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खलुंकीय
४३७ अध्ययन २७ : श्लोक १५-१७ टि० २३-२५
२३. सारथि (आचार्य) (सारही)
गधा स्वभावतः आलसी होता है। उसको निरंतर प्रेरित करने इसका शाब्दिक अर्थ है-सारथि, रथ को चलाने वाला। पर ही वह कार्य में प्रवृत्त होता है। उसको प्रेरित करने में ही प्रस्तुत प्रसंग में इसका लाक्षणिक प्रयोग हुआ है। यहां इसका सारा समय बीत जाता है। अर्थ है-आचार्य । जैसे—सारथि उत्पथगामी या मार्गच्युत वैल इसलिए गर्गाचार्य ने सोचा, मेरे सारे शिष्य गलिगर्दभ की या घोड़े को सही मार्ग पर ला देता है, वैसे ही आचार्य भी भांति अविनीत और आलसी हैं। अब मुझे उनको छोड़कर अपने शिष्यों को मार्ग पर ला देते हैं।'
अपना हित-साधन करना चाहिए। २४. गली गर्दभ (गलिगद्दहा)
२५. मृदु और मार्दव (मिउमद्दव) गलि' देशी शब्द है। इसका अर्थ है- अविनीत, दुप्ट। वृत्ति में मृदु का अर्थ है-बाह्य विनय और मार्दव का यहां गर्दभ की उपमा अत्यंत कृत्सा ज्ञापित करने के लिए है। अर्थ है-आन्तरिक विनय।
१. बृहद्वृत्ति, पत्र ५५३।
२. बृहद्वृत्ति, पत्र ५५४ : मृदुः-बहिर्वृत्त्या विनयवान्, मार्दव...
अन्तःकरणतोपि तादगेव।
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