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शास्त्रमें वर्णित रीति के अनुसार 'विमलपुर' नामक नगर बसाया । इस नगर में किसी भांतिका भी कर आदि नहीं लिया जाता था । अतः संघ मेंसे अन्य भी बहुतसे मनुष्य स्वार्थ तथा तीर्थकृत्य की साधना हेतु वहां बस गये । राजा जितारि भी उत्तम राज्य - ऋद्धिका भोग करता हुआ द्वारिकामें कृष्णकी भांति सुख से रहने लगा | वहां भगवान के मंदिर ऊपर एक हंस सदृश मधुरभाषी तोता रहता था । वह राजाके मनको बहुत रिझाने लगा, इससे वह राजाका एक खिलौना होगया । अरिहंत प्रभुके मंदिरमें जाने पर भी राजाका अरिहंत ध्यान धुंएसे मलीन हुए चित्रोंकी भांति तोते के क्रीडारस से मलीन होगया । कुछ समय जाने पर राजा जितारिका अंतकाल आया तब उसने धर्मी लोगों की शति के अनुसार श्री ऋषभदेव भगवान के चरण-कमलोंके पास अनशन किया । उस समय हंसी तथा सारसीने धैर्य धारण कर राजाकी सम्हाल की तथा उसे नवकारमंत्र सुनाया । उसी समय पूर्वपरिचित तोतेने मंदिर के शिखर पर बैठ कर मधुर ध्वनी की । कर्मकी विचित्र गति से राजाका ध्यान उस तरफ चला गया और अंत में तोतेके ध्यानसे राजा तोते ही की योनिमें उत्पन्न हुआ ।
जिस तरह अपनी ही छायाका उल्लंघन करना अशक्य है उसी तरह भवितव्यता का भी उल्लंघन नहीं किया जा सकता, पंडित लोगोंने कहा है कि जैसी 'अंते मति, तैसी गति' इसी उक्तिके