Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 737
________________ उत्तरज्झयणाणि ६९६ सुग्रीव नगर — इस नगर की आधुनिक पहचान ज्ञात नहीं है और प्राचीन साहित्य में भी इसके विशेष उल्लेख नहीं मिलते। मगध-मगध जनपद वर्तमान गया और पटना जिलों के अन्तर्गत फैला हुआ था। उसके उत्तर में गंगा नदी, पश्चिम में सोन नदी, दक्षिण में विन्ध्याचल पर्वत का भाग और पूर्व में चम्पा नदी थी।' इसका विस्तार तीन सौ योजन (२३०० मील) था और इसमें अस्सी हजार गांव थे। मगध का दूसरा नाम 'कीकट' था। मगध नरेश तथा कलिंग नरेशों के बीच वैमनस्य चलता था। कौशाम्बी कनिंघम ने इसकी आधुनिक पहचान यमुना नदी के बाएं तट पर, इलाहाबाद से सीधे रास्ते से लगभग ३० मील दक्षिण-पश्चिम में स्थित 'कोसम' गांव से की है।* कौशाम्बी और राजगृह के बीच अठारह योजन का एक महा अरण्य था। वहां बलभद्र प्रमुख कक्कडदास जाति के पांच सौ चोर रहते थे। कपिल मुनि द्वारा वे प्रतिबुद्ध हुए। जब भगवान् महावीर साकेत के 'सुभूमि भाग' नामक उद्यान में विहार कर रहे थे, तब उन्होंने अपने साधु-साध्वियों के विहार की सीमा की। उसमें कौशाम्बी दक्षिण दिशा की सीमा निर्धारण नगरी थी।" कौशाम्बी के आसपास की खुदाई के अनेक शिलालेख, प्राचीन मूर्तियां, आयगपट्ट, गुफाएं आदि निकली हैं। उनके सूक्ष्म अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह क्षेत्र जैन-धर्म का प्रमुख केन्द्र था । कनिंघम ने खुदाई में प्राप्त कई एक प्रमाणों से इसे बौद्धों का प्रमुख केन्द्र माना है। परन्तु कौशाम्बी के जैन-क्षेत्र होने के विषय में सर विन्सेन्ट स्मिथ ने लिखा है- “मेरा यह दृढ़ निश्चय है कि इलाहाबाद जिले के अन्तर्गत 'कोसम' गांव में प्राप्त अवशेषों में ज्यादातर जैनों के हैं। कनिंघम ने जो इन्हें बौद्ध अवशेषों के रूप में स्वीकार किया है, वह ठीक नहीं है। निःसन्देह ही यह स्थान जैनों की प्राचीन नगरी 'कौशाम्बी' का प्रतिनिधित्व करता है। इस स्थान पर, जहां मन्दिर विद्यमान हैं, वे आज भी महावीर के अनुयायियों के लिए तीर्थ स्थल बने हुए हैं। मैंने अनेक प्रमाणों से सिद्ध किया है कि बौद्ध साहित्य की कौशाम्बी किसी दूसरे स्थल पर थी। चम्पा—यह अंग जनपद की राजधानी थी। कनिंघम ने इसकी पहचान भागलपुर से २४ मील पूर्व में स्थित आधुनिक 'चम्पापुर' और 'चम्पानगर' नामक दो गांवों से की है। उन्होंने लिखा है“ भागलपुर से ठीक २४ मील पर 'पत्थारघाट' है। यहीं या इसके १. २. वही, पृ० २४ । ३. वसुदेवहिण्डी, पृ० ६१ ६४ । बुद्धिस्ट इण्डिया, पृ० २४ । ४. दी एन्शिएन्ट ज्योग्राफी ऑफ इण्डिया, ४५४ । ५. उत्तराध्ययन, बृहद्वृत्ति, पत्र २८८-२८६ । ६. बृहत्कल्प सूत्र, भाग ३, पृ० ६१२ । .७. Journal of Royal Asiatic Society, July, 1894 I feel certain that the remains at kosam in the Allahabad District will prove to be Jain, for the most part and not Buddhist as Cunningham supposed. The village undoubtedly represents the Kausambi of the Jains and the site, where temples exist, is still, a place of pilgrimage for the votaries of Mahavira. I have shown good reasons for believing that the परिशिष्ट ५ : भौगोलिक परिचय आसपास ही चम्पा की अवस्थिति होनी चाहिए। इसके पास ही पश्चिम की ओर एक बड़ा गांव है, जिसे चम्पानगर कहते हैं और एक छोटा गांव है जिसे चम्पापुर कहते हैं। संभव है ये दोनों प्राचीन राजधानी 'चम्पा' की सही स्थिति का द्योतक हों। Jain Education International फाहियान ने चम्पा को पाटलिपुत्र से १८ योजन पूर्व दिशा में गंगा के दक्षिण तट पर स्थित माना है। स्थानांग (१०।२७) में उल्लिखित दस राजधानियों में तथा दीघनिकाय में वर्णित छह महानगरियों में चम्पा का उल्लेख है । महाभारत के अनुसार चम्पा का प्राचीन नाम 'मालिनी' था । महाराज चम्प ने उसका नाम परिवर्तित कर 'चम्पा' रखा। यह भी माना जाता है कि मगध सम्राट् श्रेणिक की मृत्यु के बाद कुमार कूणिक को राजगृह में रहना अच्छा नहीं लगा। उसने एक स्थान पर चम्पक के सुन्दर वृक्षों को देख कर 'चम्पा' नगर बसाया । " पिहुंड—यह समुद्र के किनारे पर स्थित एक नगर था। सरपेन्टियर ने माना है कि यह भारतीय नगर प्रतीत नहीं होता। सम्भवतः यह बर्मा का कोई तटवर्ती नगर हो सकता है। जेकोबी ने इसका कोई ऊहापोह नहीं किया है। 1 डॉ० सिलवेन लेवी का अनुमान है कि इसी पिहुंड नगर के लिए खारवेल के शिलालेख में पिहुड (पिथुड), पिहुंडग (पिथंडग) नाम आया है तथा टालेमी का 'पिटुण्ड्रे' भी पिहुंड का ही नाम है लेवी के अनुसार इसकी अवस्थित मैसोलस और मानदस-इन दो नदियों के बीच स्थित मैसोलिया का अन्तरिम भाग है। दूसरे शब्दों में गोदावरी और महानदी के बीच का पुलिन ( Delta) प्राचीन पिहुंड है ।" डॉ० विमलचरण लॉ ने लिखा है कि इस नगर की खोज चिकाकोल और कलिंगपटम के अंतरिक भागों में नागावती (अपर नाम लांगुलिया) नदी के तटीय प्रदेशों में करनी चाहिए।" सम्राट् खारवेल के राज्याभिषेक ई० पू० १६६ के लगभग हुआ। राज्यकाल के ग्यारहवें वर्ष में उसने दक्षिण देश को विजित किया और पिथंड (पृिथुदकदर्भपुरी) का ध्वंस किया।" यह 'पिथुड' नगर 'पिहुंड' होना चाहिए। सोरियपुर – यह कुशावर्त जनपद की राजधानी थी। वर्तमान में इसकी पहचान आगरा जिले के यमुना नदी के किनारे बटेश्वर के पास आए हुए 'सूर्यपुर' या 'सूरजपुर' से की जाती है। * सोरिक (सोरियपुर) नारद की जन्मभूमि थी।" सूत्रकृतांग में Buddhist Kausambi was a different place. दि एन्शिएण्ट ज्योग्राफी ऑफ इण्डिया, पृ० ५४६-५४७। ६. ट्रेवल्स ऑफ फाहियान, पृ० ६५ । १०. महाभारत, १२।५।३३४ । ११. विविध तीर्थकल्प, पृ० ६५। १२. उत्तराध्ययन चूर्ण, पृ० २६१: समुद्दत्तीरे पिहुंडं नाम नगरं । १३. The Uttaradhyayana Sutra, p.357 १४. ज्योग्राफी ऑफ बुद्धिज्ज, पृ० ६५। १५. सम जैन केनोनिकल लिटरेचर, पृ० १४६ । १६. भारतीय इतिहास एक दृष्टि, पृ० १८५ । १७. कालक- कथासंग्रह, उपोद्घात, पृ० ५२ । १८. आवश्यकचूर्णि, उत्तरभाग, पृ० १६४ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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