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उत्तरज्झयणाणि
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अध्ययन ३६ : श्लोक १८-२६
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१८. रसओ परिणया जे उ
पंचहा ते पकित्तिया। तित्तकड्यकसाया अंबिला महुरा तहा।।
रसतः परिणता ये तु पंचधा ते प्रकीर्तिताः। तिक्तकटुककषायाः अम्ला मधुरास्तथा।।
'रस की अपेक्षा से उनकी परिणति पांच प्रकार की होती है---१. तिक्त, २. कटु, ३. कसैला, ४.खट्टा और ५. मधुर।
स्पर्श की अपेक्षा से उनकी परिणति आठ प्रकार की होती है-१. कर्कश, २. मृदु, ३. गुरु, ४. लघु, ५. शीत, ६. उष्ण, ७. स्निग्ध और ८. रूक्ष ।
१६. फासओ परिणया जे उ
अट्ठहा ते पकित्तिया। कक्खडा मउया चेव
गरुया लहुया तहा।। २०. सीया उण्हा य निद्धा य
तहा लुक्खा य आहिया। इइ फासपरिणया एए पुग्गला समुदाहिया।।
स्पर्शतः परिणता ये तु अष्टधा ते प्रकीर्तिताः। कक्खटा मृदुकाश्चैव गुरुका लघुकास्तथा।। शीता उष्णाश्च स्निग्धाश्च तथा रूक्षाश्च व्याख्याताः। इति स्पर्शपरिणता एते पुद्गलाः समुदाहृताः।।
२१.
संठाणपरिणया जे उ पंचहा ते पकित्तिया। परिमंडला य वट्टा तंसा चउरंसमायया।।
स्थानपरिणता ये तु पंचधा ते प्रकीर्तिताः। परिमण्डलाश्च वृत्ताः त्र्यनाश्चतुरस्रा आयताः।।
संस्थान की अपेक्षा से उनकी परिणति पांच प्रकार की होती है-१. परिमण्डल, २. वृत्त, ३. त्रिकोण, ४. चतुष्क और ५. आयत।
२२.
जो पुद्गल वर्ण से कृष्ण है वह गन्थ, रस, स्पर्श और संस्थान से भाज्य (अनेक विकल्प युक्त) होता
वण्णओ जे भवे किण्हे भइए से उ गंधओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य।।
वर्णतो यो भवेत् कृष्णः भाज्य: स तु गन्थतः। रसतः स्पर्शतश्चैव भाज्य: संस्थानतोऽपि च।।
है।
२३.
जो पुद्गल वर्ण से नील है, वह गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान से भाज्य होता है।
वण्णओ जे भवे नीले भइए से उ गंधओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य।।
वर्णतो यो भवेन् नीलः भाज्यः स तु गन्धतः। रसतः स्पर्शतश्चैव भाज्यः संस्थानतोऽपि च।।
जो पुद्गल वर्ण से रक्त है, वह गन्थ, रस, स्पर्श और संस्थान से भाज्य होता है।
२४. वण्णओ लोहिए जे उ
भइए से उ गंधओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य।।
वर्णतो लोहितो यस्तु भाज्यः स तु गन्धतः। रसतः स्पर्शतश्चैव भाज्य: संस्थानतोऽपि च।।
२५.
जो पुद्गल वर्ण से पीत है, वह गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान से भाज्य होता है।
वण्णओ पीयए जे उ भइए से उ गंधओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य।।
वर्णतः पीतको यस्तु भाज्यः स तु गन्धतः। रसतः स्पर्शतश्चैव भाज्यः संस्थानतोऽपि च।।
जो पुद्गल वर्ण से श्वेत है, वह गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान से भाज्य होता है।
२६. वण्णओ सुक्किले जे उ
वर्णतः शुक्लो यस्तु भइए से उ गंधओ। भाज्यः स तु गन्धतः। रसओ फासओ चेव
रसतः स्पर्शतश्चैव भइए संठाणओ वि य।।।
भाज्यः संस्थानतोऽपि च।।
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