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________________ उत्तरज्झयणाणि ६०४ अध्ययन ३६ : श्लोक ३६-४४ जो पुद्गल स्पर्श से गुरु है, वह वर्ण, गन्ध, रस और संस्थान से भाज्य होता है। ३६. फासओ गुरुए जे उ भइए से उ वण्णओ। गंधओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य।। स्पर्शतो गुरुको यस्तु भाज्यः स तु वर्णतः। गन्धतो रसतश्चैव भाज्यः संस्थानतोऽपि च।। जो पुद्गल स्पर्श से लघु है, वह वर्ण, गन्ध, रस और संस्थान से भाज्य होता है। ३७. फासओ लहुए जे उ भइए से उ वण्णओ। गंधओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य।। स्पर्शतो लघुको यस्तु भाज्यः स तु वर्णतः। गन्धतो रसतश्चैव भाज्यः संस्थानतोऽपि च।। ३८. जो पुद्गल स्पर्श से शीत है, वह वर्ण, गन्ध, रस और संस्थान से भाज्य होता है। फासओ सीयए जे उ भइए से उ वण्ण ओ। गंधओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य।। स्पर्शतः शीतको यस्तु भाज्यः स तु वर्णतः। गन्धतो रसतश्चैव भाज्य: संस्थानतोऽपि च।। ३६. जो पुद्गल स्पर्श से उष्ण है, वह वर्ण, गन्ध, रस और संस्थान से भाज्य होता है। फासओ उण्हए जे उ भइए से उ वण्णओ। गंधओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य।। स्पर्शत: उष्णको यस्तु भाज्यः स तु वर्णतः। गन्धतो रसतश्चैव भाज्यः संस्थानतोऽपि च।। जो पुद्गल स्पर्श से स्निग्ध है, वह वर्ण, गन्ध, रस और संस्थान से भाज्य होता है। ४०. फासओ निद्धए जे उ भइए से उ वण्णओ। गंधओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य।। स्पर्शतः स्निग्धको यस्तु भाज्यः स तु वर्णतः। गन्धतो रसतश्चैव भाज्यः संस्थानतोऽपि च।। जो पुद्गल स्पर्श से रूक्ष है, वह वर्ण, गन्ध, रस और संस्थान से भाज्य होता है। ४१. फासओ लुक्खए जे उ . भइए से उ वण्णओ। गंधओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य।। स्पर्शतो रूक्षको यस्तु भाज्यः स तु वर्णतः। गन्धतो रसतश्चैव भाज्यः संस्थानतोऽपि च।। जो पुद्गल संस्थान से परिमण्डल है, वह वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से भाज्य होता है। ४२. परिमंडलसंठाणे भइए से उ वण्णओ। गंधओ रसओ चेव भइए फासओ वि य।। परिमण्डल-संस्थान: भाज्यः स तु वर्णतः। गन्धतो रसतश्चैव भाज्य: स्पर्शतोऽपि च।। ४३. जो पुद्गल संस्थान से वृत्त है, वह वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से भाज्य होता है। संठाणओ भवे वट्टे भइए से उ वण्णओ। गंधओ रसओ चेव भइए फासओ वि य।। संस्थानतो भवेद् वृत्तः भाज्यः स तु वर्णतः। गन्धतो रसतश्चैव भाज्यः स्पर्शतोऽपि च।। संठाणओ भवे तसे भइए से उ वण्ण ओ। गंधओ रसओ चेव भइए फासओ वि य।। संस्थानतो भवेत् त्र्यम्नः भाज्यः स तु वर्णतः। गन्धतो रसतश्चैव भाज्यः स्पर्शतोऽपि च।। जो पुद्गल संस्थान से त्रिकोण है, वह वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से भाज्य होता है। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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