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उत्तरज्झयणाणि
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अध्ययन ३२ : आमुख
शान्त्याचार्य ने बताया है कि कुछ आचार्य अनुपपत्ति के भय से भगवान् ऋषभ और महावीर के प्रमाद को केवल निद्रा प्रमाद मानते है किन्तु नियुक्तिकार और शान्त्याचार्य का यह अभिमत नहीं है और वह संगत भी है । नियुक्तिकार
के निरूपण का उद्देश्य यह है कि जिस प्रकार भगवान ऋषभ और महावीर अधिक से अधिक अप्रमत्त रहे हैं, उसी प्रकार सब श्रमण भी अधिक से अधिक अप्रमत्त रहें ।
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बृहद्वृत्ति पत्र ६२० विवक्षित इति व्याचक्षते ।
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अन्ये त्वेतदनुपपत्तिभीत्या निद्राप्रमाद एवायं
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