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उत्तरज्झयणाणि
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अध्ययन १२ :श्लोक ४७ टि० ५२ बाहुका, अविकक्क, गया और सुन्दरिका में।
ब्राह्मण ! यहीं नहीं, सारे प्राणियों का क्षेम कर। सरस्वती और प्रयाग तथा बाहुमती नदी में।
यदि तू झूठ नहीं बोलता, यदि प्राण नहीं मारता। काले कर्मों वाला मूढ़ चाहे नित्य नहाए, (किन्तु) शुद्ध नहीं यदि बिना दिया नहीं लेता, (और) श्रद्धावान् मत्सर-रहित होगा।
क्या करेगी सुन्दरिका, क्या प्रयाग और क्या बाहुलिका (तो) गया जाकर क्या करेगा, क्षुद्र जलाशय (=उपादान) भी नदी?
तेरे लिए गया है। (वह) पापकर्मी-कृत किल्बिष दुष्ट नर को नहीं शुद्ध कर ५२. महास्नान है (महासिणाणं) सकते।
इसका शाब्दिक अर्थ है—महास्नान अर्थात् श्रेष्ठ स्नान । शुद्ध (नर) के लिए सदा ही फल्गु है, शुद्ध के लिए सदा चर्णिकार ने इसका लाक्षणिक अर्थ-समस्त कर्मों का क्षय किया ही उपोसथ है।
शुद्ध और शुचिकर्मा के व्रत सदा ही पूरे होते रहते हैं।
१. उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ० २१२ : महासिणाणं णाम सव्वकम्मक्खओ।
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