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उत्तरज्झयणाणि
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का नाम सुमित्रविजय था। उसके दो पत्नियां थीं - विजया और यशोमती । विजया के पुत्र का नाम अजित था। वे दूसरे तीर्थङ्कर हुए और यशोमती के पुत्र का नाम सगर था ।
मघव ( १८ । ३६ ) श्रीवस्ती नगरी के राजा समुद्रविजय की पटरानी भद्रा के गर्भ से इनका जन्म हुआ। ये तीसरे चक्रवर्ती हुए । सनत्कुमार (१८ १३७ ) कुरु जांगल जनपद में हस्तिनापुर नाम का नगर था। वहां कुरुवंश का राजा अश्वसेन राज्य करता था। उसकी भार्या का नाम सहदेवी था। उसने एक पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम सनत्कुमार रखा। ये चौथे चक्रवर्ती हुए ।
शान्ति (१८१३८ ) ये हस्तिनापुर के राजा विश्वसेन के पुत्र थे । इनकी माता का नाम अचिरा देवी था। ये पांचवें चक्रवर्ती हुए और अन्त में अपना राज्य त्याग कर सोलहवें तीर्थकर हुए। कुन्थु (१८ । ३६ ) — हस्तिनापुर के राजा मूर के पुत्र थे। इनकी माता का नाम श्रीदेवी था । ये छठे चक्रवर्ती हुए और अन्त में राज्य त्याग कर सत्रहवें तीर्थङ्कर हुए।
अर (१८ |४०) गजपुर नगर के राजा सुदर्शन के पुत्र थे । इनकी माता का नाम देवी था। ये सातवें चक्रवर्ती हुए और अन्त में राज्य छोड़ अठारहवें तीर्थकर हुए।
महापद्म (१८. 1४१ ) कुरु जनपद में हस्तिनापुर नाम का नगर था। वहां पद्मोत्तर नाम का राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम 'जाला' था। उसके दो पुत्र हुए— विष्णुकुमार और महापद्म । महापद्म नौवें चक्रवर्ती हुए।
हरिषेण ( १८ । ४२ ) - काम्पिल्यनगर के राजा महाहरिश की रानी का नाम मेरा था। उनके पुत्र का नाम हरिषेण था। वे दसवें चक्रवर्ती हुए ।
थे ।
जय (१८ | ३३ ) ये राजगृह नगर के राजा समुद्रविजय के पुत्र इनकी माता का नाम 'वप्रका' था। ये ग्यारहवें चक्रवर्ती हुए।" दशार्णभद्र (१८१४४ )—- ये दशार्ण जनपद के राजा थे। ये भगवान् महावीर के समकालीन थे। (पूरे विवरण के लिए देखिए -सुखबोधा, पत्र २५०, २५१) ।
करकण्डु (१८१४५ ) – देखिए — उत्तरज्झयणाणि, पृ० २६८ । द्विमुख (१८१४५) देखिए— उत्तरझवणाणि, पृ० २६६ नमि (१८ १४५ ) – देखिए — उत्तरज्झयणाणि, पृ० ३०० । नग्मति ( १८ १४५ ) देखिए- उत्तरज्झयणाणि, पृ० ३००। उद्रायण (१८१४७) ये सिन्धु-सौवीर जनपद के राजा थे। ये सिन्धु-सौवीर आदि सोलह जपनदों, वीतभय आदि ३६३ नगरों, महासेन आदि दस मुकुटधारी राजाओं के अधिपति थे। वैशाली गणतंत्र के राजा चेटक की पुत्री 'प्रभावती' इनकी पटरानी थी । काशीराज (१८१४८ )- इनका नाम नन्दन था और ये सातवें बलदेव थे। ये वाराणसी के राजा अग्निशिख के पुत्र थे। इनकी माता का नाम जयन्ती और छोटे भाई का नाम दत्त था । विजय (१८१४६ ) - ये द्वारकावती नगरी के राजा ब्रह्मराज के पुत्र थे। इनकी माता का नाम सुभद्रा था। ये दूसरे बलदेव थे। इनके छोटे
9. 'भरत' से लेकर 'जय' तक के तीर्थङ्करों तथा चक्रवर्तियों का अस्तित्वकाल प्राग-ऐतिहासिक है।
२. सुखबोधा, पत्र २५६ ।
३. ठाणं, ८ ।
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परिशिष्ट ४ : व्यक्ति परिचय
भाई का नाम द्विपृष्ठ था।
उत्तराध्ययन के वृत्तिकार नेमिचन्द्र ने लिखा है कि "आवश्यक नियुक्ति में इन दो बलदेवों-नन्दन और विजय का उल्लेख आया है । इसलिए हम उसी के अनुसार यहां उनका विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं। यदि ये दोनों कोई दूसरे हों और आगमज्ञ-पुरुष उन्हें जानते हों तो उनकी दूसरी तरह से व्याख्या करें। २
इस कथन से इतना स्पष्ट हो जाता है कि सूत्रगत ये दोनों नाम उस समय सन्दिग्ध थे। शान्त्याचार्य ने इन दोनों पर कोई ऊहापोह नहीं किया है। नेमिचन्द्र ने अपनी टीका में कुछ अनिश्चित-सा उल्लेख कर छोड़ दिया है।
यदि हम प्रकरणगत क्रम पर दृष्टि डालें तो हमें यह लगेगा कि सभी तीर्थङ्करों, चक्रवर्तियों तथा राजाओं के नाम क्रमशः आए हैं। उद्रायण भगवान् महावीर के समय में हुआ था। उनके बाद ही दो बलदेवों -- काशीराज नन्दन और विजय का उल्लेख असंगत-सा लगता है। अतः यह प्रतीत होता है कि ये दोनों महावीरकालीन ही कोई राजा होने चाहिएं। जिस श्लोक ( १८ ।४८) में काशीराज का उल्लेख है, उसी में 'सेय' शब्द भी आया है। टीकाकारों ने इसे विशेषण माना है। कई इसे नामवाची मानकर 'सेय' राजा की ओर संकेत करते हैं। आगम साहित्य में भी कहीं 'काशीराज सेय' का उल्लेख ज्ञात नहीं है । भगवान् महावीर ने आठ राजाओं को दीक्षित किया था, ऐसा उल्लेख स्थानांग में आया है।' उसमें 'सेय' नाम का भी एक राजा था। परन्तु वह आमल-कल्पा नगरी का राजा था, काशी का नहीं। इसी उल्लेख में 'काशीराज शंख' का भी नाम आया है। तो क्या श्लोकगत काशीराज से 'शंख' का ग्रहण किया जाय ? भगवान् महावीर-कालीन राजाओं में 'विजय' नाम का कोई राजा दीक्षित हुआ हो –—ऐसा ज्ञात नहीं है। पोलासपुर में विजय नाम का राजा हुआ था। उसका पुत्र अतिमुक्तक (अइमुत्तय) भगवान् के पास दीक्षित हुआ— ऐसा उल्लेख अंतगडदशा में है। परन्तु महाराज विजय के प्रव्रजित होने की बात वहां नहीं है।
विजय नाम का एक दूसरा राजा उत्तरपूर्व दिशा में मृगगाम नगर में हुआ था। उसकी रानी का नाम मृगा था। परन्तु वह भी दीक्षित हुआ हो, ऐसा उल्लेख नहीं मिलता।
महाबल (१८१५० ) - टीकाकार नेमिचन्द्र ने इनकी कथा विस्तार से दी है। उन्होंने अन्त में लिखा है कि व्याख्या- प्रज्ञप्ति में महाबल की कथा का उल्लेख है। वे हस्तिनापुर के राजा बल के पुत्र थे। उनकी माता का नाम प्रभावती था। वे तीर्थकर विमल के परम्परागत आचार्य धर्मघोष के पास दीक्षित हुए। बारह वर्ष तक श्रामण्य का पालन किया। मर कर ब्रह्मलोक में उत्पन्न हुए। वहां से च्युत हो वाणिज्यग्राम में एक श्रेष्ठी के यहां पुत्र रूप में उत्पन्न हुए। उनका नाम 'सुदर्शन' रखा। ये भगवान् महावीर के पास प्रव्रजित होकर सिद्ध हुए ।
यह कथा व्याख्याप्रज्ञप्ति के अनुसार दी गई है। यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि महाबल वही है या अन्य ।
४.
अनतगडदशा सूत्र, वर्ग ६ |
५. विपाक सूत्र, श्रुतस्कन्ध १, अध्ययन १ ।
६. सुखबोधा, पत्र २५६ ।
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