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________________ उत्तरज्झयणाणि ६०२ अध्ययन ३६ : श्लोक १८-२६ । १८. रसओ परिणया जे उ पंचहा ते पकित्तिया। तित्तकड्यकसाया अंबिला महुरा तहा।। रसतः परिणता ये तु पंचधा ते प्रकीर्तिताः। तिक्तकटुककषायाः अम्ला मधुरास्तथा।। 'रस की अपेक्षा से उनकी परिणति पांच प्रकार की होती है---१. तिक्त, २. कटु, ३. कसैला, ४.खट्टा और ५. मधुर। स्पर्श की अपेक्षा से उनकी परिणति आठ प्रकार की होती है-१. कर्कश, २. मृदु, ३. गुरु, ४. लघु, ५. शीत, ६. उष्ण, ७. स्निग्ध और ८. रूक्ष । १६. फासओ परिणया जे उ अट्ठहा ते पकित्तिया। कक्खडा मउया चेव गरुया लहुया तहा।। २०. सीया उण्हा य निद्धा य तहा लुक्खा य आहिया। इइ फासपरिणया एए पुग्गला समुदाहिया।। स्पर्शतः परिणता ये तु अष्टधा ते प्रकीर्तिताः। कक्खटा मृदुकाश्चैव गुरुका लघुकास्तथा।। शीता उष्णाश्च स्निग्धाश्च तथा रूक्षाश्च व्याख्याताः। इति स्पर्शपरिणता एते पुद्गलाः समुदाहृताः।। २१. संठाणपरिणया जे उ पंचहा ते पकित्तिया। परिमंडला य वट्टा तंसा चउरंसमायया।। स्थानपरिणता ये तु पंचधा ते प्रकीर्तिताः। परिमण्डलाश्च वृत्ताः त्र्यनाश्चतुरस्रा आयताः।। संस्थान की अपेक्षा से उनकी परिणति पांच प्रकार की होती है-१. परिमण्डल, २. वृत्त, ३. त्रिकोण, ४. चतुष्क और ५. आयत। २२. जो पुद्गल वर्ण से कृष्ण है वह गन्थ, रस, स्पर्श और संस्थान से भाज्य (अनेक विकल्प युक्त) होता वण्णओ जे भवे किण्हे भइए से उ गंधओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य।। वर्णतो यो भवेत् कृष्णः भाज्य: स तु गन्थतः। रसतः स्पर्शतश्चैव भाज्य: संस्थानतोऽपि च।। है। २३. जो पुद्गल वर्ण से नील है, वह गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान से भाज्य होता है। वण्णओ जे भवे नीले भइए से उ गंधओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य।। वर्णतो यो भवेन् नीलः भाज्यः स तु गन्धतः। रसतः स्पर्शतश्चैव भाज्यः संस्थानतोऽपि च।। जो पुद्गल वर्ण से रक्त है, वह गन्थ, रस, स्पर्श और संस्थान से भाज्य होता है। २४. वण्णओ लोहिए जे उ भइए से उ गंधओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य।। वर्णतो लोहितो यस्तु भाज्यः स तु गन्धतः। रसतः स्पर्शतश्चैव भाज्य: संस्थानतोऽपि च।। २५. जो पुद्गल वर्ण से पीत है, वह गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान से भाज्य होता है। वण्णओ पीयए जे उ भइए से उ गंधओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य।। वर्णतः पीतको यस्तु भाज्यः स तु गन्धतः। रसतः स्पर्शतश्चैव भाज्यः संस्थानतोऽपि च।। जो पुद्गल वर्ण से श्वेत है, वह गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान से भाज्य होता है। २६. वण्णओ सुक्किले जे उ वर्णतः शुक्लो यस्तु भइए से उ गंधओ। भाज्यः स तु गन्धतः। रसओ फासओ चेव रसतः स्पर्शतश्चैव भइए संठाणओ वि य।।। भाज्यः संस्थानतोऽपि च।। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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