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परिशिष्ट ३ सूक्त
विणय मेसेज्जा। ११७
विनय की खोज करो। अट्ठजुत्ताणि सिक्खेज्जा निरट्ठाणि उ वज्जए। ११८
जो अर्थवान् है, उसे सीखो। निरर्थक को छोड़ दो। अणुसासिओ न कुणेज्जा। १९
अनुशासन मिलने पर क्रोध न करो। खंति सेविज्ज पण्डिए। १।९
क्षमाशील बनो। खुड्डेहिं सह संसरिंग हास कीडं च वज्जए। १९
ओछे व्यक्तियों का संसर्ग मत करो, हंसी-मखोल मत करो। मा व चंडालियं कासी। १।१०
नीच कर्म मत करो। बहुयं मा य आलवे।१।१०
बहुत मत बोलो। कर्ड कडेति भासेज्जा अकडं नो कडे ति य। १।११
किया हो तो ना मत करो और न किया हो तो हां मत करो। ना पुट्ठो वागरे किंचि पुट्ठो वा नालियं वए। १।१४
बिना पूछे मत बोलो और पूछने पर झूठ मत बोलो। कोहं असच्चं कुवेज्जा। १।१४
क्रोध को विफल करो। अप्पा देव दमेयव्यो। १।१५
आत्मा का दमन करो। अण्णा हु खलु दुइमो। १।१५
आत्मा बहुत दुर्दम है। अप्पा दंतो सुही होइ। १।१५
सुख उसे मिलता है, जो आत्मा को जीत लेता है। मायं च वज्जए सया। १।२४
कपट मत करो। न सिया तोत्तगवेसए। १४४०
चाबुक की प्रतीक्षा मत करो। अदीगमणसो चरे। २।३
मानसिक दासता से मुक्त होकर चलो। मणं पि न पाओसए। २०११
मन में भी द्वेष मत लाओ। नाणी नो परिदेवए। २०१३
ज्ञानी को विलाप नहीं करना चाहिए। न य वित्तासए परं। २।२०
दूसरों को त्रस्त मत करो।
नागुतणेज्ज संजए। २०३०
संयमी को अनुताप नहीं करना चाहिए। रसेसु नाणुगिज्झेज्जा। २।३९
रस-लोलुप मत बनो। सुई धम्मस्स दुल्लहा। ३.८
धर्म सुनना बहुत दुर्लभ है। सदा परम दुल्लहा। ३।९
श्रद्धा परम दुर्लभ है। सोच्चा नेआउयं मम्मं बहवे परिभस्सई। ३।९
कुछ लोग सही मार्ग को पा कर भी भटक जाते हैं। वीरियं पुण दुल्लह। ३।१०
क्रियान्विति सबसे दुर्लभ है। सोही उज्जुयभूयस्स। ३।१२
पवित्र वह है जो सरल है। धम्मो सुद्धस्स चिट्ठई। ३।१२
धर्म का वास पवित्र आत्मा में होता है। असंखयं जीविय मा पमायए। ४।१
जीवन का धागा टूटने पर संधता नहीं, अतः प्रमाद मत
करो। जरोवणीयस्स हु नत्थि ताणं। ४।१
बुढ़ापा आने पर कोई त्राण नहीं देता। कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि। ४।३
किए कर्मों को भुगते बिना मुक्ति कहां? वित्तेण ताणं न लभे पमत्ते। ४।५
प्रमत्त मनुष्य धन से त्राण नहीं पाता। घोरा मुहुत्ता अबलं सरीरं। ४।६
समय बड़ा निर्मम है और शरीर बड़ा निर्बल है। छंदं निरोहेण उवेइ मोक्खं। ४।८
इच्छा को जीतो, स्वतंत्र बन जाओगे। खिणं न सक्केइ विवेगमेठ। ४।१०
तुरंत ही सम्भल जाना बड़ा कठिन काम है। अपाणरक्खी चरमप्पमत्तो। ४।१०
आत्मा की रक्षा करो, कभी प्रमाद मत करो। न मे दिठे परे लोए चक्बुदिट्ठा रमा रई। ५१५
परलोक किसने देखा है, यह सुख आंखों के सामने है। अप्पणा सच्चमेसेज्जा। ६२
सत्य की खोज करो।
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