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उत्तरज्झयणाणि
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अध्ययन ३६ : श्लोक २१६-२२४
और (५) सर्वार्थसिद्धक-ये अनुत्तर देवों के पांच प्रकार हैं। इस प्रकार वैमानिक देवों के अनेक प्रकार
२१६. सव्वट्ठसिद्धगा चेव
पंचहाणुत्तरा सुरा। इइ वेमाणिया देवा णेगाहा एवमायओ।।
सर्वार्थसिद्धकाश्चैव पंचधा अनुत्तराः सुराः । इति वैमानिका देवाः अनेकधा एवमादयः ।।
वे सब लोक के एक भाग में रहते हैं। अब मैं उनके चतुर्विध काल-विभाग का निरूपण करूंगा।
२१७. लोगस्स एगदेसम्मि
ते सव्वे परिकित्तिया। इत्तो कालविभागं तु वुच्छं तेसिं चउन्विहं ।।
लोकस्यैकदेशे ते सर्वे परिकीर्तिताः। इतः कालविभागं तु वक्ष्यामि तेषां चतुर्विधम् ।।
प्रवाह की अपेक्षा से वे अनादि-अनन्त और स्थिति की अपेक्षा से सादि-सान्त हैं।
२१८. संतई पप्पाणाईया
अपज्जवसिया वि य। ठिई पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य।।
सन्ततिं प्राप्य अनादिकाः अपर्यवसिता अपि च। स्थितिं प्रतीत्य सादिकाः सपर्यवसिता अपि च।।
२१६. साहियं सागरं एक्कं
उक्कोसेण ठिई भवे। भोमेज्जाणं जहन्नेणं दसवाससहस्सिया।।
साधिकः सागर एकः उत्कर्षेण स्थितिः भवेत् भौमेयानां जघन्येन दशवर्षसहस्त्रिका ।।
भवनवासी देवों की आयु-स्थिति जघन्यतः दस हजार वर्ष और उत्कृष्टतः किंचित् अधिक एक सागरोपम की है।
व्यन्तर देवों की आयु-स्थिति जघन्यतः दस हजार वर्ष और उत्कृष्टतः एक पल्योपम की है।
२२०. पलिओवममेगं तु
उक्कोसेण ठिई भवे। वंतराणं जहन्नेणं दसवाससहस्सिया।।
पल्योपममेकं तु उत्कर्षेण स्थितिर्भवेत्। व्यन्तराणां जघन्येन दशवर्षसहनिका।।
२२१. पलिओवमं एगं तु
वासलक्खेण साहियं। पलिओवमट्ठभागो जोइसेसु जहन्निया।।
पल्योपममेकं तु वर्षलक्षेण साधिकम्। पल्योपमाष्टभागः ज्योतिष्केषु जघन्यका ।।
ज्योतिष्क देवों की आयु स्थिति जघन्यतः पल्योपम के आठवें भाग और उत्कृष्टतः एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की है।
सौधर्म देवों की आयु-स्थिति जघन्यतः एक पल्योपम और उत्कृष्टतः दो सागरोपम की है।
२२२. दो चेव सागराइं
उक्कोसेण वियाहिया। सोहम्ममि जहन्नेणं एगं च पलिओवमं ।।
द्वौ चैव सागरौ उत्कर्षेण व्याख्याता। सौधमें जघन्येन एकं च पल्योपमम् ।।
सागरौ साधिकौ द्वौ उत्कर्षेण व्याख्याता। ईशाने जघन्येन साधिकं पल्योपमम्।।
ईशान देवों की आयु-स्थिति जघन्यतः किंचित् अधिक एक पल्योपम और उत्कृष्टतः किंचित् अधिक दो सागरोपम की है।
२२३. सागरा साहिया दुन्नि
उक्कोसेण वियाहिया। ईसाणम्मि जहन्नेणं
साहियं पलिओवमं ।। २२४. सागराणि य सत्तेव
उक्कोसेण ठिई भवे। सणंकुमारे जहन्नेणं दुन्नि ऊ सागरोवमा।।
सागराश्च सप्तैव उत्कर्षेण स्थितिर्भवेत्। सनत्कुमारे जघन्येन द्वे तु सागरोपमे।।
सनत्कुमार देवों की आयु-स्थिति जघन्यतः दो सागरोपम और उत्कृष्टतः सात सागरोपम की है।
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