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सम्यक्त्व-पराक्रम
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(३) मुक्ति (सू० ६२) श्रोत्रेन्द्रिय निग्रह के परिणाम :
(१) प्रिय और अप्रिय शब्दों में राग और द्वेष का निग्रह !
(२) शब्द हेतुक नए कर्म का अग्रहण और पूर्व संचित कर्म का क्षय । (सू० ६३) चक्षुरिन्द्रिय - निग्रह के परिणाम :
(१) प्रिय और अप्रिय रूपों में राग और द्वेष का निग्रह |
(२) रूप- हेतुक नए कर्म का अग्रहण और पूर्व संचित कर्म का क्षय । (सू० ६४ )
घ्राणेन्द्रिय निग्रह के परिणाम :
(१) प्रिय और अप्रिय गंधों में राग और द्वेष का निग्रह |
(२) गंध हेतुक नए कर्म का अग्रहण और पूर्व संचित कर्म का क्षय । (सू० ६५)
रसनेन्द्रिय - निग्रह के परिणाम :
(१) प्रिय और अप्रिय रसों में राग और द्वेष का निग्रह |
(२) रस हेतुक नए कर्म का अग्रहण और पूर्व संचित कर्म का क्षय । ( सू० ६६)
स्पर्शनेन्द्रिय - निग्रह के परिणाम :
(१) प्रिय और अप्रिय स्पर्शो में राग और द्वेष का
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अध्ययन २६ : आमुख
निग्रह |
(२) स्पर्श - हेतुक नए कर्म का अग्रहण और पूर्व संचित कर्म का क्षय । (सू० ६७)
क्रोध - विजय के परिणाम :
(१) क्षमा ।
(२) क्रोध - वेदनीय कर्म का अग्रहण और पूर्व संचित क्रोध - वेदनीय कर्म का विलय । (सू०६८)
मान- विजय के परिणाम :
(१) मार्दव।
(२) मान - वेदनीय कर्म का अग्रहण और पूर्व संचित मान- वेदनीय कर्म का विलय । (सू० ६६)
माया- विजय के परिणाम :
(१) आर्जव ।
(२) माया - वेदनीय कर्म का अग्रहण और पूर्व संचित माया-वेदनीय कर्म का विलय । (सू०७०)
लोभ- विजय के परिणाम :
(१) सन्तोष
(२) लोभ - वेदनीय कर्म का अग्रहण और पूर्व संचित लोभ-वेदनीय कर्म का विलय । (सू० ७१)
प्रेम, द्वेष और मिथ्या दर्शन विजय के परिणाम : (१) ज्ञान, दर्शन और चारित्र - आराधना की तत्परता । (२) मुक्ति (सू० ७२)
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