________________
मोक्ष-मार्ग-गति
आनन्द है और न ज्ञान है- 'तस्मात् निःसम्बन्धो निरानन्दश्च मोक्षः' ।' मुक्तावस्था में आत्मा में 'ज्ञानशक्तिमात्र' ज्ञान रहता है। साथ ही साथ उसकी सत्ता तथा द्रष्टव्य आदि धर्म तो उसमें रहते ही हैं। यही आत्मा का निजी स्वरूप है, जिससे वह मोक्ष में स्थित रहता है—' यदस्य स्वं नैजं रूपं ज्ञानशक्तिसत्ताद्रव्यत्वादि तस्मिन्नवतिष्ठेत ।
प्रभाकर धर्म तथा अधर्म का सम्पूर्ण नाश होने से देह के आत्यन्तिक उच्छेद को 'मोक्ष' कहते हैं। इनका मत है कि आत्म-ज्ञान के द्वारा धर्माधर्म का नाश होता है और वही मुक्ति है । मुक्तावस्था में जीव की सत्ता मात्र रहती है।"
भास्कर वेदान्त के अनुसार उपाधियों से मुक्त होकर अपने स्वाभाविक स्वरूप को धारण करना मोक्ष है। इसके दो भेद हैं- (१) सद्योमुक्ति और (२) क्रममुक्ति । जो साक्षात् कारण- स्वरूप - ब्रह्म की उपासना करने पर मुक्ति पाते हैं, वह 'सद्योमुक्ति' है और जो कार्य स्वरूप ब्रह्म के द्वारा मुक्ति पाते हैं, उनकी मुक्ति 'क्रममुक्ति' है अर्थात् देवयान मार्ग से अनेक लोकों में घूमते हुए मुक्त होते हैं। मुक्त जीव मन के द्वारा मुक्ति में आनन्द का अनुभव करता है। मुक्त दशा में 'सम्बोध' या 'ज्ञान' आत्मा में रहता ही है। ध्यान, धारणा और समाधि मुक्ति के साधन हैं ।
वे
रामानुजाचार्य ने तीन प्रकार की जीवात्माएं मानी हैं— (१) बद्ध, (२) मुक्त और (३) नित्य । उनके अभिमतानुसार सत्प्रवृत्तियों के द्वारा जीव ईश्वर के पास जाता है, तब उसमें सब तरह के, सभी अवस्था के उपयुक्त भगवान् के प्रति सेवक भाव तथा स्नेह आविर्भूत हो जाता है और इन सबका अनुभव जीव को होने लगता है। ऐसे 'जीव' मुक्त कहलाते हैं। ये 'मुक्त जीव' ब्रह्म के समान भोग करते हैं। ये भी अनेक हैं तथा सब लोकों में अपनी इच्छा से विचरण करते हैं।" मुक्तावस्था में मुक्त-पुरुषों का ज्ञान कभी-कभी व्यापक रहता
है ।"
-
निम्बार्काचार्य ने दो प्रकार के मुक्त जीव माने हैंनित्य-मुक्त और दूसरे वे जो सत्कर्म करते हुए पूर्व जन्म के कर्मों का भोग सम्पन्न कर संसार के बंधन से मुक्त हो जाते हैं। मुक्त होने पर ये सब अर्चिरादि मार्ग से 'परः ज्योतिः '
१. शास्त्रदीपिका, पृ० १२५-१३०।
२. वही, पृ० १३० ।
३. प्रकरणपंचिका, पृ० १५६ आत्यन्तिकस्तु देहोच्छेदो मोक्षः ।
४. वही, पृ० १५६-१५७ ।
५. भास्कर भाष्य |
६. यतिपतिमतदीपिका, पृ० ३२-३६ ।
४५७
अध्ययन २८ : श्लोक १४ टि० १६
स्वरूप को पा कर अपने यथार्थ स्वरूप में प्रकट हो जाते हैं और पुनः संसार में नहीं जाते। इनमें से कई केवल आत्म-साक्षात्कार करके ही तृप्त हो जाते हैं और कई ईश्वर-तुल्य बन जाते हैं। इनके अनुसार मुक्त जीव भी भोग भोगते हैं।"
मध्वाचार्य के अनुसार मुक्त जीव अपनी इच्छा से शुभ सत्त्वमय देह धारण कर यथेष्ट भोग का अनुभव करते हैं और पुनः स्वेच्छा से उसे त्याग देते हैं। किसी-किसी के मत में मुक्त-जीव पांच भौतिक शरीर के द्वारा भी भोग कर सकता है। यह शरीर उसका 'स्वेच्छा- स्वीकृत शरीर' कहलाता है। इसके अनुसार संसार तथा मोक्ष—दोनों ही अवस्था में जीवों में भी परस्पर भेद है । परमात्मा इन सबसे भिन्न है ।" ज्ञान की तरतमता के कारण परम आनन्द की अनुभूति में भी तारतम्य रहता है।
७. तत्त्वत्रयभाष्य, पृ० ३५-३६ ।
८. वेदान्तपारिजातसौरभ, ४।४।१३,१५ ।
६. मध्वसिद्धान्तसार, पृ० ३६-३७।
१०. पदार्थसंग्रह, पृ० ३२ ।
Jain Education International
सांख्य के अनुसार प्रकृति का वियोग हो जाना ही मोक्ष है अथवा विवेक ख्याति या विवेक-बुद्धि को प्राप्त करना मुक्ति है। मोक्षावस्था में भी प्रकृति का सात्त्विक अंश रहता है। मुक्ति में मुक्त जीवों की संख्या अनन्त है ।" वैष्णव तंत्र
मोक्ष प्राप्ति के लिए जीव को भगवन्-भक्ति द्वारा शरणागति प्राप्त करनी चाहिए।" मुक्त दशा में जीव ब्रह्म से एकाकार हो जाता है और उसका पुनरावर्तन नहीं होता । ३ 'ब्रह्मभावापत्ति' मुक्ति का अपर नाम है ।
शैव तंत्र
'क्रिया' मुक्ति का साधन है, 'ज्ञान' नहीं। अनुग्रह शक्ति द्वारा जीव संसार के बंधन से छूट सकता है । ४ शाक्त तंत्र
'भोगात्मक-साधन' से मुक्ति प्राप्त होती है।" भोग और मोक्ष में कोई अन्तर नहीं है। इस मत में माता भगिनी और पुत्री का भोग करने वालों को भी मुक्ति प्राप्त हो सकती है, ऐसा विधान है । १६
वैशेषिक
द्रव्य, गुण आदि षट्पदार्थों में ज्ञान से होती है।७ 'धर्म' मोक्ष का साधन है, इससे
११. सांख्यकारिका, ७० की माठर वृत्ति । १२. अहिर्बुध्न्यसंहिता, ३७।२७-३१। १३. वही, ६।२७-२८ ।
१४. सर्वदर्शनसंग्रह, पृ० १७४- १८६ । १५. श्री गुह्यसमाजतंत्र, पृ० २७ :
दुष्करैर्नियमैस्तीवैः सेव्यमानो न सिद्ध्यति । सर्वकामोपभोगैस्तु, सेवयंश्चाशु सिद्ध्यति ।।
१६. श्री गुह्यसमाजतंत्र अध्याय ५ ।
१७. वैशेषिक सूत्र, १1१1४ ।
For Private & Personal Use Only
मोक्ष की प्राप्ति तत्त्व - ज्ञान और
www.jainelibrary.org