________________
उत्तरज्झयणाणि
३२. (उद्देसेसु दसाइ)
यहां दशाश्रुतस्कन्ध, कल्प और व्यवहार इन तीनों सूत्रों के २६ उद्देशों का उल्लेख किया गया है। यहां 'उद्देश' शब्द उद्देशन- काल का सूचक है।' एक दिन में जितने श्रुत की वाचना (अध्यापन) दी जाती है, उसे एक उद्देशन - काल' कहा जाता है। इन तीन सूत्रों के २६ उद्देशन - काल हैं
दशाश्रुतस्कन्ध के १० उद्देशन - काल । कल्प (बृहत्कल्प) के ६ उद्देशन - काल । व्यवहार - सूत्र के १० उद्देशन काल । ३३. साधु के सत्ताईस गुणों... में (अणगारगुणेहिं ) साधु के २७ गुण हैं। जैसे—
(१) प्राणितिपात से विरमण, (१५) भाव - सत्य, (२) मृषावाद से विरमण, (१६) करण- सत्य, (३) अदत्तादान से विरमण, (१७) योग- सत्य, (४) मैथुन से विरमण, (१८) क्षमा, (५) परिग्रह से विरमण, (१६) विरागता, (६) श्रोत्रेन्द्रियनिग्रह, (७) चक्षु इन्द्रिय-निग्रह, (८) घाणेन्द्रियनिग्रह, (६) रसनेन्द्रियनिग्रह, (१०) स्पर्शनेन्द्रिय - निग्रह (११) क्रोध - विवेक,
(१२) मान विवेक,
(१३) माया - विवेक,
(१४) लोभ- विवेक,
देखिए समवाओ, समवाय २७ ।
वृत्तिकार ने २७ गुण भिन्न प्रकार से माने हैं
(१) अहिंसा,
(११) स्पर्शनेन्द्रिय - निग्रह,
(२) सत्य,
(३) अचौर्य.
(४) ब्रह्मचर्य
(५) अपरिग्रह,
(६) रात्रि भोजन-विरति (७) श्रोत्रेन्द्रियनिग्रह, (८) चक्षु इन्द्रियनिग्रह, (६) प्राणेन्द्रियनिग्रह, (१०) रसनेन्द्रिय - निग्रह,
7
(२०) मन - समाधारणता, (२१) वचन - समाधारणता, (२२) काय समाधारणता, (२३) ज्ञान-सम्पन्नता, (२४) दर्शन - सम्पन्नता, (२५) चारित्र - सम्पन्नता, (२६) वेदना - अधिसहन, (२७) मारणान्तिक- अधिसहन ।
Jain Education International
(१२) भाव-सत्य, (१३) करण- सत्य,
(१४) क्षमा,
(१५) विरागता,
(१६) मनो निरोध, (१७) वचन निरोध, (१८) काय निरोध, (१६) पृथ्वीकाय - संयम, (२०) अप्काय-संयम,
५४४
१. बृहद्वृत्ति, पत्र ६१६ : 'उद्देशेष्वि' व्युपलक्षणत्वादुद्देशन- कालेषु दशादीनां-दशाश्रुतस्कन्धकल्पव्यवहाराणां षड्विंशतिसङ्ख्येष्विति शेषः, उक्तं हि-"दस उद्देसणकाला दसाण कप्पस्स होंति छच्चेव ।
दस चैव य बवहारस्स हुति सव्वेऽवि छव्वीसं । ।" २. वही, पत्र ६१६
"वयछक्कमिंदयाणं च निग्गहो भाव करणसच्चं च । खमया विरागयाविय, मणमाईणं णिरोहो य ।।
अध्ययन ३१ : श्लोक १७, १८ टि० ३२-३४
(२१) तेजस्काय--संयम, (२५) योगयुक्तता, (२२) वायुकाय संयम, (२६) वेदना अधिसहन, (२३) वनस्पतिकाय-संयम, (२७) मारणान्तिक अधिसहन । (२४) त्रसकाय - संयम,
३४. अठाईस आचार-प्रकल्पों... में (पकण्णम्मि)
प्रकल्प का अर्थ है 'वह शास्त्र जिसमें मुनि के कल्प-व्यवहार का निरूपण हो ।' आचारांग का दूसरा नाम 'प्रकल्प' है। '
निशीथ सूत्र सहित आचारांग को 'आचार-प्रकल्प' कहा जाता है। मूल आचारांग के शस्त्र-परिज्ञा आदि नौ अध्ययन हैं और दूसरा श्रुतस्कन्ध उसकी चूड़ा (शिखा ) है । उसके १६ अध्ययन हैं। निशीथ के तीन अध्ययन हैं और वह भी आचारांग की ही चूड़ा है ।
आचारांग प्रथम श्रुतस्कन्ध के नौ अध्ययन
(१) शस्त्र-परिक्षा,
(२) लोक-विचय, (३) शीतोष्णीय
(४) सम्यक्त्व, (५) आयंती,
(७) विमोह,
(८) उपधान-श्रुत, (६) महापरिज्ञा ।
आचारांग द्वितीय श्रुतस्कन्ध के सोलह अध्ययन(१) षणा (६) पात्रैषणा, (७) अवग्रह-प्रतिमा, (१४) सप्तसप्तिका,
(२) शय्या, (२) ईर्ष्या
(१५) भावना, (१६) विमुक्ति ।
(3) भाषा,
(५) वस्त्रेषणा, निशीथ के तीन अध्ययन
(१) उद्घात (२) अनुद्घात और (३) आरोपण । समवायांग में आचार प्रकल्प के अठाईस प्रकार इस प्रकार है
( १ )
एक महीने की आरोपणा
(२) एक महीने और पांच दिन की आरोपणा (३) एक महीने और दस दिन की आरोपणा (४) एक महीने और पन्द्रह दिन की आरोपणा (५) एक महीने और बीस दिन की आरोपणा (६) एक महीने और पच्चीस दिन की आरोपणा (७) दो महीने की आरोपणा
(८) दो महीने और पांच दिन की आरोपणा (६) दो महीने और दस दिन की आरोपणा
कायाणछक्कजोगम्मि, जुत्तया वेयणाहियासणया । तह मारणंतिय हियासणया एएऽणगारगुणा।।"
३. वही, पत्र ६१६ प्रकृष्टः कल्पो– यतिव्यवहारो यस्मिन्नसौ प्रकल्पः स चेहाचाराङ्गमेव शस्त्रपरिज्ञाद्यष्टाविंशत्यध्ययनात्मकम् ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org