________________
चउतीसइमं अज्झयणं : चौतीसवां अध्ययन
लेसज्झयणं : लेश्या-अध्ययन
१.
नेर
हिन्दी अनुवाद मैं अनुपूर्वी के क्रमानुसार (पूर्वानुपूर्वी से) लेश्याअध्ययन का निरूपण करूंगा। छहों कर्म-लेश्याओं के अनुभावों को तुम मुझ से सुनो।'
२
.
लेश्याओं के नाम, वर्ण, रस, गंध, स्पर्श, परिणाम, लक्षण, स्थान, स्थिति, गति और आयुष्य को तुम मुझ से सुनो।
संस्कृत छाया लेश्याध्ययनं प्रवक्ष्यामि आनुपूर्व्या यथाक्रमम्। षण्णामपि कर्मलेश्यानां अनुभावान् शृणुत मे।। नामानि वर्णरसगन्धस्पर्शपरिणामलक्षणानि। स्थानं स्थितिं गतिं चायुः लेश्यानां तु शूणुत मे।। कृष्णा नीला च कापोती च तैजसी पद्मा तथैव च। शुक्ललेश्या च षष्ठी तु नामानि तु यथाक्रमम् ।। स्निग्धजीमतसंकाशा गवलारिष्टकसन्निभा। खंजनाञ्जननयननिभा कृष्णलेश्या तु वर्णतः।।
3.
यथाक्रम से लेश्याओं के ये नाम हैं—(१) कृष्ण, (२) नील, (३) कापोत, (४) तेजस्, (५) पद्म और (६) शुक्ल।
४.
कृष्ण लेश्या का वर्ण स्निग्ध मेघ, महिष द्रोण-काक,* खजन, अंजन व नयन-तारा के समान होता है।
लेसज्झयणं पवक्खमि आणपुब्बिं जहक्कम। छण्हं पि कम्मलेसाणं अणुभावे सुणेह मे।। नामाइं वण्णरगंधफासपरिणामलक्खणं। ठाणं ठिई गई चाउं लेसाणं तु सुणेह मे।। किण्हा नीला य काऊ य तेऊ पम्हा तहेव य। सुक्कलेसा य छट्ठा उ नामाइं तु जहक्कम ।। जीमूयनिद्धसंकासा गवलरिट्ठगसन्निभा। खंजणंजणनयणनिभा किण्हलेसा उ वण्णओ।। नीलासोगसंकासा चासपिच्छसमप्पभा। वेरुलियनिद्धसंकासा नीललेसा उ वण्णओ।। अयसीपुष्फसंकासा कोइलच्छदसन्निभा। पारेवयगीवनिभा काउलेसा उ वण्णओ।। हिंगुलुयधाउसंकासा तरुणाइच्चसन्निभा। सुयतुंडपईवनिभा तेउलेसा उ वण्णओ।। हरियालभेयसंकासा हलिदायेभसंनिभा। सणासणकुसुमनिभा पम्हलेसा उ वण्णओ।।
नील लेश्या का वर्णन नीलअशोक, चाष पक्षी के परों व स्निग्ध वैडूर्य मणि के समान होता है।
कापोत लेश्या का वर्ण अलसी के पुष्प, तैल-कण्टक' व कबूतर की ग्रीवा के समान होता है।
नीलाऽशोकसंकाशा चायपिच्छसमप्रभा। स्निग्धवैडूर्यसंकाशा नीललेश्या तु वर्णतः।। अतसी पुष्पसंकाशा कोकिलच्छदसन्निभा। पारापतग्रीवानिभा कापोतलेश्या तु वर्णतः।। हिंगुलुकधातुसंकाशा तरुणादित्यसन्निभा। शुकतुण्डप्रदीपनिभा तेजोलेश्या तु वर्णतः।। हरितालभेदसंकाशा हरिद्राभेदसन्निभा। सणासनकुसुमनिभा पद्मलेश्या तु वर्णतः।।
तेजो लेश्या का वर्ण हिंगुल, धातु-गेरु, नवोदित सूर्य, तोते की चोंच, प्रदीप की लौ के समान होता
पद्म लेश्या का वर्ण भिन्न-हरिताल, भिन्न-हल्दी, सण और असन के पुष्प के समान होता है।
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org