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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ।। प्रथम अध्याय ॥ पान २३ ॥
ఆడతలందరకుందుడుకులందరకలతకులకునుండియలు
कहिये निश्चय कीजिये सो तत्त्वार्थ अभेदविवक्षाकरि ऐसाभी अर्थ है । याका श्रद्धान कहिये प्रतीति रुचि ताकू तत्त्वार्थश्रद्धान कहिये । तत्त्वार्थ जीवादिक हैं ते आगे कहसी ॥
इहां प्रश्न- जो ‘दृशि' ऐसा धातु है सो देखनेके अर्थविर्षे है । तातें श्रद्धान अर्थ कैसे होय? ताका उत्तर-- धातुनिके अनेक अर्थ हैं । तातें दोष नाही । बहुरि कहै, जो, प्रसिद्ध अर्थ | तो देखनाही है, ताकू क्यों छोडिये ? ताकू कहिये, इहां मोक्षमार्गका प्रकरण है, सो यामें मोक्षका कारण आत्माका परिणाम है । सोही लैणा युक्त है । देखना अर्थ लीजिये तो देखणां तो चक्षु आदि निमित्तकरि अभव्य आदि सर्व जीवनिकै है । सो सर्वहीकै मोक्षका कारणपणा आवै । ताते वह अर्थ न लियां । इहां प्रश्न जो, अर्थश्रद्धान ऐसाही क्यों न कह्या ? ताका उत्तर- जो, ऐसैं कहै सर्व अर्थग्रहणका प्रसंग आवै । अर्थ नाम धनकाभी है । तथा अर्थ नाम प्रयोजनकाभी है । तथा सामान्यअर्थकाभी नाम है । तिनि काभी श्रद्धान सम्यग्दर्शन ठहरै । तातें तिनितें भिन्न | दिखावनेके अर्थि अर्थका तत्त्व विशेषण कीया है । बहुरि प्रश्न जो, तत्त्वश्रद्धान ऐसाही क्यों न कह्या ? ताका उत्तर-- ऐसें कहै अनर्थ जे सर्वथैकांतवादिनिकरि कल्पित, ताका प्रसंग आवै है । तथा भावमात्रका प्रसंग आवे है । केई वादी सत्ता तथा गुणत्व तथा कर्मत्व इनिकूही तत्त्व कहै हैं ।
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