Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 728
________________ इस सूत्र में अनेक व्यक्तियों के नाम उल्लिखित हुए हैं। कई व्यक्ति इतिहास की परिधि में आते हैं और कई प्राग्- ऐतिहासिक हैं उनकी अविकल सूची तथा परिचय इस प्रकार है : | परिशिष्ट ४ व्यक्ति परिचय महावीर ( २ । सू० १ ) इस अवसर्पिणी-काल में जैन परम्परा के अंतिम तीर्थकर नायपुत्त ( ६।१७ ) भगवान महावीर का वंश 'नाय' - 'ज्ञात' था, इसलिए वे 'नायपुत्त' कहलाते थे। कपिल ( अध्ययन ८ ) देखिए — उत्तरज्झयणाणि, पृ० १४५ । नमि ( अध्ययन E )- देखिए — उत्तरज्झयणाणि, पृ० १५६ । गौतम (अध्ययन १० ) – इनके पिता का नाम वसुभूति, माता का नाम पृथ्वी और गोत्र गौतम था। इनका जन्म ( ई०पू० ६०७ ) गोबर - ग्राम (मगध) में हुआ। इनका मूल नाम इन्द्रभूति था । एक बार मध्यम पावापुरी में आर्य सोमिल नाम के एक ब्राह्मण ने विशाल यज्ञ किया। इसमें भाग लेने के लिए अनेक विद्वान् आए। इनमें इन्द्रभूति, अग्निभूति और वायुभूति – ये तीनों भाई भी थे। ये चौदह विद्याओं में पारंगत थे। भगवान् महावीर भी बारह योजन का विहार कर मध्यम पावापुरी पहुंचे और गांव के बाहर महासेन नामक उद्यान में ठहरे। भगवान् को देख सबका मन आश्चर्य से भर गया। इन्द्रभूति को जीव के विषय में सन्देह था। वे महावीर के पास वाद-विवाद करने आए। उन्हें अपनी विद्वता पर अभिमान था । उन्होंने सोचा- यमस्य मालवो दूरे, किं स्यात् को वा वचस्विनः । अपोषितो रसो नूनं, किमजेयं च चक्रिणः ॥ - यम के लिए मालवा कितना दूर है ? वचस्वी मनुष्य द्वारा कौन-सा रस ( शृङ्गार अदि) पोषित नहीं होता ? चक्रवर्ती के लिए क्या अजेय है ? भगवान् ने जीव का अस्तित्व साधा। इन्द्रभूति ने अपने पांच सौ शिष्यों सहित भगवान् का शिष्यत्व स्वीकार कर लिया। गौतम भगवान् के प्रथम गणधर थे। ये ५० वर्ष तक गृहस्थ, तीस वर्ष तक छद्मस्थ तथा बारह वर्ष तक केवली पर्याय में रहे और अन्त में अनशन कर ६२ वर्ष की अवस्था में (ई०पू० ५१५ में) राजगृह के वैभारगिरि पर्वत पर मुक्त हो गए। जैन आगमों में गौतम द्वारा पूछे गए प्रश्न और भगवान् द्वारा दिए गए उत्तरों का सुन्दर संकलन है। हरिकेसवल ( अध्ययन १२) देखिए- उत्तरज्झयणाणि, पृ० २०८ कौशिक ( १२ १२० ) कौशलिक कोशल देश के राजा का नाम है। १. केम्ब्रिज हिस्ट्री ऑफ इण्डिया, भाग १, पृ० १८० । २. बृहद्वृत्ति, पत्र ३६४ । ३. बृहद्वृत्ति, पत्र ३६४ । Jain Education International यहां कौशलिक से कौन-सा राजा अभिप्रेत है यह स्पष्ट उल्लिखित नहीं है। कौशलिक पुत्री की घटना वाराणसी में घटित हुई। काशी पर कौशल देश का प्रभुत्व महाकौशल और प्रसेनजित् के राज्यकाल में रहा है। इससे यह अनुमान किया जा सकता है कि कौलिक महाकौशल या प्रसेनजित् के लिए प्रयुक्त है। महाकौशल के साथ कौशलिक राष्ट्र का अधिक निकट सम्बन्ध है। संभव है यहां वह उसी के लिए व्यवहृत हुआ हो । भद्रा (१२।२० ) - महाराज कौशलिक की पुत्री । देखिए - उत्तरज्झयणाणि, पृ० २०८ । चुलणी ( १३ 19 ) – यह काम्पिल्यपुर के राजा 'ब्रह्म' की पटरानी और अन्तिम चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त की मां थी। उत्तरपुराण (७३।२८७) में इसका नाम 'चूड़ादेवी' दिया गया है। ब्रह्मदत्त ( १३ 19 ) – इनके पिता का नाम 'ब्रह्म' और माता का नाम 'चुलणी' था। इनका जन्म स्थान पाञ्चाल जनपद में कांपिल्यपुर था । महावग्गजातक में भी चूलनी ब्रह्मदत्त को पाञ्चाल का राजा माना है। ये अंतिम चक्रवर्ती थे। आधुनिक विद्वानों ने इनका अस्तित्व काल ई०पू० दसवीं शताब्दी के आस-पास माना है ।" चित्र, सम्भूत ( अध्ययन १३) देखिए- उत्तरज्झयणाणि, पृ० २२४ । पुरोहित ( १४ | ३ ) - पुरोहित का नाम मूल सूत्र में उल्लिखित नहीं है। वृत्ति में इसका नाम भृगु बतलाया गया है। देखिए सुखबोधा, पत्र २०४ यशा (१४ १३ ) -- कुरु जनपद के इषुकार नगर में भृगु पुरोहित रहता था। उसकी पत्नी का नाम यशा था। उसके दो पुत्र हुए। अपने पुत्रों के साथ वह भी दीक्षित हो गई। कमलावती ( १३1३ ) – यह इषुकार नगर के महाराज 'इषुकार' की पटरानी थी। इषुकार ( १४ | ३ ) – यह कुरु जनपद के इषुकार नगर का राजा था। यह इसका राज्यकालीन नाम था । इसका मौलिक नाम 'सीमंधर था। अन्त में अपने राज्य को छोड़ यह प्रव्रजित हुआ। बौद्ध ग्रन्थकारों ने इसे 'एसुकारी' नाम से उल्लिखित किया है। संजय (१८1१ ) – देखिए-उत्तरज्झयणाणि, पृ० २८६ । गर्दभालि ( १८ ।१६ ) - ये जैन - शासन में दीक्षित मुनि थे । पाञ्चाल जनपद का राजा 'संजय' इनके पास दीक्षित हुआ था। भरत ( १८ । ३४ ) – ये भगवान् ऋषभ के प्रथम पुत्र और प्रथम चक्रवर्ती थे। इन्हीं के नाम पर इस देश का 'नाम 'भारत' पड़ा। समर ( १८ । ३५ ) ये दूसरे चक्रवर्ती थे। अयोध्या नगरी में जितशत्रु नाम का राजा राज्य करता था। वह ईक्ष्वाकुवंशीय था। उसके भाई ४. उत्तरज्झयणाणि १४ । ४६ । ५. हस्तिपाल जातक संख्या ५०६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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