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लेश्या-अध्ययन
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अध्ययन ३४ : श्लोक ५६-६१
अन्तिम समय में परिणत सभी लेश्याओं में कोई भी जीव दूसरे भव में उत्पन्न नहीं होता।
५६. लेसाहिं सव्वाहिं
लेश्याभिः सर्वाभिः चरमे समयम्मि परिणयाहिं तु। चरमे समये परिणताभिस्तु। न वि कस्सवि उववाओ नापि कस्याप्युपपादः
परे भवे अत्थि जीवस्स।।। परे भवेऽस्ति जीवस्य।। ६०. अंतमुहुत्तम्मि गए
अन्तर्मुहूर्ते गते अंतमुहुत्तम्मि सेसए चेव। अन्तर्मुहूर्ते शेषके चैव। लेसाहिं परिणयाहिं
लेश्याभिः परिणताभिः जीवा गच्छंति परलोयं ।। जीवा गच्छन्ति परलोकम् ।। ६१. तम्हा एयाण लेसाणं तस्मादेतासां लेश्यानां
अणुभागे वियाणिया। अनुभागान् विज्ञाय। अप्पसत्थाओ वज्जित्ता अप्रशस्ता वर्जयित्वा पसत्थाओ अहिडेज्जासि ।। प्रशस्ता अधितिष्ठेत् ।।
लेश्याओं की परिणति होने पर अन्तमुहूर्त्त बीत जाता है, अन्तर्मुहूर्त शेष रहता है, उस समय जीव परलोक में जाते हैं।२३
इसलिए इन लेश्याओं के अनुभागों को जान कर मुनि अप्रशस्त लेश्याओं का वर्जन करे और प्रशस्त लेश्याओं को स्वीकार करे।
—त्ति बेमि।
---इति ब्रवीमि।
—ऐसा मैं कहता हूं।
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