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जीवाजीवविभक्ति
४५. संठाणओ भवे चउरंसे भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव भइए फासओ वि य ।।
४६. जे आययसंठाणे
भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव भइए फासओ वि य ।।
४७. एसा अजीवविभत्ती
समासेण वियाहिया । इत्तो जीवविभत्तिं वुच्छामि अणुपुव्वसो ।।
४८. संसारत्था य सिद्धा य दुविहा जीवा वियाहिया । सिद्धा णेगविहा वृत्ता तं मे कित्तयओ सुण ।।
४६. इत्थी पुरिससिद्धा य
तहेब य नपुंसगा। सालिंगे अन्नलिंगे य गिहिलिंगे तहेव य ।।
५०. उक्कोसोगाहणाए य
जहन्नमज्झिमाइ य । उड्ढ अहे य तिरियं य समुद्दम्मि जलम्मि य ।।
५१. दस चेव नपुंसेसुं
वीसं इत्थियासु य । पुरिसेसु य अट्ठसयं समएणेगेण सिज्झई ||
५२. चत्तारि य गिहिलिंगे
अन्नलिंगे दसेव य । सलिंगेण य अट्ठसयं समएणेगेण सिज्झई ||
५३. उक्कोसोगाहणाए य
सिहांते जुगवं दुवे । चत्तारि जहन्नाए जवमज्झट्टुत्तरं सयं ।।
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संस्थानतो यश्चतुरस्रः भाज्यः स तु वर्णतः 1 गन्धतो रसतश्चैव भाज्यः स्पर्शतोऽपि च ।।
य आयतसंस्थानः भाज्यः स तु वर्णतः । गन्धतो रसतश्चैव भाज्यः स्पर्शतोऽपि च ।।
एषा अजीवविभक्तिः समासेन व्याख्याताः इतो जीवविभक्ति वक्ष्याम्यनुपूर्वशः ।।
संसारस्थाश्च सिद्धाश्च द्विविधाः जीवा व्याख्याताः । सिद्धा अनेकविधा उक्ताः तान् मे कीर्तयतः शृणु ।।
स्त्री-पुरुष सिद्धाश्च तथैव च नपुंसकाः । स्वलिंगा अन्यलिंगाश्च गृहलिंगास्तथैव च ।।
उत्कर्षावगाहनायां च जघन्यमध्यमयोश्च । ऊर्ध्वमधश्न तिर्यक् च समुद्रे जले च ।।
दश चैव नपुंसकेषु विंशतिः स्त्रीषु च । पुरुषेषु चाष्टशतं समयेनैकेन सिध्यति ।।
चत्वारश्य गृहलिंगे अन्यलिंगे दशैव च । स्वलिंगेन चाष्टशतं समयेनैकेन सिध्यति ।।
द्वौ ।
उत्कर्षावगाहनायां च सिध्यतो युगपद् चत्वारो जघन्यायाम् यवमध्यायामष्टोत्तरं शतम् ।।
अध्ययन ३६ : श्लोक ४५-५३
जो पुद्गल संस्थान से चतुष्कोण है, वह वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से भाज्य होता है 1
जो पुद्गल संस्थान से आयत है, वह वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से भाज्य होता है।
यह अजीव विभाग संक्षेप में कहा गया है। अब अनुक्रम से जीव-विभाग का निरूपण करूंगा।
जीव दो प्रकार के होते हैं - (१) संसारी और (२) सिद्ध सिद्ध अनेक प्रकार के होते हैं। मैं उनका निरूपण करता हूं, तुम मुझ से सुनो।
स्त्रीलिंग, सिद्ध, पुरुषलिंग सिद्ध, नपुंसकलिंग सिख, स्वलिंग सिद्ध, अन्यलिंग सिद्ध, गृहलिंग सिद्ध आदि अनेक प्रकार के सिद्ध होते हैं।
उत्कृष्ट, जघन्य और मध्यम अवगाहना में और ऊंचे, नीचे और तिरछे लोक में तथा समुद्र व अन्य जलाशयों में भी जीव सिद्ध होते हैं ।
दश नपुंसक, बीस स्त्रियां ओर एक सौ आठ पुरुष एक ही क्षण में सिद्ध हो सकते हैं ।
गृहस्थ वेश में चार, अन्यतीर्थिक वेश में दस और निर्ग्रन्थ वेश में एक सौ आठ जीव एक साथ सिद्ध हो सकते हैं।
उत्कृष्ट अवगाहना में दो, जघन्य अवगाहना में चार और मध्यम अवगाहना में एक सौ आठ जीव एक ही क्षण में सिद्ध हो सकते हैं।
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