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२७.
रूप की प्रशंसा इन्द्र के मुख से सुनकर एक - देव देखने को आया, और देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। फिर राज सभा मे प्रकट होकर मिलने को गया । उस समय मान के कारण उनकी सुन्दरता मे कमी देखकर मस्तक हिलाया, सम्राट् ने मस्तक हिलाने का कारण पूछा । उत्तर में देव द्वारा अपने रूप की क्षण मात्र मे ही कम हा जाने अनित्यता देख कर वैराग्य
की बात सुनकर चक्री को संसार की हो गया, उसी समय पुत्र देवकुमार को राज्य दकर शिव गुप्त मुनि से दीक्षा ले तप करके मोक्ष पधारे । तप के समय एक बोर कर्म के उदय से कुष्ठादि भयंकर रोग हो गये । एक देव परीक्षार्थ । वैद्य के रूप मे आया और कहा कि औषधि ले। मुनि ने उत्तर दिया कि आत्मा के जो जन्म मरणादि रोग है यदि उन्हे आप दूर कर सकते है तो दूर करे। मै आपकी दी हुई अन्य वस्तुऐ लेकर क्या करूँगा ? देव ने मुनि को चारित्र में दृढ़ देखकर उनकी स्तुति की और अपने स्थान को वापिस चला गया ।
(५) १६ वे तर्थकर श्री शान्ति नाथ जो । यह एक दिन दर्पण मे अपने दो मुह देख ससार को अनित्य विचार अपने नारायण पुत्र को राज्य दे साधु हो गये । आठ वर्ष पीछे ही केवली हा अन्त में मोक्ष पधारे ।
(६) १७ वे तीर्थकर श्री कुंथुनाथ जी एक दिन बन मे क्रीड़ा करने गये थे । लौटते समय एक साधु को देखकर वैरागी हो गये । १६ वर्ष तक तप करके केवल ज्ञानी होकर मोक्ष पधारे ।