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अलकतरा
१५८
अलगनी
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"प्रथमहिं अलक तिलक लेव साजि" .-- | लक्ष्य-वि० (सं० ) अदृश्य, जो न देख विद्या।
__ पड़े, ग़ायब, जिसका लक्षण न कहा जा अलकतरा-संज्ञा, पु. ( अ० ) पत्थर के सके, जो लक्ष के योग्य न हो। कोयले को आग पर गला कर निकाला अलख-वि० (सं० अलक्ष्य ) जो दिखाई हुआ एक काले रंग का गाढा द्रव पदार्थ, न पड़े, अदृश्य, अगोचर, अप्रत्यक्ष, इंद्रियाडामर ( प्रान्ती० ) धूना, कोलतार। तीत, न देखा हुया, अदृष्ट, गुप्त, लुप्त, अलक लडैता - वि० ० ( हि० ईश्वर । अलक = बाल-+-लाड = दुलार ) दुलारा। मुहा०-अलख जगाना-पुकार कर स्त्री. अलक लडैनी।
भगवान का स्मरण करना या कराना, "अब मेरे अलक लडैतै लालन कै हैं करत परमात्मा के नाम पर भिक्षा माँगना । सँकोच''--भु।
" लखि व्रज-भूप-रूप अलख अरूप ब्रह्म अलक सलोरा--वि० दे० ( सं० ऊ. श० । अलक -- सलोना-हि० ) लाडला, दुलारा। अलखधारी-संज्ञा, पु० (दे. यो०) स्त्री० अलक सलोरी।
अलम्ब अलख पुकारते हुए भिक्षा माँगने अलका-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) कुबेर की वाले एक प्रकार के साधू । पुरी, पाठ और दस वर्ष के बीच की लड़की। अलखानामी-संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० अलकापति- संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) कुबेर, अलक्ष नाम ) अलखोपासक साधु विशेष, अलकेश, भालकेश्वर।
जो अलख कहकर भिक्षा माँगते हैं । अलकाबलि-संज्ञा, स्त्री० औ० (सं० ) अलखित—वि० दे० (सं० अलक्षित) केशों का समूह, बालों का गुच्छा, लटों
अप्रगट, गुप्त, अज्ञात, अदृष्ट, न देखा हुआ, की राशि।
स्त्री० अलखिता। अलकेश-अलकेश्वर-संज्ञा, पु० यौ०
अलखनीय-वि० ( दे. ) जो लखने या (सं० ) कुबेर, धन-पति ।
देखने के योग्य न हो, जो देखने या अलक्त-अलक्तक-संज्ञा, पु० (सं०) लाख,
विचारने या पढ़ने के अयोग्य हो।। चपड़ा, लाह का बना हुया एक प्रकार का
अलग--वि० दे० (सं० अलग्न ) पृथक, रंग, जिसे स्त्रियाँ पैर में लगाती हैं, महावर,
विलग, जुदा, अलाहिदा, न्यारा, भिन्न. लाक्षारस । अलक्ष-वि० (सं० ) जो लन या लाख के
बेलाग, दूर, परे। बराबर न हो, जिसका लक्ष्य न किया गया
| मुहा०-प्रालगकरना--- दूर करना, हटाना, हो, न देखा हुआ, अलच्छ-(दे० )। छुड़ाना, बरखास्त करना, बेलाग, बना अलक्षण-संज्ञा, पु. ( सं० ) बुरे लहण,
हुया, रक्षित करना। कुलक्षण, अरे चिन्ह, रत्तच्चन (दे०)। अलग हाना-हिस्सा बाँट करके पृथक अलक्षित--- वि० (सं० ) अप्रगट, अज्ञात, हो जाना।
अदृश्य, गायव, न देखा हुअा, अविचारित। अलगनी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० बालग्न) स्त्री० अलक्षिता-अदृश्या ।
घर में कपड़ों के टाँगने या लटकाने के (दे० ) अलच्छिता।
लिये बाँधी हुई रस्सी या आड़ा टँगा हुआ अलक्षणी-- वि० ( सं० ) बुरे लक्षणों- बाँस, डारा। वाला, कुलक्षणी।
| अरगनी, (दे०, प्रान्तो०)।
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