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चतुरंगीय
प्राप्ति किया है।"
आचार्य कुन्दकुन्द ने बोधि की परिभाषा इस प्रकार की है— जिस उपाय से सद्ज्ञान उत्पन्न होता है, उस उपायचिन्ता का नाम बोधि है ।
इन सभी संदर्भों में 'बोधि' का अर्थ है— सम्यग्दर्शन । मोक्ष प्राप्ति का पहला सोपान है— सम्यग्दर्शन और उसके पश्चात् है संयम की साधना और उसकी फलश्रुति है मोक्ष । बोधि या संबोधि का अर्थ केवलज्ञान भी होता है । परन्तु प्रस्तुत प्रसंग में वह अभिप्रेत नहीं है।
बृहद्वृत्तिकार ने केवल का अर्थ-अकलंकित विशुद्ध और बोधि का अर्थ-जिनप्रणीत धर्म की प्राप्ति दिया है। नेमिचन्द्र ने भी यही अर्थ किया है। *
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१. सूत्रकृतांगवृत्ति, पत्र ७७: बोधिं च सम्यग्दर्शनावाप्तिलक्षणाम् । २. षट्प्राभृतादि संग्रह, पृ. ४४०, द्वादशानुप्रेक्षा ८३ ।
३. बृहद्वृत्ति, पत्र १८८ केवलाम्-अकलंकां बोधि- जिप्रणीतधर्म्मप्राप्तिलक्षणाम् ।
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अध्ययन ३ : श्लोक २० टि० ३१
विशेष विवरण के लिए देखें- ठाणं ३/१७६ का टिप्पण ।
३१. बचे हुए कर्मों को ....घुनकर (घुयकम्मंसे)
कम्मंस— यह कर्मशास्त्र का पारिभाषिक शब्द है । यह सत्कर्म या विद्यमान कर्म के अर्थ में रूढ़ है । केवली के चार भवोपग्राही कर्म वेदनीय नाम गोत्र और आयुष्य शेष रहते हैं। जीवन के अन्तिम काल में उन्हें क्षीण कर वह मुक्त हो जाता
है ।
शान्त्याचार्य ने इसका मुख्य अर्थ सत्कर्म और विकल्प में अंश का अर्थ 'भाग' किया है। नेमिचन्द्र ने भी अंश का यही अर्थ किया है। इसके अनुसार 'धुतकम्मंस' का अर्थ होगाजो सर्व कर्मों के भाग का अपनयन कर चुका।
४. सुखबोधा, पत्र ७८ ।
५.
बृहद्वृत्ति, पत्र १८८ : कम्मंसित्ति – कार्म्मग्रन्थिकपरिभाषया सत्कर्म्म..।
६.
वही, पत्र १८८ कर्म्मणो अंशः - भागाः ।
७.
सुखबोधा, पत्र ७८ ।
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