, कानों की बालियाँ नाना--अवतंसयन्ति
लक्षणदर्शी गुण 7. सीमा बाँधना, परिभाषा करना। दयमानाः प्रमदाः शिरीषकुसुमानि --- श० ११४ । अवच्छेवक (वि०) [अव-छिद+ बुल] 1. वियोजक 2. | अवततिः (स्त्री०) [अव+तन्-- क्तिन् । फैलाव, प्रसार । निर्धारक, निर्णायक '3. सीमा बाँधने वाला 4. विवे- अवतप्त (भू० क० कृ०) [अव+त+क्त] गरम किया चक, विशिष्टीकारक 5. विशेष लक्षण-क: 1. जो हुआ, चमकाया हुआ-अवतप्ते नकुलस्थितम्-आखेटी विवेचन करे 2. विधेय, लक्षण, गुण ।
नेवले का गर्म भूमि पर खड़ा होना, (रूपक के
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