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.२८ (७) १८ वें तीर्थकर श्री अरहनाथ जी राज्यावस्था में एक दिन शरद ऋतु मे मेघो का आकाश मे नष्ट होना देख आप . वैरागी हो गये। १६ वर्ष तप कर अरिहन्त होकर उपदेश दे अन्त मे मोक्ष पधारे।
(८)संभौम-श्री अरहनाथ जी तीर्थकर के मोक्ष के बाद में हुए । अयोध्या के इक्ष्वाकु वंशीय राजा सहस्रबाहु और रानी चित्रमती के पुत्र थे। आप का जन्म एक वन मे हुआ था । इन के पिता सहस्रबाहु के समय मे इन के बड़े भाई कृतवीर्य ने एक बार किसी कारण से राजा जमदग्नि को मार डाला। तब जमदग्नि के पुत्र परशुराम और श्वेतराम ने यह बात जान बहुत क्रोध किया। और सहस्त्रबाहु तथा कृतवीर्य को मार डाला तब सहबाहु के बड़े भाई शांडिल्य ने गर्भवती रानी चित्रमती को वन मे रखा यहां संभौम उत्पन्न हुए । वह १६ वे वर्ष मे चक्रवर्ती हुए। एक दिन परशुराम को निमित्त ज्ञानी से मालूम हुआ कि मेरा मरण जिससे होगा वह पैदा हो गया है । निमित्त ज्ञानी ने उस की परीक्षा भी बताई कि जिस के आगे मरे हुए राजाओ के दान्त भोजन के लिये रखे जावे और वह सुगन्धित चावल सम हो जावे वही शत्रु है। इसलिये परशुराम ने अनेक राजाओं को संभौम के साथ बुलाया। संभौम के सामने दांत चावल हो गये, संभौम को ही शत्रु समझ परशुराम ने संभौम को पकडा परन्नु उसी समब सभौम को चक्र रत्न की प्राप्ति हुई । इस चक्र से ही युद्ध कर संभौम ने परशुराम को मार डाला। परशुराम सातवीं