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चरण-विधि
५४१ अध्ययन ३१ : श्लोक १४,१५ टि० २४-२७ (६) द्वीन्द्रिय-असंयम
(७) रोहिणी,
(१४) तेत्तली, (७) त्रीन्द्रिय-असंयम
(८) मल्ली ,
(१५) नन्दी-फल, (८) चतुरिन्द्रिय-असंयम
(६) माकन्दी,
(१६) अवरकंका, (६) पंचेन्द्रिय-असंयम
(१०) चन्द्रिका,
(१७) आकीर्ण, (१०) अजीवकाय-असंयम
(११) दावद्रव,
(१८) सुंसमा, (११) प्रेक्षा-असंयम-अप्रतिलेखन या अविधि प्रतिलेखन (१२) उदत-ज्ञात,
(१६) पुण्डरीक-ज्ञात। से होने वाला असंयम।
(१३) मंडूक, (१२) उपेक्षा-असंयम-संयम की उपेक्षा और असंयम देखिए-समवाओ, समवाय १६। में व्यापार।
२६. बीस असमाधि-स्थानों में (ठाणेसु य समाहिए) (१३) अपहृत्य-असंयम-उच्चार आदि का अविधि से
बीस असमाधि-स्थान ये हैंपरिष्ठान करने से होने वाला असंयम।
(१) धम-थम करते चलना। (१४) अप्रमार्जन-असंयम-पात्र आदि का अप्रमार्जन या
(२) प्रमार्जन किए बिना चलना। अविधि से प्रमार्जन करने से होने वाला असंयम।
(३) अविधि से प्रमार्जन कर चलना। (१५) मन-असंयम-अकुशल मन की उदीरणा। (१६) वचन-असंयम-अकुशन वचन की उदीरणा।
(४) प्रमाण से अधिक शय्या, आसन आदि रखना। (१७) काय-असंयम-अकुशल काया की उदीरणा।
(५) रात्निक साधुओं का पराभव-तिरस्कार करना, देखिए—समवाओ, समवाय १७।
उनके सामने मर्यादा-रहित बोलना। २४. अठारह प्रकार के ब्रह्मचर्य....में (बंभम्मि)
(६) स्थविरों का उपघात करना। ब्रह्मचर्य के अठारह प्रकार ये हैं---
(७) प्राणियों का उपघात करना। औदारिक (मनुष्य, तिर्यञ्च सम्बन्धी) काम-भोगों का : (८) प्रतिक्षण क्रोध करना। (१) मन से सेवन न करे, (२) मन से सेवन न कराए और
(६) अत्यन्त क्रोध करना। (३) सेवन करने वाले का मन से अनुमोदन भी न करे।
(१०) परोक्ष में अवर्णवाद बोलना। औदारिक काम-भोगों का : (४) वचन से सेवन न करे, (५) वचन से सेवन न कराए और (६) सेवन करने वाले का
(११) बार-बार निश्चयकारी भाषा बोलना। वचन से अनुमोदन भी न करे।
(१२) अनुत्पन्न नए-नए कलहों को उत्पन्न करना। औदरिक काम-भोगों का : (७) काया से सेवन न करे,
(१३) अपशमित और क्षमित पुराने कलहों की उदीरणा (८) काया से सेवन न कराए और (E) सेवन करने वाला का
करना। काया से अनुमोदन भी न करे।
(१४) सरजस्क हाथ-पैरों का व्यापार करना। दिव्य (देव-सम्बन्धी) काम-भोगों का : (१०) मन से (१५) अकाल में स्वाध्याय करना। सेवन न करे, (११) मन से सेवन न कराए और (१२) सेवन
(१६) कलह करना। करने वाले का मन से अनुमोदन भी न करे। दिव्य काम-भोगों का : (१३) वचन से सेवन न करे,
(१७) रात्रि में जोर से बोलना। (१४) वचन से सेवन न कराए और (१५) सेवन करने वाले
(१८) झंझा (खटपट) करना। का वचन से अनुमोदन भी न करे।
(१६) सूर्योदय से सूर्यास्त तक बार-बार भोजन करना। दिव्य काम-भोगों का : (१६) काया से सेवन न करे, (२०) एषणा-समिति रहित होना। (१७) काया से सेवन न कराए और (१८) सेवन करने वाले देखिए-समवाओ, समवाय २०; दशाश्रुतस्कन्ध, दशा ११ का काया से अनुमोदन भी न करे।
२७. इक्कीस प्रकार के शबल दोषों...में (एगवीसाए सबले) देखिए-समवाओ, समवाय १८ ।
शबल (चारित्र को धब्बों से युक्त करने वाले) दोष २५. उन्नीस ज्ञाता अध्ययनों....में (नायज्झयणेसु) इक्कीस हैंज्ञाता के १६ अध्ययन ये हैं
(१) हस्त-कर्म करना। (१) उत्क्षिप्त-ज्ञाता, (४) कूर्म,
(२) मैथुन का प्रतिसेवन करना। (२) संघाट, (५) सेलक,
(३) रात्रि-भोजन करना। (३) अण्ड, (६) तुम्ब,
(४) आधा-कर्म आहार करना।
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