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________________ जीवाजीवविभक्ति अध्ययन ३६ : श्लोक २७-३५ २७. गंधओ जे भवे सुब्भी भइए से उ वण्णओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य।। ६०३ गन्धतो यो भवेत् सुरभिः भाज्यः स तु वर्णतः। रसतः स्पर्शतश्चैव भाज्य: संस्थानतोऽपि च।। जो पुद्गल गन्ध से सुगन्ध वाला है, वह वर्ण, रस, स्पर्श और संस्थान से भाज्य होता है। २८. गंधओ जे भवे दुब्भी भइए से उ वण्ण ओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य।। जो पुद्गल गन्ध से दुर्गन्ध वाला है, वह वर्ण, रस, स्पर्श और संस्थान से भाज्य होता है। गन्धतो यो भवेत् दुर्गन्धः भाज्यः स तु वर्णतः। रसतः स्पर्शतश्चैव भाज्यः संस्थानतोऽपि च।। जो पुद्गल रस से तिक्त है, वह वर्ण, गन्ध, स्पर्श और संस्थान से भाज्य होता है। २६. रसओ तित्तए जे उ भइए से उ वण्णओ। गंधओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य।। रसतस्तिक्तो यस्तु भाज्यः स तु वर्णतः। गन्धतः स्पर्शतश्चैव भाज्य: संस्थानतोऽपि च।। जो पुद्गल रस से कडुवा है, वह वर्ण, गन्थ, स्पर्श और संस्थान से भाज्य होता है। ३०. रसओ कडुए जे उ भइए से उ वण्णओ। गंधओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य।। रसतः कटुको यस्तु भाज्यः स तु वर्णतः। गन्धतः स्पर्शतश्चैव भाज्य: संस्थानतोऽपि च।। जो पुद्गल रस से कसैला है, वह वर्ण, गन्ध, स्पर्श और संस्थान से भाज्य होता है। . ३१. रसओ कसाए जे उ भइए से उ वण्णओ। गंधओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य।। रसतः कषायों यस्तु भाज्यः स तु वर्णतः। गन्धतः स्पर्शतश्चैव भाज्य: संस्थानतोऽपि च।। जो पुद्गल रस से खट्टा है, वह वर्ण, गन्ध, स्पर्श और संस्थान से भाज्य होता है। ३२. रसओ अंबिले जे उ भइए से उ वण्णओ। गंधओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य।। रसतः अम्लो यस्तु भाज्यः स तु वर्णतः। गन्धतः स्पर्शतश्चैव भाज्य: संस्थानतोऽपि च।। जो पुद्गल रस से मधुर है, वह वर्ण, गन्ध, स्पर्श और संस्थान से भाज्य होता है। ३३. रसओ महुरए जे उ भइए से उवण्णओ। गंधओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य।। रसतो मधुरको यस्तु भाज्य: स तु वर्णतः। गन्धतः स्पर्शतश्चैव भाज्यः संस्थानतोऽपि च।। जो पुद्गल स्पर्श से कर्कश है, वह वर्ण, गन्ध, रस और संस्थान से भाज्य होता है। ३४. फासओ कक्खडे जे उ भइए से उ वण्णओ। गंधओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य।। ३५. फासओ मउए जे उ भइए से उ वण्णओ। गंधओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य।। स्पर्शतः कक्खटो यस्तु भाज्यः स तु वर्णतः। गन्धतो रसतश्चैव भाज्य: संस्थानतोऽपि च।। स्पर्शतो मृदुको यस्तु भाज्यः स तु वर्णतः। गन्धतो रसतश्चैव भाज्यः संस्थानतोऽपि च।। जो पुद्गल स्पर्श से मृदु है, वह वर्ण, गन्ध, रस और संस्थान से भाज्य होता है। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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