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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ॥ पान २२ ॥
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| है सो चारित्रस्वरूप है । सो चारित्रमें आयगया ॥ कोई कहै, सम्यग्दर्शनादि मोक्षके कारण हैं तो केवलज्ञान उपजै ताहीसमय मोक्ष हुवा चाहिये । ताळू कहिये, जो, अघातिकर्मके नाश करने की शक्ति आत्माकी सम्यग्दर्शनादिककी सहकारिणी है । तथा आयुःकर्मकी स्थिति अवशेष रहै है । तातें केवलीका अवस्थान रहे है। वह शक्ति सहकारिकारण मिलै तब मोक्ष होय है । बहुरि या सूत्रकी सामर्थ्यतें मिथ्यादर्शन मिथ्याज्ञान मिथ्याचारित्र संसारके कारण हैं ऐसाभी सिद्ध हो है ॥ आगें आदिविर्षे कह्या जो सम्यग्दर्शन ताका लक्षणनिर्देशके अर्थि सूत्र कहे हैं ।
॥ तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् ॥२॥ याका अर्थ-- तत्त्वकरि निश्चय किया जो अर्थ ताका जो श्रद्धान सो सम्यग्दर्शन है ॥ | 'तत् ' ऐसा शब्द सर्वनाम पद है तातें सामान्यवाचक है । याकै भाव अर्थविर्षे त्वप्रत्यय होय है । तब तत्त्व ऐसा भया । याका यहु अर्थ, जो, जा वस्तूका जैसा भाव तैसाही ताका होना ताकू तत्त्व कहिये ॥ बहुरि “ अर्यते इति अर्थः” जो प्रमाणनयकरि निश्चय कीजिये ताकू अर्थ कहिये । सो तत्त्व कहिये यथावस्थितस्वरूपकरि निश्चय निर्वाध होय सो तत्त्वार्थ ऐसे अनेकांतस्वरूप प्रमाणनयसिद्ध है, ताकू तत्त्वार्थ कहिये ॥ अथवा तत्त्व कहिये यथावस्थित वस्तु, सोही अर्थ
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