Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 690
________________ उत्तरझयणाणि उग्गा जहा धरिज्जति उच्च अट्ठविहं होइ उच्च नीयं च आहियं उच्चागोए य वण्णवं उच्चारं पासवणं उपारसमिसु प उच्चाराईणि वोसिरे उच्चारे समिई इय उच्चावयाई मुणिणो चरंति उच्चावयाहिं सेज्जाहिं उच्चोयए महु कक्के य बंभे उज्जहित्ता पलाय उज्जाणं नंदणोवमं उज्जाणंमि मणोरमे उज्जाणं संपत्तो उद्वित्ता अन्नमासणं उडूढं अहे य तिरियं च उपेचिय उह थिरं अतुरिव उड़ढ पक्कमई दिसं उड़पाओ अहोसिरो उडूढं बद्धो अबंधवो उमुहे निग्गयजीहनेत्ते उहाभितत्तो संपत्तो उहाहितत्ते मेहावी उत्तमंगं च पीडई उत्तमं मणहारिणो उत्तमगवेसए उत्तमट्ठगवेस ओ उत्तमम्भसुई हु दुल्लहा उत्तराई विमोहाई उत्तराओ य आहिया उत्ताणगछत्तगसंठिया य उदग्गे दुप्पहंसए उदही अक्खओदए उदही सरिनामाणं उदिण्णबलवाहणे उद्दायणो पव्वइओ उद्देसियं कीयगडं नियागं उद्देसेसु दाइ उमेण समूलजा उद्धरित समूलिये उद्धाइया तत्थ बहू कुमारा उत्तिते दिवायरे उदएण सोहिं बहिया विमग्गहा ? उदए व्व तेल्लबिंदू उदग्गचारित्ततवो महेसी Jain Education International ६४९ ३०-२७ उप्पज्जई भोत्तुं तहेव पाउं ३३-१४ ३३-१४ ३ - १८ २४-१५ १२-२ उभओ केसिगोयमा २४-१८ उभओ नंदिघोसेणं २४-२ उभओ निसण्णा सोहंति १२-१५ उभओ वि तत्थ विहरिंसु उभओ सीससंघाणं २-२२ २-२१ ३६-५० ३-१५ २६-२४ ३-१३; १६-८२ १६ ४६ १६- ५१ उप्पायणे रक्खणसन्निओगे ३२-२८,४१,५४, ६७,८०,६३ उप्फालगदुट्टवाई य उभओ अस्सिया भवे १३-१३ उभयस्संतरेण वा २७-७ उम्मत्तो व्व महिं चरे ? उरं मे परिसिंचाई २०- ३ २५-३ उरगो सुवणपासेव २२-२३ उराला य तसा तहा उल्लंघणपल्लंघणे उल्लंघणे य चंडे य उल्लियो फालिओ गहिओ उल्लो सुक्को य दो छूढा उवइट्टे जो परेण सद्दहई उवउत्ते इरियं रिए उवउत्ते य भावओ १७-२ १२-२६ उवएसरुइ त्ति नायव्वो १६- ६० उवक्खडं भोयण माहणाणं ३४-२६ २८- ६ २३-१४ १-२५ १८- ५१ २०-२८ १४-४७ 99-919 २३- १८ २३-६ उस्सिचणाए तवणाए २३-१० उसुयारिति मे सुयं उस्सप्पिणीण जे समया ३४-३०,३२ परिशिष्ट १ पदानुक्रम १२-५ २- २१ उविच्च भोगा पुरिसं चयंति उवेइ ठाणं विउलुत्तमं धुवं उवेइ दुक्खोहपरंपराओ ३६-१०७ २४-२४ ऊससियो १७-८ १६-६४ २५-४० २८-१६ २४-८ २४-७ २८-१६ १२-११ १- २० २०-८ २-६ उवचिट्ठ गुरुं सया २०-२१ उविट्ठओ सि सामण्णे २५-१७ उवट्टिया मे आयरिया ११-३२ उवणिज्जई जीवियमप्पमायं २०-२२ १३-२६ ३३-१५ १०-१८ ३६-६६ ३६-२१५ ३६-२१४ २५-६ उपभोगे वीरिए तहा उवमा जस्स नत्थि उ ५-२६ उवरिमाउवरिमा चैव ३३-१६ उवरिमामज्झिमा तहा ३६-६० उवरिमाहेट्टिमा चेव उवलेवो होइ भोगे उवले सिला य लोणूसे उववज्र्ज्जति आसुरे काए उववन्नो परमगुम्माओ उववन्नो माणुसंमि लोगंमि उववूह थिरीकरणे उवसंतमोहणिज्जो ३६ - २१४ २५-३६ ११-२४ ३६-७३ १२- ३८ २८-२२ १३- ३५ ८-१४ ११-२० ११- ३० ३३-१६,२१,२३ १८- १ १३-१ एएसिं संवरे चैव ६-१ एएहिं चउहिं ठाणेहिं २८-३१ एएहि ओमचरओ ६-१ एएहि कारणेहिं १५-१५ एओवमा कामगुणा विवागे एक्कारस अंगाई एक्केक्का णेगहा भवे उवसंते अविहेडए स भिक्खू १८- ४७ उवसंते जिइदिए २०४७ उवसंते मुणी चरे ३१-१७ उवसग्गाभिधारए एक्को वि पावाइ विवज्जयंतो ३२ ६ उवहसंति अणारिया एक्को सर्व पञ्चहोइ दुख २३- ४६ उवहिपच्चक्खाणं भंते! जीवे २६ सू० ३५ एक्को हु धम्मो नरदेव ! ताणं एग एव चरे लाढे १२-४ १२-१६ उवासगाणं पडिमासु ३१-११ For Private & Personal Use Only उर्वेति माणुसं जोगिं उवेहमाणो उ परिव्वज्जा उवेहे न हुणे पाणे उसिणपरियावेणं उस्सूलगसयग्धीओ उस्सेहो जस्स जो होइ ऊणाइ घासमेसंतो ऊणे वाससयाउए एए अहम्मे त्ति दुर्गुछमाणो एए कंदंति भो ! खगा एए खरपुढवी एए चेव उ भावे एएण कारणेणं एएण दुक्खोहपरंपरेण १३-३१ २०-५२ ३२-३३,४६,५६ ७२,८५,६८ ३-१६,७-२० एए तिन्नि विसोहए एए नरिंदवसभा एए परीसहा सव्वे २१-१५ २-११ २-८ ३०-५ १४-४८ ३४-३३ ६- १८ ३६-६४ ३०-२१ ७-१३ २०-५६ ४-१३ ६-१० ३६-७७ २८-१६ ३६-२६२ ३२-३४,४७,६०,७३ ८६,६६ २४-११ १८-४६ २-४६ २५-३२ २२-१७ ३२-१८ १८- ५१ २२-१६ ३०-४ एए पाउकरे बुद्धे एए भद्दा उ पाणिणो एए य संगे समइक्कमित्ता एए विसेसमादाय एए सव्ये सुतेसिणो एएसिं तु विवच्चासे एएसिं वण्णओ चेव ३६-८३,६१,१०५,११६, १२५,१३५,१४४, १५४, १६६, १७८, १८७, १६४, २०३, २४७ ३३-२५ १८- २३ ३०-२४ ३६-२६६ ३२-२० २८-२३ ३६- १८१ ३२-५ १३-२३ १४-४० २-१८ www.jainelibrary.org

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