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उत्तरज्झयणाणि
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(१०) छोटे साधु का बड़े साधु से पहले (एक जल - पात्र हो, उस स्थिति में) आचमन करना -- शुचि लेना । (११) छोटे साधु द्वारा स्थान में आकर बड़े साधु से पहले गमनागमन की आलोचना करना । (१२) जिस व्यक्ति के साथ बड़े साधु को वार्तालाप करना है, उसके साथ छोटे साधु का पहले ही वार्तालाप
करना ।
(१३) बड़े साधु द्वारा यह पूछने पर कि कौन जागता है, कौन सो रहा है, छोटे साधु का जागते हुए भी उत्तर नहीं देना ।
(१४) गृहस्थ के घर से भिक्षा ला पहले छोटे साधु के पास आलोचना करना कहां से क्या, कैसे प्राप्त हुआ यह बतलाना ।
(१५) गृहस्थ के घर से भिक्षा ला पहले छोटे
दिखान फिर बड़े साधु को ।
साधु को
(१७) गृहस्थ के घर से भिक्षा ला बड़े साधु को पूछे बिना अपने प्रिय-प्रिय साधुओं को प्रचुर प्रचुर दे देना । (१८) गृहस्थ के घर से भिक्षा ला बड़े साधु के साथ भोजन करते हुए सरस आहार खाने की उतावल
करना ।
(१६) बड़े साधु द्वारा आमंत्रित होने पर सुना अनसुना
करना ।
(२०) बड़े साधु द्वारा आमंत्रित होने पर अपने स्थान पर बैठे हुए उत्तर देना ।
(२१) बड़े साधु को अनादर भाव में 'क्या कह रहे हो' – इस प्रकार कहना ।
(२२) बड़े साधु को तू कहना ।
(२३) बड़े साधु को या उसके समक्ष अन्य किसी को रूखे शब्द से आमन्त्रित करना या जोर-जोर से बोलना ।
(२४) बड़े साधु की— उसी का कोई शब्द पकड़ -अवज्ञा
आशातनाओं का यह विवरण दशाश्रुतस्कन्ध ( दशा ३) के आधार पर दिया गया है। समवायांग (समवाय ३३) में ये (१६) गृहस्थ के घर से भिक्षा ला पहले छोटे साधु को कुछ क्रमभेद से प्राप्त हैं। आवश्यक (चतुर्थ आवश्यक) में ३३
निमंत्रित करना फिर बड़े साधु को 1
आशातनाएं भिन्न प्रकार से प्राप्त हैं— (१) अर्हन्तों की आशातना । (२) सिद्धों की आशातना । (३) आचार्यों की आशातना । (४) उपाध्यायों की आशातना । (५) साधुओं की आशातना । (६) साध्वियों की आशातना । (७) श्रावकों की आशातना । (८) श्राविकाओं की आशातना । (E) देवों की आशातना । (१०) देवियों की आशातना ।
(११) इहलोक की आशातना ।
( १२ ) परलोक की आशातना ।
(१३) केवलीप्रज्ञप्त धर्म की आशातना ।
(१४) देव, मनुष्य और असुर सहित लोक की आशातना । (१५) सर्व प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों की आशातना । (१६) काल की आशातना ।
(१७) श्रुत की आशातना ।
(१८) श्रुत देवता की आशातना । (१६) वाचनाचार्य की आशातना ।
(२०) व्याविद्ध—व्यत्यासित वर्ण विन्यास करना कहीं के अक्षरों को कहीं बोलना।"
(२१) व्यत्यात्रेडित – उच्चार्यमाण पाठ में दूसरे पाठों का मिश्रण करना ।
(२२) हीनाक्षर-अक्षरों को न्यून कर उच्चारण करना ।
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अध्ययन ३१ : श्लोक २० टि० ३६
में ही परिषद् को भंग करना ।
(२६) बड़ा साधु व्याख्यान कर रहा हो, उस समय में बीच में ही कथा का विच्छेद करना-विध्न उपस्थित करना ।
(३०) बड़ा साधु व्याख्यान कर रहा हो, उस समय उसी विषय में अपनी व्याख्या देने का बार-बार प्रयत्न
करना ।
(३१) बड़े साधु के उपकरणों के पैर लग जाने पर विनम्रता पूर्वक क्षमा-याचना न करना ।
(३२) बड़े साधु के बिछौने पर खड़े रहना, बैठना या सोना।
(३३) बड़े साधु से ऊंचे या बराबर के आसन पर खड़े रहना, बैठना या सोना ।
करना।
(२५) बड़ा साधु व्याख्यान कर रहा हो, उस समय 'यह ऐसे नहीं किन्तु ऐसे है' इस प्रकार कहना । (२६) बड़ा साधु व्याख्यान कर रहा हो, उस समय 'आप भूल रहे हैं' – इस प्रकार कहना ।
(२७) बड़ा साधु व्याख्यान कर रहा हो, उस समय अन्यमनस्क होना ।
( २८ ) बड़ा साधु व्याख्यान कर रहा हो, उस समय बीच
१. विशेषावश्यक भाष्य, गाथा ८५६ : वाइद्धक्खरमेयं, वच्चासियवण्णचिण्णासं । २. विशेषावश्यक भाष्य, गाथा ८५६ : विविहसत्थपल्लवविमिस्सं ।
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