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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ॥ पान २१ ॥
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होतें प्रताप प्रकाश दोऊ एककाल प्रकट होय तैसें इहांभी जाननां । बहुरि व्याकरणका न्याय है, जो, जाके अल्प अक्षर होय, तातें जो पूज्य प्रधान होय सो पहली आवै । सो ज्ञानकू सम्यग्दर्शन सम्यक्रूप करै है, तब सम्यग्ज्ञान नाम पावै है । तातें सम्यग्दर्शन पूज्य प्रधान है । तातें पहलै सम्यग्दर्शनही चाहिये । बहुरि सम्यग्ज्ञानपूर्वक चारित्र सम्यक् होय है । तातें चारित्रकै पहलै ज्ञान कह्या ॥ बहुरि मोक्ष सर्वकर्मका अत्यंत अभाव होय ताकू कहिये । बहुरि ताकी प्राप्तिका उपाय ताकू मार्ग कहिये । ऐसें मोक्षमार्गशब्दका अर्थ जाननां ।।
इहां मार्गशब्दकै एकवचन कह्या, सो सम्यग्दर्शनादिक तीन हैं, तिनिकी एकता होय सो साक्षात् मोक्षमार्ग है ऐसें जनावनेके अर्थि है । जुदे जुदे मोक्षमार्ग नाही । इहां साक्षात्पदतें ऐसा जनावै है, जो तीनूंनिका एकदेश परंपरा मोक्षका कारण है । अर पूर्णता साक्षात् मोक्षका कारण है ।। बहुरि यहु मोक्षमार्गका स्वरूप विशेषरूप असाधारण जाननां । सामान्यपर्ने कालक्षेत्रादिकभी मोक्षप्रति कारण हैं । तातें सम्यग्दर्शनादिकही मोक्षमार्ग है यह नियम जाननां । बहुरि ऐसा नियम न कहनां, जो, ये मोक्षमार्गही है । ऐसें कहतें ए स्वर्गादि अभ्युदयके मार्ग न ठहरै । तातें । पूर्वोक्तही कहनां ।। कोई कहै तपभी मोक्षका मार्ग है, यहभी क्यों न कह्या ? ताका उत्तर जो, तप
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