Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 732
________________ उत्तरायणाणि ६९१ श्रेणिक उनसे धर्म की अनुशासना ले अपने स्थान पर लौट गया।" मूल ग्रन्थ में 'अनाथी का नाम नहीं है, किन्तु प्रसंग से यही नाम फलित होता है। पालित ( २१ 19 ) यह चम्पा नगरी का सार्थवाह था । यह श्रमणोपासक था। निर्ग्रन्थ प्रवचन में इसे श्रद्धा थी। यह सामुद्रिक व्यापार करता था। एक बार यह सामुद्रिक यात्रा के लिए निकला। जाते-जाते समुद्र तट पर स्थित 'पिहुंड* नगर में रुका। वहां एक सेठ की लड़की से ब्याह करके लौटा। यात्रा के बीच उसे एक पुत्र हुआ। उसका नाम 'समुद्रपाल' रखा। जब वह युवा बना तब उनका विवाह ६४ कलाओं में पारंगत 'रूपिणी' नामक एक कन्या से हुआ। एक बार वध-भूमि में ले जाने वाले चोर को देखकर वह विरक्त हुआ । माता-पिता की आज्ञा ले, वह दीक्षित हुआ और कर्म-क्षय कर मुक्त हो गया। समुद्रपाल ( २१1४ ) —— देखिए- 'पालित' । रूपिणी (२१1७ ) – देखिए- 'पालित' । रोहिणी ( २२ १२ ) - यह नौवें बलदेव 'राम' की माता, वसुदेव की पत्नी थी। देवकी ( २२।२ ) - यह कृष्ण की माता और वसुदेव की पत्नी थी। राम ( २२ । २ ) देखिए 'रोहिणी' । केशव ( २२१२ ) - यह कृष्ण का पर्याय नाम है। ये वृष्णिकुल में उत्पन्न हुए थे। इनके पिता का नाम वसुदेव और माता का नाम देवकी था। ये अरिष्टनेमि के चचेरे भाई थे। समुद्रविजय ( २२ । ६३ ) ये सोरियपुर नगर में अंधककुल के नेता थे। इनकी पटरानी का नाम शिवा था। इसके चार पुत्र थे(१) अरष्टिनेमि, (२) रथनेमि, (३) सत्यनेमि और (४) वृनेमि अरिष्टनेमि बाईसवें तीर्थङ्कर हुए और रथनेमि तथा सत्यनेमि प्रत्येक बुद्ध हुए। 1 शिवा ( २२1४ ) - देखिए- 'समुद्रविजय' । अरिष्टने]ि ( २२1४ ) बाई तीर्थकर थे ये सोरियपुर नगर के राजा समुद्रविजय के पुत्र थे। इनकी माता का नाम शिवा था । ये गौतम गोत्रिय थे। कृष्ण इनके चचेरे भाई थे और आयुष्य में इनसे बड़े थे 1 राजीमती ( २२ १६ ) - यह भोजकुल के राजन्य उग्रसेन की पुत्री थी । इसका वैवाहिक सम्बन्ध अरिष्टनेमि से तय हुआ था । किन्तु विवाह के ठीक समय पर अरिष्टनेमि को वैराग्य हो आया और वे मुनि बन गए। राजीमती भी कुछ काल बाद प्रव्रजित हो गई। विष्णुपुराण (४।१४ २१ ) के अनुसार उग्रसेन के चार पुत्रियां थीं कंसा कंसवती, सुतनु और राष्ट्रपाली। संभव है 'सुतनु' राजीमती का ही दूसरा नाम हो। उत्तराध्ययन (२२ । ३७) में रथनेमि राजीमती को 'सुतनु' नाम से सम्बोधित करते हैं । वासुदेव ( २२ १८ ) कृष्ण का पर्यायवाची नाम है । दसारचक्र' (२२1११ ) – दस यादव राजाओं को 'दसार' कहा जाता है। वे ये हैं १. देखिए - उत्तरज्झयणाणि, अध्ययन २० । २. देखिए – भौगोलिक परिचय के अन्तर्मत 'पिहुंड' नगर । ३. विशेष विवरण के लिए देखिए --- उत्तरज्झयणाणि, २२।११ का टिप्पण । ४. सुखबोधा, पत्र २७७-७८ । Jain Education International (१) समुद्रविजय (२) अक्षोभ्य (३) स्तिमित (८) पूरण (E) अभिचन्द (४) सागर (५) हिमवान् (१०) वसुदेव रथनेमि (२२।३४ ) ये अन्धककुल के नेता समुद्रविजय के पुत्र थे और तीर्थङ्कर अरिष्टनेमि के लघु-भ्राता थे। अरिष्टनेमि के प्रव्रजित हो जाने पर ये राजीमती में आसक्त हो गए। पर राजीमती का उपदेश सुन कर वे संभल गए और दीक्षित हो गए। एक बार पुनः रैवतक पर्वत पर वर्षा से प्रताड़ित साध्वी राजीमती को एक गुफा में कपड़े सुखाते समय नग्न अवस्था में देख, वे विचलित हो गए। साध्वी राजीमती के उपदेश से वे संभल गए और अपने विचलन पर पश्चात्ताप करते हुए चले गए।* भोजराज ( २२१४३ ) जैन साहित्य के अनुसार 'भोजराज' शब्द राजीमती के पिता उग्रसेन के लिए प्रयुक्त है। अन्धकवृष्णि ( २२ ।४३ ) - हरिवंशपुराण के अनुसार यदुवंश का उद्भव हरिवंश से हुआ । यदुवंश में नरपति नाम का राजा था। उसके दो पुत्र थे - (१) शूर और (२) सुवीर। सुवीर मथुरा में राज्य करता था और शूर शौर्यपुर का राजा बना। अन्धक- वृष्णि आदि 'सूर' के पुत्र थे और भोजनकवृष्णि आदि सुवीर के । अन्धकवृष्णि की मुख्य रानी का नाम सुभद्रा था। उसके दस पुत्र हुए (१) समुद्रविजय (२) अक्षोभ्य पुत्र परिशिष्ट ४ व्यक्ति परिचय (६) अचल (७) धरण (३) स्थिमिति सागर (४) हिमवान् (५) विजय (१०) वसुदेव ये दसों पुत्र दशार्ह नाम से प्रसिद्ध हुए। अन्धकवृष्णि के दो कन्याएं थीं- (१) कुन्ती और ( २ ) मद्री । भोजवृष्णि की पत्नी का नाम पद्मावती था। उसके उग्रसेन, महासेन और देवसेन—— ये तीन पुत्र हुए। उनके एक गान्धारी नाम की पुत्री भी हुई।" अरिष्टनेनि, रथनेमि आदि अन्धकवृष्णि राजा समुद्रविजय के I कृष्ण आदि अन्धकवृष्णि वसुदेव के पुत्र थे। वैदिक पुराणों में इनकी वंशावली भिन्न-भिन्न प्रकार से दी गई है। पूरे विस्तार के लिए देखिए―पारजीटर एन्शिएण्ट इण्डियन हिस्टोरिकल ट्रेडीशन, पृ० १०४-१०७ । पार्श्व (२३ 19 ) – ये जैन- परम्परा के तेईसवें तीर्थङ्कर थे। इनका समय ई० पू० आठवीं शताब्दी है। ये भगवान् महावीर से २५० वर्ष पूर्व हुए थे। ये 'पुरुषादानीय' कहलाते थे । कुमारश्रमण केशी (२३ ।२ ) – ये भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा के चौथे पट्टधर थे। प्रथम पट्टधर आचार्य शुभदत्त हुए । उनके उत्तराधिकारी (६) अचल (७) धारण (८) पूरण (E) अभिचन्द्र ५. ६. ७. उत्तरपुराण, ७०1१०१। उत्तरपुराण, ( ७०1१०) में इनका नाम महाद्युतिसेन दिया है। देखिए - हरिवंशपुराण, १८ । ६-१६ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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