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तपो-मार्ग-गति
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अध्ययन ३० : श्लोक ३६ टि० १६
कायोत्सर्ग करना चाहिए।' (१) स्वाध्याय-काल में- १२
कायोत्सर्ग करते समय यदि उच्छ्वासों की संख्या विस्मृत (२) वन्दना-काल में- ६
हो जाए अथवा मन विचलित हो जाए तो आठ उच्छ्वास का (३) प्रतिक्रमण-काल में
अतिरिक्त कायोत्सर्ग करना चाहिए। (४) योग-भक्ति-काल में- २
कायोत्सर्ग के दोष प्रवचनसारोद्धार में १६, योगशास्त्र २८
में२१ और विजयोदया में १६५ बतलाए गए हैं। पांच महाव्रतों में अतिक्रमणों के लिए १०८ उच्छ्वास का
मूलाराधना, २।११६, विजयोदया, पृ० २७८।
३. प्रवचनसारोद्धार, गाथा २४७-२६२। २. वही, २११६, विजयोदया, पृ० २७८ : कायोत्सर्गे कृते यदि ४. योगशास्त्र, प्रकाश ३, पत्र २५०-२५१।
शक्यत उच्छ्वासस्य स्खलनं वा परिणामस्य उच्छ्वासाष्टकमधिकं ५. मूलाराधना, २११६, विजयोदया, पृ० २७६ । स्थातव्यम्।
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